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हि छियासीवाँ अध्याय
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दशमी तिथिके त्रत
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ट! अब मैं | समाप्त होनेपर दस गौओं और स्वर्णमयी
दशमी-सम्बन्धी ब्रतके विषयमें कहता हूँ, | प्रतिमाओंका दान करे। ऐसा करनेसे मनुष्य
जो धर्म-कामादिकी सिद्धि करनेवाला है।| ब्राह्मण आदि चारों वर्णोका अधिपति होता
दशमीको एक समय भोजन करे और त्रतके। है॥ १॥
इस प्रकार आदि आरनेव महाएुराणमें " दशमीके ब्रतोंका वर्णन” नामक
एक सौ छियासीवां अध्याय पूरा हुआ# १८६ ॥
एक सौ सतासीवाँ अध्याय
एकादशी तिथिके त्रत
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ! अब मैं भोग
और मोक्ष प्रदान करनेवाले एकादशी-ब्रतका
वर्णन करूँगा। व्रत करनेवाला दशमीको मांस
और मैथुनका परित्याग कर दे एवं भजन भी
नियमित करे। दोनों पक्षोंकी एकादशीको भोजन
ने करे॥ १३॥
द्वादशी-विद्धा एकादशीमें स्वयं श्रीहरि स्थित
होते हैं, इसलिये द्वादशी-विद्धा एकादशीके
ब्रतका त्रयोदशीकों पारण करनेसे मनुष्य सौ
यज्ञोका पुण्यफल प्राप्त करता है। जिस दिनके
पूर्वभागमें एकादशी कलामात्र अवशिष्ट हो
और शेषभागमें द्वादशी व्याप्त हो, उस दिन
एकादशीका ब्रत करके त्रयोदशीमें पारण करनेसे
सौ यज्ञोंका पुण्य प्राप्त होता है। दशमी-विद्धा
एकादशीको कभी उपवास नहीं करना चाहिये;
क्योंकि बह नरककी प्राप्ति करानेवालौ है।
एकादशीको निराहार रहकर, दूसरे दिन यह
कहकर भोजन करे --' पुण्डरीकाक्ष! मैं आपकी
शरण ग्रहण करता हूँ। अच्युत ! अब मैं भोजन
करूँगा।' शुक्लपक्षकी एकादशीको जब पुष्यनक्षत्रका
योग हो, उस दिन उपवास करना चाहिये। वह
अक्षयफल प्रदान करनेवाली है और ' पापनाशिनी '
कही जाती है। श्रवणनक्षत्रसे युक्त द्वादशीविद्धा
एकादशी "विजया" नामसे प्रसिद्ध है और
भक्तोंको विजय देनेवाली है। फाल्गुन माससमें
पुष्यनक्षत्रसे युक्त एकादशीको भी सत्पुरुषोंने
"विजया" कहा है। वह गुणोंमें कई करोड्गुना
अधिक मानी जाती है। एकादशीको सबका
उपकार करनेवाली विष्णुपूजा अवश्य करनी
चाहिये । इससे मनुष्य इस लोके धन और पुत्रोंसे
युक्त हो (मृत्युके पश्चात्) विष्णुलोके पूजित
होता है॥ २-९॥
इस गकार आदि आरतेय महाएुयणमें 'एकादशीके व्रतोंका वर्ण” तामक
एक सो सतासीवाँ अध्याय यूरा हुआ# १८७॥
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