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न्यायतोऽन्यायतो वापि भवद्भ्यां तौ पपाहितौ ।

हन्तव्यो तद्वधाद्राज्यं सामान्यं वां भविष्यति ॥ २१

इत्यादिश्य स तौ मल्लौ ततआहूय हस्तिपम्‌ ।

श्रोवाचोच्चैस्त्वया मल्‍लसमाजद्वारि कुञ्चरः ॥ २२

स्थाप्यः कुखलयापीडस्तेन तौ गोपदारकौ ।

घातनीयौ नियुद्धाय शङ्गद्वारमुपागतौ ॥ २३

तमप्याज्ञाप्य दृष्टा च सर्वान्यञ्चानुपाकृतान्‌ ।

आसत्रमरणः कंसः सूर्योदयपुदैक्षत ॥ २४

ततः समस्तपद्चेषु नागरस्स तदा जनः ।

राजमञ्लेषु चारूढास्सह भूत्यरनराधिपाः ॥ २५

मल्लप्राञ्रिकवर्गश्च रङ्कमध्यसमीपगः ।

कृतः कंसेन कंसोऽपि तुङ्गमश्चे व्यवस्थित: ।। २६

अन्तःपुराणां मञ्चाश्च तथान्ये परिकल्पिताः ।

अन्ये च लारमुख्यानामन्ये नागरयोषिताम्‌ ॥ २७

नन्दगोपादयो गोपा मज्ञेप॒न्येप्रतस्थिता: ।

अक्रूरवसुदेवौ च मञ्प्रान्ते व्यवस्थितौ ॥ २८

नागरीयोषिलां मध्ये देवकौपतरगदधिनी ।

अन्तकाङेऽपि पुत्रस्य द्रक्ष्यामीति मुखं स्थिता । २९

वाद्यपानेषु तूर्येषु चाणुरे चापि वल्गति ।

हाहाकारपरे लोके ह्यास्फोटयति मुष्टिके ॥ ३०

ईषद्धसन्तौ तौ वीरौ वलभद्रजनार्दनौ ।

गोपवेषधरौ बालौ रघ्डद्धारमुपागतौ ॥ २१

ततः कुवलयापीडो महामात्रप्रचोदितः ।

अभ्यधावत वेगेन हन्तु गोपकुमारकौ ॥ ३२

हाहाकारो महाक्ञज्ञे रङ्गमध्ये द्विजोत्तम ।

खलदेवोऽनुजं दृष्टा बचने चेदमब्रवीत्‌ ॥ ३३

इन्तव्यो हि महाभाग नागोऽयं शात्रुचोदित: ॥ ३४

इत्यक्तस्सोऽग्रजेनाथ बलदेवेन वै द्विज ।

सिंहनाद ततश्चक्रे माधवः परवीरहा ॥ ३५

करेण करमाकृष्य तस्य केरिनिषूदनः ।

भ्रामयामास तं शौरिरैरावतसमं वले ॥ ३६

श्रीविष्णुपुराण

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दोगे तो मैं तुष्हारी समस्त इच्छाएँ पूर्ण कर दूँगा; मेरे इस

कथनको लुम तिथ्या न समझना । तुम न्यायसे अथवा

अन्यायसे मेरे इन महाबलवान्‌ अपकारियोंको अवश्य

मार दत्ते । उनके मारे जानेपर यह सारा राज्य | हमारा

और ] तुम दोनौका सामान्य होगा ॥ १९--२१॥

मल्स्म्रेंकों इस प्रकार आज्ञा दे ऊंसने अपने महावतकों

बुत्प्रया और उसे आज्ञा दी कि तू कुवलयापोड हाथीको

प्रल्छोकी रेगभूमिके द्वारपर खड़ा रख और जब वे

गोपकृमार युद्धके लिये यहाँ आवें तो उन्हें इससे नष्ट करा

दे ॥ २२-२३ ॥ इस प्रकार उसे आज्ञा देकर और समस्त

सिंहासनॉकों यथावत्‌ रखे देखकर, जिसकी मृत्यु पास आ

गयी है बह कंस सूर्योदककौ प्रतीक्षा करने गा ॥ २४ ॥

प्रातःफाल होनेपर समस्त मछोंपर नागरिक लोग और

राजमज्ञोंपर अपने अनुचरोंके सहित राजालोग बैठे

॥ २५ ॥ तदनन्तर रगभूमिके मध्य भागके समीप कंसने

युद्धपरीक्षकॉंकों बैठाया और फिर स्वयं आप भी एक ऊँचे

सिंहासनपर बैठा ॥ २६ ॥ वहाँ अन्तःपुरव खियोकि लिये

पथक्‌ मचान बनाये गये थे तथा मुख्य-मुख्य यागंगनाओं

और नगस्की महित्तरओके लिये भी अलग-अलग मम्र थे

॥ २७॥ कुछ अन्य मछोंपर नन्दगोप आदि गोपगण

बिठाये गये थे और उन मङ्कि पास ही अक्रूर और

चसुदेखजों बैठे थे।२८॥ नगरकी नारियोंके चोचे

चलो, अन्तकाले ही पुत्रका मुख तो देख ठैगी' ऐसा

विचास्कर पुत्के लिये मङ्गर्कामना करती हुई देककौजी

बैडी थीं ॥ २९॥

तदनन्तर जिस समय तुर्य आदिके यजने तथा चणुरके

अर्यत्त उछलने और मुष्टिकके ताल ठॉकनेपर दर्शकगण

हाराकार कर रहे थे, गोपवेषधारों वीर बालक बलभद्र

और कृष्ण कुछ हैंसते हुए रंगभूमिके द्वारपर आये

॥ ३०-३१॥ वहाँ आते ही महावतकी प्ररणासे

कुबलयापीढ नामक हाथी उन दोनों गोपकृमारोको मारनेके

लिये बड़े वेगे दौड़ा ॥ ३२ ॥ हे द्विजश्रेष्ट | उस समय

रेगभूमिमें महान्‌ हाहाकार मच गया तथा बलदेयजीने

अपने अनुज कष्णकी ओर देखकर कहा--“हे

महाभाग ! इस हाथीको शज्रुने ही प्रेरित किया है; अतः

इसे मार डालना चाहिये" ॥ ३३-३४ ॥

हे द्विज ! ज्येष्ठ आता बलरामजीके ऐसा कहनेपर

उतरुसूदन श्रीरयामसुन्दरने यदै जोरसे सिंहनाद

किया ॥ ३५॥ फिर केदिनिषृदन भगवान्‌ श्रीकष्णने

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