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देष

4 व

नित्य-निवास है। वहाँ धर्मके समीप जानेसे अश्वमेध

यज्ञका फल मिलता है। वहाँसे ब्रह्माजीके उत्तम तीर्थको

प्रस्थान करे और वहां पहुँचकर ब्रतका पालन करते हुए

ब्रह्माजीकी पूजा करे । इससे राजसूय और अश्वमेघ

यज्ञका फल मिलता है । इसके बाद मणिनाग-तीर्थमें

जाय । वहाँ सहस्र गोदानोका फल प्राप्त होता है । उस

तीर्थम एक रात निवास करनेपर सब पापोंसे छुटकारा

मिल जाता है। इसके याद त्रह्मर्षि गौतमके यनम जाय ।

वहाँ अहल्याकुण्डमें स्नान करनेसे परम गतिकी प्राप्ति

होती है। उसके बाद राजर्षि जनकका कूप है, जो

देवताओंद्वारा भी पूजित है। वहाँ स्नान करके मनुष्य

विष्णुल्प्रेकको प्राप्त कर लेता है। वहाँसे विनाझन-

तीर्थकर जाय, जो सब पापोंसे मुक्त करनेवाला है।

वहाँकी यात्रासे मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और

सोमलोकको जाता है। तत्पश्चात्‌ सम्पूर्ण तीथकर जलसे

प्रकट हुई गण्डकी नदीकी यात्रा करे । वहाँ जानेसे मनुष्य

याजपेय यज्ञका फल पाता ओर सूर्यलतेकको जाता है ।

धर्मज्ञ युधिष्ठिर ! वहाँसे धुवके तपोवने प्रवेश क ।

महाभाग ! वहाँ जानेसे मनुष्य यक्षल्रेकमे आनन्दका

अनुभव करता है । तदनन्तर सिद्धसेवित कर्मदा नदीकी

यात्रा करे । वहाँ जानेवाल्प्र मनुष्य पुण्डरीक यज्ञका फल

पाता और सोमल्ेकको जाता है ।

राजा युधिष्ठिर ! तत्पश्चात्‌ माहेश्वरी धाराके समीप

जाना चाहिये । वहाँ याघ्रीको अश्वमेध यज्ञका फल

मिलता है और वह अपने कुलका उद्धार कर देता है ।

देवपुष्करिणी -तीर्थमे जाकर स्नानसे पवित्रे हुआ मनुष्य

कभी दुर्गतिम नहीं पड़ता ओर वाजपेय यज्ञका फल

पाता है। इसके बाद ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए

एकाग्रचित्त हो माहेश्वर पदकी यात्रा करे । वहाँ रान

करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है । भरतश्रेष्ठ !

माहेश्वर पदमे एक करोड़ तीर्थ सुने गये हैं; उनमें सान

करना चाहिये, इससे पुण्डरीक यज्ञके फल और विष्णु-

स्त्रेककी प्राप्ति होती है, तदनन्तर भगवान्‌ नारायणके

स्थानक जाना चाहिये, जहाँ सदा ही भगवान्‌ श्रीहरि

निवास करते हैं। ब्रह्म आदि देवता, तपोधन ऋषि,

» आर्चयस्व हषीकेश्लं यदीच्छति परं पदम्‌ +

उपस्थित होकर भगवान्‌ जनार्दनकी उपासना करते है ।

वहां अद्धुतकर्मा भगवान्‌ विष्णुका विग्रह झालग्रामके

नामसे विख्यात है, उस तीर्थम अपनी महिमासे कभी

च्युत न होनेवाले और भक्तोंकों वर प्रदान करनेवाले

त्रिलोकीपति श्रीविष्णुका दर्शन करनेसे मनुष्य विष्णु-

लोकको प्राप्त होता है । वहाँ एक कुआं है, जो सब

पापॉको हरनेवाला है। उसमें सदा चारों समुद्रोंकि जल

मौजूद रहते हैं। वहाँ खान करनेसे मनुष्य कभी दुर्गतिमें

नहीं पड़ता और अविनाशी एवं महान्‌ देवता वरदायक

विष्णुके पास पहुँचकर तीनों ऋणोंसे मुक्त हो चन्द्रमाकी

भाँति शोभा पाता है। जातिस्मर-तीर्थमें स्नान करके पवित्र

एवं शुद्धचित्त हुआ मनुष्य पूर्वजन्मके स्मरणकी शक्ति

प्राप्त करता है। वटेश्वरपुरमें जाकर उपवासपूर्वक भगवान्‌

केझवकी पूजा करनेसे मनुष्य मनोवच्छित स्प्रेकोंको प्राप्त

होता है। तत्पश्चात्‌ सब पापोंसे छुटकारा दिल्नेवाले

वामन-तीर्थमें जाकर भगवान्‌ श्रीदरिको प्रणाम करनेसे

मनुष्य कभी दुर्गतिको नहीं प्राप्त होता। भरतका आश्रम

भी सब पार्क दूर करनेवाला है। वहाँ जाकर

महापातकनादिनी कौशिकी (कोसी) नदीका सेवन

करना चाहिये। ऐसा करनेवाला मानव राजसूय यज्ञका

फल पाता है ।

तदनन्तर परम उत्तम चम्पकारण्य (चप्पारन) की

यात्रा करे । वहाँ एक रात उपवास करनेसे मनुष्य सहस

गोदानोका फल पाता है । तत्पश्चात्‌ कन्यासंयेद्य नामक

तीर्थमें जाकर नियमसे रहे और नियमानुकूल भोजन

करे। इससे प्रजापति मनुके ल्प्रेकॉकी प्राप्ति होती है। जो

कन्यातीर्थे थोड़ा-सा भी दान करते हैं, उनका वह दान

अक्षय होता है। निष्ठावास नामक तीर्थमें जानेसे मनुष्य

अश्वमेध यज्ञका फल पाता और बिष्णुलेकको जाता दै ।

नरश्रेष्ठ ! जो मनुष्य निष्ठाके सङ्गममे दान करते हैं, वे

रोग-शोकसे रहित त्रह्मलेकमें जाते हैं। निष्ठा-सङ्गमपर

महर्षि वसिष्ठका आश्रम है। देवकूट-तीर्थकी यात्रा

करनेसे मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और अपने

कुलका उद्धार कर देता है। वहाँसे कौशिक मुनिके

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