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प्रयाग माहृत्म्य वणन | [ ३७३

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करता है ?।२। मह॒बि प्रवर मार्कण्डेयजी ने कहा--हे वत्स ! वहाँ पर

जो भी श्रेष्ठतम फल हुआ करता है उसको मैं जपकौ नतलाऊगा ।

पहिले प्राचीन समय में समस्त विप्रों का कथ्यमान (कहा हुआ) मैंने

श्रवण किया है ।३। प्रयाग के प्रतिष्ठान से लेकर और वासुकि के हृद

से पुर के पर्यन्त तक कम्बल और अश्वतर दो भाग हैं और बहु-मूलक

नाग है । यही प्रजापति का क्षेत्र है जो तीनों लोकों में विश्व॒त है ।३-

४। वहाँ पर मनुष्य स्नान करके दिवलोक को चले जाया करते हैं और

जिनको वहाँ पर मृत्युहो जाती है उनका पुनर्भव नहीं होता है । इसके

बाद में ब्रह्मा आदि देव सब सज्जञत होकर रक्षा किया करते हैं ।५। हे

राजन्‌ ! अन्य भी बहुत से तीर्थ हैं जो. समस्त पापों के हरण करने

वाले और परम शुभ हैं । उन सबको कहा नहीं जा सकता है चाहे

सेकड़ों ही वर्षों तक क्‍यों न वर्णन करता रहे । अब मैं अति संक्षेप से

प्रयाग का कुछ माहात्म्य कीत्तित करूँगा ।६। जो साठ धनु सहस्र है वे

जाहनबी की रक्षा किया करते हैं और सप्त वाहन सवितादेव यमुना

की रक्षा किया करते हैं ।७। | |

प्रयागं तु विशेषेण सदा रक्षति वासवः ।

मण्डलं रक्षति हरिदेंवते: सह संगतः ।८

तं बटं रक्षतिसदा शूलपाणिमहेश्वरः ।

स्थानं रक्षन्ति वं देवाः सर्वपापहरं शभम्‌ ।&

दधर्मेणावरृतो लोकेनेव गच्छति तत्पदम्‌ ।

स्वल्पमल्पतरं पापं यदा ते स्यान्नराधिप ।

प्रयागं स्मरमाणम्य सर्वमायाति संक्षयम्‌ ।१०

दशेनात्तस्य तीर्थस्य नाम संङ्कीत्तं नादपि + ।

मृत्तिका लम्भनाद्वापि नरः पापात्प्रमुच्यते: । ११. ..-.

पञ्चकरुण्डानि राजेन्द्र ! तेषां मध्ये तु जाह्नवी ।

प्रयागस्य प्रवेशेतुपापंनश्यतितत्क्षणात्‌ । १२ क

योजनानां सहस्र षु गंगायाः स्मरणान्नर; । ट

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