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(ऐसो पाया रचकर्‌) महादेव आश्रम में भिक्षुरूप में

घूमते थे और बार-बार भिक्षा मांगने लगे। इस प्रकार अपना

मायामय रूप बनाकर वे देव (शंकर) उस (देवदार) बन

में विचरे ले। उन पिनाकधारौ देव ने पर्वतपुत्री गौरी को

अपने पाश्चंभाग में कर लिया था। वह देवेश्वरी पूर्व के

सपान हो देवदार वन में महादेव के गयीं थीं।

दृष्टा समागत॑ देवं देव्या सह कर्पाईनम।

प्रणेमुः शिरसा भूमौ तोपवापामुरीश्वरम्‌॥ १९॥

यैदिकै्विविवैर्नरेरतोतरेमहिशवर

‡ |

अधर्वशिरसा चान्ये स्दादर्यन्वप्‌॥ २०॥

इस प्रकार जगजूटधारी शंकर को देवों के साथ आया

देखकर उन मुनियों ने भूमि में सिर रखकर ईश्वर को प्रणाम

किया और स्तुति की। वे विविध वैदिक मत्रों, शुभ माहेश्वर

सुक्तों, अधर्वशिर्स्‌ तथा अन्य रुद्रसम्बन्धी वेदमन्त्रों से

शंकर की स्तुति करने लगे।

नमो देवाधिदेवाय महादेवाय ते नम:।

त्यप्वकाय नपसतुभ्यं त्रिशुलवरघारिणे॥ २१॥

जमो दिग्वासमे तृभ्य विकृताय पिनाकिने।

सर्वप्रणतदेवाय स्वयमप्रणतात्मने॥ २२॥

अन्तकानतकृते तुष्वं सर्वसंहरणाय चा

नपोऽस्तु उृत्मशीलाय नपो भैरवरूपिणे॥ २३॥

नरनारीक्षरीराय योगिनां गुरवे नमः।

नमो दान्ताय शांताय तापसाय हरय च॥। २४॥

विभोषणाय स्द्राय नमस्ते कृत्तिवाससे।

नमस्ते लेलिहानाय श्रीकण्ठाय च ते नपः॥ २५॥

अघोरघोररूपाय वापदेवाव वै नपः।

नप: कनकपालाय टेव्याः प्रियकराय चा। २६॥

गद्भा्लिलघाराय शंभवे परमेष्ठिते।

नपो बोगाधिपतवे धृताथ्िपतये नपः॥ २७॥

देवो के आदिदेव को नमस्कार है। महादेव को नमस्कार

है। तठ त्रिशुल धारण करने चाले, त्रिनेत्रधारी को नमस्कार

है। दिगम्बर, (स्वेच्छा से) विकृत (रूप धारण करने वाले)

तथा पिनाकधारी को नमस्कार है। समस्त प्रणतजनों के

आश्रय तथा स्वयं निराश्रय (अप्रणत) को नमस्कार है।

अन्त करने वाले (यम) का भौ अन्त करने वाले और

सबका संहार करने वाले आपको नमस्कार है! नृत्यपरायण

और भैरवरूप आपको नमस्कार है। नर और नारी का शरीर

धारण करने वाले एवं योगियों के गुरु आपको नमस्कार है।

कूर्पपडापुराणम्‌

दान्त, शान्त, तापस (विरक्त) तथा हर को नमस्कार है।

अत्यन्त भीषण, मृगचर्मधारी रुद्र को नमस्कार है। लेलिहान

(बार-बार जिद से चाटने वाले) को को नमस्कार है,

शितिकण्ठ ( नले कंठ वाले) को नमस्कार है। अघोर तथा

घोर रूपवाले वामदेव को नमस्कार है। धतूरे कौ माला

धारण करने वाले और देवी पार्वती का प्रिय करने वाले को

नमस्कार है। गद्भाजल को धार वाले परमेष्ठी शम्भु को

नमस्कार है। योगाधिपति को नमस्कार है तथा ब्रह्माधिपति

को नमस्कार है।

प्राणाय च नमस्तुभ्यं नमो भस्मांगधारिणे।

जपते हव्यवाहाय दंष्टिणे हव्वरेतसे॥ २८॥

ब्रह्मण शिरोहत्रे नमस्ते कालरूपिणे।

आगतिं ते त जानीमों गतिं चैव च नैव च॥२९॥

प्राणस्वरूप आपको नमस्कार है। भस्म का अङ्गया

लगाने वाले को नपस्कार। हव्यवाह, दंष्टों तथा बह्िरेता

आपको नमस्कार है। ब्रह्मा के सिर का हरण करने बाले

कालरूप को नमस्कार है। न तो हम आपके आगमन को

जानते हैं और नहो गमन को हो जानते हैं।

विश्वेश्वर महादेव योऽपि सोऽसि नमोस्तु ते।

नमः प्रमधनाथाय दात्रे च शुभसंपदाम्‌॥ ३०॥

कपालपाणये तुभ्यं नमो जुष्टतमाय ते।

नयः कनकपिङ्गाय यारिलिङ्गाय ते नप:॥३ १॥

हे विश्वेश्वर! हे महादेव! आप जिस रूप में है, उसी रूप

में आपको नमस्कार है। प्रमथ गणों के स्वामी तथा शुभ

सम्पदा देने वाले को नमस्कार है। हाथ में कपाल धारण

करने वाले तथा अत्यन्त सेवित आपको को नमस्कार है।

सुवर्णं जैसे पिङ्गल और जलरूप लिङ्गं वाले आपको

नमस्कार है।

नो वह्वर्कलिङ्गाय ज्ञायलिङ्गाय ते नप:।

नमो पुजंगहाराय कर्णिकारप्रियाय च।

किरीटिने कुण्डलिने कालकालाय ते नमः॥३२॥

वामदेव महादेव देवदेव श्रिलोचन।

क्षम्यतां यत्कृतं पोहात्वमेव शरणं हि न:॥३३॥

अग्नि, सूर्य तथा ज्ञानरूप लिङ्गं बाते आपको नमस्कार

है। सपौ कौ मालावाले और कनेर का पुष्य जिसको प्रिय है,

ऐसे आपको नमस्कार है। किरोटी, कुण्डलधारी करने वाले

तथा काल के भौ काल आपको नमस्कार है। बामदेव! हैं

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