एक सौ अठहत्तरवाँ अध्याय
* अग्निपुराण *
तृतीया तिथिके व्रत
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ! अब मैं आपके
सम्मुख तृतीया तिथिको किये जानेबाले ब्रतोंका
वर्णन करूँगा, जो भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले
हैं। ललितातृतीयाको किये जानेवाले मूलगौरी-
सम्बन्धी (सौभाग्यशयन) ब्रतको सुनिये॥१॥
चैत्रके शुक्लपक्षकी तृतीयाको ही पार्वतीका
भगवान् शिवके साथ विवाह हुआ था। इसलिये
इस दिन तिलमिश्रित जलसे स्नान करके पार्वतीसहित
भगवान् शंकरकी स्वर्णाभूषण और फल आदिसे
पूजा करनी चाहिये॥२॥
"नमोऽस्तु पाटलायै" (पाटला देवीको
नमस्कार) -- यह कहकर पार्वतीदेवी ओर भगवान्
शंकरके चरणोंका पूजन करे। ' शिवाय नमः
(भगवान् शिवको नमस्कार) - यह कहकर शिवकी
ओर "जयायै नमः" (जयाको नमस्कार)--यों
कहकर गौरी देवौकी अर्चना करे । "त्रिपुरघ्नाय
रुद्राय नमः ' (त्रिपुरविनाशक रुद्रदेवको नमस्कार)
तथा * भवान्यै नमः (भवानीको नपस्कार)-
यह कहकर क्रमशः शिव -पार्वतीकी दोनों जद्चाओका
और ' रुद्रायेश्राय नमः ' (सबके ईश्वर रुद्रदेवको
नमस्कार है) एवं विजयायै नमः" (विजयाको
नमस्कार) - यह कहकर क्रमशः शंकर और
पार्वतीके घुटनोंका पूजन करे। "ईशायै नम: '
(सर्वेश्वरीकों नमस्कार)-यह कहकर देवीके
और “शंकराय नमः'-- ऐसा कहकर शंकरके
कटिभागकी पूजा करे। 'कोटव्ये नपः'
(कोटवीदेबीको नमस्कार) और “शूलपाणये
नमः ' (त्रिशूलधारीको नमस्कार)--यों कहकर
क्रमश: गौरीशंकरके कुक्षिदेशका पूजन करे।
"मङ्लायै नम: ' (म्गलादेवीको नमस्कार) कहकर
भवानीके और 'तुभ्यं नमः (आपको नमस्कार)--
यह कहकर शंकरके उदरका पूजन करे। 'सर्वात्मने
नमः' (सम्पूर्ण प्राणियोंक आत्मभूत शिवको
नमस्कार)--यों कहकर रुद्रके और "ईशान्यै
नमः' (ईशानीको नमस्कार) कहकर पार्वतीके
स्तनयुगलका पूजन करे। “देखात्मने नपः'
(देबताओंके आत्मभूत शंकरकों नमस्कार)-
कहकर शिवके और उसी प्रकार “'हादिन्ये नम: '
(सबको आह्वाद प्रदान करनेवाली गौरीको नमस्कार)
कहकर पार्वतीके कण्ठप्रदेशकी अर्चना करे।
"महादेवाय नमः ' (महादेवको नमस्कार) और
"अनन्तायै नमः ' (अनन्ताको नमस्कार) कहकर
क्रमशः शिव-पार्वतीके दोनों हाथोंका पूजन करे ।
"त्रिलोचनाय नमः' (त्रिलोचनकों नमस्कार)
और “कालानलप्रियायै नम:” (कालाग्निस्वरूप
शिबकी प्रियतमाको नमस्कार) कहकर भुजाओंका
तथा “महेशाय नमः" (महेश्वरकों नमस्कार) एवं
"सौभाग्यायै नमः” (सौभाग्यवतीको नमस्कार)
कहकर शिव-पार्वतीके आभूषणोंकी पूजा करे।
तदनन्तर “अशोकमधुवासिन्यै नमः ' (अशोक-
पुष्पके मधुसे सुवासित पार्वतीको नमस्कार) और
'ईश्वराय नमः" (ईश्वरको नमस्कार) कहकर
दोनोकि ओष्टभागका तथा 'चतुर्मुखप्रियायै नपः'
( चतुर्मुख न्नह्माकी प्रिय पुत्रवधूको नमस्कार)
और ' हराय स्थाणवे नमः ' ( पापहारी स्थाणुस्वरूप
शिवको नमस्कार) कहकर क्रमशः गौरीशंकरके
मुखका पूजन करे। "अर्धनारीशाय नमः'
( अर्धनारीश्चरको नमस्कार) कहकर शिवकी और
"अमिताङ्घायै नमः ' (अपरिमित अद्गौवाली देबीको
नमस्कार) कहकर पार्वतौकी नासिकाका पूजन
करे। "उग्राय नम: ' (उग्रस्वरूप शिवको नमस्कार)
कहकर लोकेश्वर शिवका ओर ' ललितायै नमः'
(ललिताको नमस्कार) कहकर पार्वतीकौ भौंहोंका
पूजन करे । “शर्वाय नमः" (शर्वको नमस्कार)