५ वि्ेश्वस्संडिता * क्रे
१.१५ ११११.४५.१११५.११०५१२.१४०५
स्थापना की है, उसे पौरुष लिद्ध कहते है । चुदरोको महाशुद्धि देनेजाल्ा है । स्फटिकिमय
कथा वही पतिष्ठित ल्क कहलाता है। उस लिड्ड तथा बाणलिङ्गं सब लनोरगोकौ उनकी
लिद्गकी पूजा करनेसे सदा पौरुष पेश्वर्यकी समस्त कामनाएँ प्रदान करते हैं। अपना न
अति होती है । महान ऋह्धण और पहाशचरी ङो तो दूसरेका स्फटिक या याणलिनद्ग भी
राजा किसी कारीगरसे विवलिजूका निर्माण पूजाके लिये निषिद्ध नहीं है। सियो,
कराकर जो मन्त्रपूर्वक उसकी स्थापना करते विशेषतः सधलाओंके लिये पार्थिव लिडको
दुबेल और अनित्य होता है, बह प्राकृत महर्षियो ! बच्नपनमें, जवानीमें और गरुढ़ापेमें
कहलाता हैं । भी शुद्ध स्टिकम्य सिजलिजुका पूजन
लिङ्ग, नाभि, जिह्ला, नासाप्रभाग और स्थियॉक्तों समस्त भोग प्रदान करनेवाल्ज दै ।
शिखाके क्रपसे कटि, हृदय और मस्तक गुहासक्त स्त्रियोंके लिये पीदपूजा भूतलूपर
कीनो स्थानोंमें जो लिडुकी भावना की गयी सब्यूर्ण अभीष्टको देनेवाली है।
मानते हैं। वृक्ष आदिकों पौरुषछ्िडर जानना अगहनीके चत्थलसे बने दुष् स्वीर आदि
चाहिये और गुल्म आदिको आकृतलिड्र।! पक्कान्नोंद्वारा नैवेद्य अर्पण करे। पूजाक्ते
साठी नामक धान्यको प्राकृतलिङ्ग समझना अन्तम जिजलिडुको सम्पुटमें पश्चराकर
काहिये और झालि ( अगहनी) एवं गेहूँको घरके
पौरुषलिगङ्ग । अणिमा आदि आठ मार्गी
सिद्धियोको देनेवाला जो देश्यं है, उसे पौर शिकल्टिकरू-पूजाका विधान है। रन
रेशचर्य जानना चाहिये । सुन्दर खी तथा न भिक्षादिसे प्राप्त हुए. अपने भोजेनको ही
आदि विषयक आस्तिकं पुरुष प्राकृत नैवेदारूपमें निवेदित करन याहिये ! निवत्त
ऐद्वर्य कहते है । चरलिड्जॉर्मे सबसे अशम पुरुषोकि त्वये सुक्ष्म लिगं ही ओह बताया
र्लिक्का वर्णन किया जाता है । रसलिङ्ग जाता है । ले चिभूतिके द्वारा पूजन करें और
जग्यण्णोकते उनकी सारी अभीष्ट वस्तु ओको चिभृतिक्रो ही नैयेदडरूपसे निचेदित भी करें |
कैनेवात् ई) शुभकारक खाणछिड्ु पूजा करके उस चलिङ्गको सदा अपने
क्षत्रियोंको महान् राज्यकी मसि करानेकील्प भेस्तकपरर धापा करें ।
है। सुवर्णालिड्ञ चैदयोको महमधनपतिका षद लिभूति प्रीन अकारकी बतायी गयी
भदान करनेवाला है तथा सुन्दर शिवलिद्॒दै--सतेकाप्निजनित, जेदोमिजवित औप