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पूर्वभाग-प्रधम पाद

हजार वर्षोतक रहना पड़ता है। तत्पश्चात्‌ उन्हें

खारे पानीसे नहलाया जाता है। मनुजेश्वर! जो

ऋतुकालमें अपनी स्त्रीसे सहवास नहीं करते, वे

ब्रह्महत्याका फल पाते और घोर नरकमें जाते हैं।

जो किसीको अत्याचार करते देखकर शक्ति होते

हुए भी उसका निवारण नहीं करता, वह भी उस

अत्याचारके पापका भागी होता है और बे दोनों

नरकमें पड़ते हैं। जो लोग पापियोंके पापोंकी

गिनती करके दूसरोंको बताते हैं, वे पाप सत्य

होनेपर भी उनके पापके भागी होते हैं। राजन्‌!

यदि वे पाप झूठे निकले तो कहनेवालेको दूने

पापका भागी होना पड़ता है। जो पापहीन पुरुषमें

पापका आरोप करके उसकी निन्दा करता है, वह

चन्द्रमा और तारोंके स्थितिकालतक घोर नरके

रहता है। जो व्रत लेकर उन्हें पूर्ण किये बिना ही

त्याग देता है, वह असिपत्रवनमें पीड़ा भोगकर

पृथ्वीपर किसी अड्भसे हीन होकर जन्म लेता है।

जो मनुष्य दूसरोंद्वारा किये जानेवाले ब्रतोंमें विघ्न

डालता है, वह मनुष्य अत्यन्त दुःखदायक और

भयंकर श्लेष्म भोजन नामक नरकमें, जहाँ कफ

भोजन करना पड़ता है, जाता है। जो न्याय करने

तथा धर्मकी शिक्षा देनेमें पक्षपात करता है, वह

दस हजार प्रायश्चित्त कर ले तो भी उस पापसे

उसका उद्धार नहीं होताः । जो अपने कटुबचनोंसे

ब्राह्मणॉंका अपमान करता है, वह न्रह्महत्याको

प्राप्त होता है और सम्पूर्ण नरकोंकी यातनाएँ

भोगकर दस जन्मोंतक चाण्डाल होता है। जो

ब्राह्मणको कोई चीज देते समय विघ्न डालता है,

उसे ब्रह्महत्याके समान प्रायश्चित्त करना चाहिये ।

जो दूसरेका धन चुराकर दूसरोंकों दान देता है,

बह चुरानेवाला तो नरकमें जाता है और जिसका

कदे

धन होता है, उसीको उस दानका फल मिलता है ।

जो कुछ देनेकी प्रतिज्ञा करके नहीं देता है, वह

लालाभक्ष नरकमें जाता है । राजन्‌ ! जो संन्यासीकौ

निन्दा करता है, वह शिलायन्त्र नामक नरकमें

जाता है । बगीचा काटनेवाले लोग इक्कीस युगोंतक

श्रभोजन नामक नरकमें रहते हैं, जहाँ कुत्ते उनका

मांस नोचकर खाते है । फिर क्रमशः वह सभी

नरकॉकी यातनाएँ भोगता है ।

भूपते ! जो देवमन्दिर तोडते, पोखरा नष्ट करते

और फुलवारी उजाड़ देते हैं, बे जिस गतिको प्राप्त

होते हैं, वह सुनो। वे इन सब यातनाओं (नरकों)-

में पृथक्‌ -पृथक्‌ पकाये जाते हैं। अन्तमें इक्कोस

कल्पोंतक वे विष्ठाके कीड़े होते हैं। रजन्‌! उसके

बाद वे सौ बार चाण्डालकी योनिमें जन्म लेते हैं।

जो जूठा खाते और मित्रोंसे द्रोह करते हैं, उन्हें

चन्द्रमा और सूर्यके स्थितिकालतक भयंकर

नरकबातनाएँ भोगनी पड़तो हैं। जो पितृयज्ञ और

देवयज्ञका उच्छेद करते तथा वैदिक मार्गसे बाहर

हो जाते हैं, वे पाखण्डीके नामसे प्रसिद्ध हैं। उन्हें

सब प्रकारकौ यातनां भोगनी पड़ती हैं। राजा

भगीरथ ! इस प्रकार पापियोंके लिये अनेक प्रकारकी

यातनाएँ हैं। प्रभो! मै नरको और उनकी यातनाओंकी

गणना करनेमें असमर्थ हूँ। भूपते ! पापों, यातनाओं

तथा धर्मोकी संख्या बतलानेके लिये संसारमें

भगवान्‌ विष्णुके सिवा दूसरा कौन समर्थ है ? इन

सब पापोंका धर्मशास्त्रकी विधिसे प्रायश्चित्त कर

लेनेपर पापराशि नष्ट हो जाती है। धार्मिक

कृत्योंमें जो न्‍्यूनाधिकता रह जाती है, उसकी

पूर्तिके लिये लक्ष्मीपति भगवान्‌ विष्णुके समीप

पूर्वोक्त पापोंके प्रायश्चित्त करने चाहिये। गङ्गा,

तुलसी, सत्सङ्ग, हरिकीर्तन, किसके दोष न

१. न्याये च धर्मशिश्चायां पक्षपातं करोति यः। न तस्य निष्कृतिर्भूय: प्रा्यधि्तायुतैरपि ॥

(ना पूर्व० १५॥ ११९)

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