३५२ क संक्षिप्त
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५ 9 कोहि कमतो 9.9 भेको तति 9.४.५9१... 9५४9४ १५999
पुण्यशील परह्मत्मा ही देख सकते धे । पति-
सर्वश्र पवित्र कर रेखा थो । उनमें महाभाग
अआुरवीर दैत्य और श्रुति-स्मृतिके अर्धक तत्वज्ञ
एवं स्वधर्मपरायण ब्राह्मण अपनी सियो तथा
युत्रोके साधं निवास करते भे । उनमें मयद्वारा
सुरक्षित ऐसे सुदृढ़ पराक्रमी वीर भरे हुए थे,
जिनके केदो नील कपल्के समान नीले और
चुँंपराले घे 4 ये सभी सुशिक्षित थे, जिससे
उनमें सदा चुद्धकी छाल्सा भरी रहती थी । ये
बड़े-यड़े समरोसे प्रेम करनेयाले थे, ब्रह्मा और
शिवका पूजन करनेसे उनके पराक्रम विशुद्ध
थे; ले सूर्य, मख्द्गण और महेन्द्रके समान
खी थे और देवताओंके मथन करनेवाले थे ।
चेद, शाखो और पुराणॉमें जिन-जिन धर्मोकता
वर्णन किया गया है, वे सभी धर्म और शिवके
ग्ेमी देवता यहाँ चारो ओर व्याप्त थे। उन
ले दैत्य सदा
बाधित करके विश्ञाल्ल राज्यका उपभोग करने
रझूगें। पुने! इस प्रकार वहाँ निवास
करनेवाले उन पुण्वात्पाओंके सुख एवं
आतिपूर्वक उत्तम राज्यका पालन करते हुए
यहूत लेखा काल व्यतीत हो गया ।
(अध्याय १)
तारक-पुत्रोंके प्रभावसे संतप्त हुए देवोकी ब्रह्माके पास करुण पुकार,
ब्रह्मका उन्हे दिके पास भेजना, शिवकी आज्ञासे देवोंका
विष्णुकी हरणपमें जाना और विष्णुका उन दैत्योंको
मोहित करके उन्हें आचार-भ्रष्ट करना
सनत्कुमारजी कहते. हैं--महर्षे ।
तदनन्तर तारक-पुत्रोंके प्रभावसे दग्धं हुए इनदर
आदि सभी देवता दुःखी हो परस्पर सलाह
करके ब्रह्माजीकी झरणमें गये । वहाँ सम्पूर्ण
देवताओंने दीन होकर प्रेमपूर्वक पिताभहकों
प्रणाप किया और अवसर देखकर उनसे
अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा ।
देखता जोछे-- धात्तः ! त्रिपुरोंके स्वामी
तारक-पुत्रोने. तथा समस्त
स्वर्गवासियोको संप्र कर दिया है । ग्रहान् !
इसीलिये हमर्परेग दुःखी होकर आपकी
कझरणमें आये है) आप उनके वधका
कोई उपाय कीजिये, जिससे हमत्ओोग सुखसे
रह सकें ।
व्रह्माजीने कर्ा -- देवगणो ! तुम्हें उन
दानवोसे त्रिज्लेष भय नहीं करना चाहिये । मैं
उनके धका उपाय बतरूतता हूँ। भगवान्
शिब तुम्हारा कल्याण करेंगे। मैंने ही इन
दैल्योंको बढ़ाया है, अतः मेरे हाथों इनका यथ
होना उचित नहीं। साध ही प्रिपुरमें इनका
पुण्य भी युद्धिगत होता रहेगा । अतः
इन्द्रसाहित सभी देवता शियजीसे प्रार्थना
करें। थे सर्वाधीश यदि प्रसन्न हो जायेंगे तो ये
ही तुमल्तेगोका कार्य पूर्ण करेंगे।
सनेत्कुमारजी कहते हैं--थ्यासजी !
ब्रह्माजीकी यह वाणी सुनकर इन्द्रसहित सभी
देवता दुःखी हो उम्र स्थानपर गये, जहाँ
वृषभध्वज द्विव आसीन थे। तब उन सबने