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३६४ क श्री लिंग पुराण

प्रमाण अन्न तथा शुक्ति के परिमाण में तिल तथा आधे

जौ। परिमाण के अनुसार फल, दूध, दही का परिमाण

घी के समान है। शान्ति कर्म हो तो केवल शिवागिन में

हवन करे। लौकिक उपचार की अग्नि में मोहन उच्चाटन

आदि का कर्म करे।

ॐ बहुरूपायै मध्य जिह्वायै अनेक वणय

दक्षिणोत्तर मध्यगायै शान्तिकपौष्टिक मोक्षादि फल

प्रदायै स्वाहा ॥ १॥

ॐ हिरण्यायैचामी कराभायै ईशान जिह्वायै ज्ञान

प्रदायै स्वाहा ॥ २ ॥

ॐ कनकायै कनक निभायै रभ्यायै ऐन्द्रिजिल्लायै

स्वाहा ॥ ३ ॥

ॐ रक्तय रक्त वर्णायै आग्नेय जिह्वायै अनेक वणय

विद्वेषण मोहनायै स्वाहा ॥ ४ ॥

ॐ कृष्णायै नैत्त जिह्वायै मारणायै स्वाहा ॥ ५॥

ॐ सुप्रभायै पश्चिम जिह्लायै मुक्ताफलायै

शान्तिकायै पौष्टिकायै स्वाहा ॥ ६॥

ॐ अभिव्यक्तायै वायव्य जिह्वायै शत्रुच्चाटनायै

स्वाहा ॥ ७॥

ॐ यहये तेजस्विन स्वाहा ॥ ८ ॥

उपर्युक्त मन्त्रो द्वारा वद्धि का संस्कार कराना चाहिये ।

नैमित्तिक कर्मों में इनके द्वारा शिवाग्नि कार्य करना

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