Home
← पिछला
अगला →

रुद्गसंहिता + १९९

[2

निर्भय कीजिये । पहाप्रभो } उस यज्ञम

दक्ष आदि सभी दुष्टोनि ध्रमंडमें आकर

आपका विदोषरूपसे अपमान किया है।

कल्याणकारी कलिव ! इसे प्रकार हमने

अपना, सत्तीदेवीका और मूह बुद्धिवारे दक्ष

आदिका भी सारा चृत्तान्त कह सुनाया अव

आपकी जैसी इच्छा हो, वैसा करें।

ब्रह्माजी कहते है--नारद ! अपने

पार्षदोंकी यह बात सुनकर भगवान्‌ दिवन

कीक सारी घटना जाननेके लिये शीघ्र ही

तुम्हारा स्मरण क्रिया । देवधें ! तुम दिव्य

वृष्टिसे सम्पन्न हो। अत्तः भेगवानके स्मरण

करनेपर तुम तुरंत वहाँ आ पहुँचे और

इॉकरजीकों भक्तिपूर्वक प्रणाम करके खड़े

हो गये । स्वापी दिवने तुम्हारी प्रशंसा करके

तुमसे दक्षयज्ञमें गयी हुई सतीका समाचार

जगा दूसरी घटनाओंकों पूछा। तात !

झम्भुके पूछनेपर शिखमें मन लगाये

कि

रखनेघाले तुमने ज्ञौघ्न ही वह सारा वृत्तान्त

कह सुनाया, जो दक्षयज्ञमें घटित हुआ था।

मुने | तुम्हारें सुखसे निकली हुई

सुनकर उस समय महान रौद्र पराक्रमसे

सम्पन्न सर्वेश्वर सुने तुरंत ही बड़ा भारी क्रोध

प्रकट किया । स्लेकसंहारकारी स्ने अपने

सिरभे एक जटा दखादी और उसे रोघपूर्तक

उख पर्वते ऊपर दे प्रारा । मुने } भगवान्‌

डौकरके पटकनेसे उस जटाके दो दुक्डे हो

गये और महाप्रकूथके सपान भयंकर झाब्द

प्रकट हुआ । देवर्षे ! उस जटाके पूर्वभागसे

महाभयंकर महाखली वीरभद्र प्रकट हुए,

जो समस्त शिवगणोंके अगुआ हैं। ये

भ्रूपण्डल्ूको सब्र ओरसे व्याप्त करके उससे

भी दस अंगु अधिक होकर खड़े हुए | चे

देखनेमें प्रल्रयाध्रिके समान जान पड़ते थे।

उनका शारीर बहुत ऊँचा था। चे एक हजार

भुजाओंसे युक्त थे। उन सर्वसमर्थ महास्द्रके

क्रोधपूर्वक प्रकट हुए निःश्वाससे सौ

श्रकारके ज्वर और तेरह प्रकारके संनिपात

रोग पैदा हो गये। लात ! उस जटाके दूसरे

भागसे महाकाली उत्पन्न हुईं, जो बड़ी

भर्यक्तर दिखायी देती थीं। वे करोड़ों धूर्तोसि

घिरी हुई थीं। जो ज्वर पैदा हुए,

सच -के-सख शोरीरघारी, कूर और समस्त

स्त्रेकोंके लिये भयंकर थे । वे अपने तेजसे

अन्यछित हयो भ्रव ओर दाह उत्पन्न करते

हुए-से प्रतीत होते थें। चौरअद्र याक्तचीत

करमेमें बड़े कुशल थे। उन्होंने दोनों

हाध जोड़कर परमेश्वर शिक्षकों प्रणाम

करके कहा ।

वीरभद्र बोले--महारुद्ध ! सोम, सूर्य

और अप्निको तीन नेत्रोकि रूपमे धारण

करनेवाले प्रभो ! शीघ्र आज्ञा दीजिये ।

← पिछला
अगला →