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माहेश्वरखण्ड-केदारखण्ड ] # पिष्यलादका जन्म, सुयर्चोका पतिछोकगमन #

दे9

ननन

धायके दूधमें निवास करनेवाले देवेश ! देवदेवेश्वर !

फरमेंश्वर ! मैंने गायके दूधसे आपको कयन कराया दै, कृपया

इसे स्वीकार करें ।,

( इथि -जान-मन््र )

शुक्रा कैव महादेव आपनं कारयते मया ।

शृण च मया दुतं सुप्रसन्नो भवाच्च नें ॥

महादेवजी ! मैं दरीसे आफ्को स्नान करवा रहा हूँ । मेरे

दवाय स्मफित यह दभि-क्ान आप स्वीकार करें तथा आज

मुझपर निश्चय ही अत्यन्त प्रसन्न हों ।?

( घृत-खान-मस्त्र )

सर्पिषा च मया देव खपन॑ क्रियतेऽधुना ।

गृण शद्धया दस तब धरीस्यर्मेव च ध

“देव ! अव मैं धीसे आपको कान करा रहा हूँ। मेरे

द्वारा आपकी प्रसन्नताके लिये अद्धापूर्यक समर्पित यह घुत-

श्ञान आप अन्ञीकार करें ।›

( मघु-खान-मन्तर )

इदं मधु मया दत्त तब शुषटथरपंमेव च ।

शूष्धाण स्वं हि देवेश मम दान्तिप्रदो भव ॥

“देवेश्वर ! आपके लन्तोपके छिये मेरा दिया हुआ यह मधु

आप ग्रहण करें तथा मेरे छिये शान्तिदायक बने ।›

( श्करा-खरान-मन्त्र )

सिक्तया देवदेगेस शपनं क्रियते मया ।

शष्ट श्रवा वत्ता सुप्रसन्नो भव प्रभो ॥

नेक्देवेश्वर ! मैं मिश्री (या शक्कर ) से आपको सघन

करा रहा हूँ । प्रभो ! भद्धापूर्यक दी हुई इस मिभी (या शर्करा )

को आप स्वीकार करें तथा मुझपर भष्ठीभोति प्रसन्न हों |?

इस प्रकार पद्चामृतद्वारा भगवान्‌ दृषध्वजको खान कराना

चाहिये | स्यान्‌ बुद्धिमान्‌ पृरुष तौबेके अर्य ग्या अर्यं

प्रदान करें

( अर्ध्य-मन्त्र )

अर््योऽति स्वमुसाकास्त स्व्येजानेन यै प्रभो।

शूहाण श्वं मया दशं प्रसन्नो भव शहर ॥

ध्डमावक्षभ ! प्रभो | आप इस अर्ध्यंदवारा पूजन करनेयोग्य

हैं । भगवान्‌ शङ्कर ! मेरे दिये हुए अर््यकों आप प्रदण करें

भौर दृक्तपर प्रसन्न हों |

( पाद्मन्‍्ज )

मवा दत्त तु ॒ ते पां पुष्पगन्थसमन्वितम ।

शृण देवदेवेश प्रसन्नो वरदौ अवः ॥

“देवदेवेश ! मेरे द्वारा आपको समपि? गन्ध पु्वयुक्त यह

पाच ( पाँच फलारनेके लिये जल ) आप ग्रहण करें तथाः प्रसन्न

होकर मेंरे छिये बरदायक बने ।

( आसनसमर्पण-मन्त्र )

विष्टरं विष्टरेणैय मया दत्तं च वै प्रभो।

शान्त्यर्थं तव देवेशा बरदों भव मे सदा #

शरभो ! मैंने आपके सन्तोषके चि कुशनिर्मित आसन

समर्पित किया दै । देवेश्वर ! आप मेरे छिये सदा चरदावक

बने रहें ।?

( आचमन-मन््र )

आचमनं मया दत्तं तब विश्वेश्वर प्रभो।

गृहाण परमेशान तुष्टो भव ममाद वै ॥

श्रमो ! विद्येश्वर ! मैने आपको यह आचमना्थं जछ

छ्मर्पिति किया रे । परमेश्वर ! आप इते ग्रहण करें और आज

अह्यप्रन्थिसमायुक्त

बज्ञोपवीत॑ सौवर्ण मया वुत्तं तब प्रमो ॥%

पभो ! यह सुवर्ण रंग ८ पीत ) यज्ञोपवौत मैंने

आपकी चेवामे प्रस्तुत किया है; यदं॑ब्ष्न्थसे युक्त दै

तथा ब्रह्मफर्म ( वेदिक यरे-वागादि तथा भगवश्ीत्यर्य कर्म)

में लगानेत्रात है ।

( बस्र-मन्धर )

धूलद्‌ वासो मवा दत्त सोत्तरोग॑ सुशोभनम्‌ ।

गहाण स्वं मदादेव समायुप्यप्रदो भव ॥

“मद्रादेवजी ! मैंने यह चादरसहित परम मुन्दर क्न

आ मेंट किया है; आप इसे अ्रदण करें और मुझे आधु

प्रदान करें ।!

( चन्दन-मन्ब )

सुगन्धं चन्दुनं देव मया दुत्त तु ते प्रभो।

भक्त्या परमया शम्भो सुगन्धं कुश माँ-भव ॥

# पाकनतर इस धकार दै--

अ्ोपचौतं सौबर्ण क्रपा धतं च श्र ।

शृषयान परया तुष्टया पृष्टो. धव ए स्या ॥

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