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“ ॐकारयुक्त बताये गये हैं। अन्तमें तिल और घी | देनेवाले हैं। जो पूजाके इन मन्त्रोंका पाठ करेगा,

आदिसे होम करे। इस प्रकार ये देवता और मन्त्र | वह समस्त भोगोंका उपभोग कर अन्तमें देवलोककों

धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष-चारों पुरुषार्थ | प्राप्त होगा॥ २५-२७ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “विष्णु आदि देवताओंकी सामान्य पूजाके विधानका वर्णन

नामक इक्ीसवाँ अध्याय पृरा हुआ॥ २९ #

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बाईसवाँ अध्याय

पूजाके अधिकारकी सिद्धिके लिये सामान्यतः स्नान-विधि

नारदजी बोले-- विप्रवरो! पूजन आदि

क्रियाओंके लिये पहले स्नान-विधिका वर्णन

करता हूँ। पहले नृसिंह-सम्बन्धी बीज या मन्त्रसे

मृत्तिका हाथमें ले। उसे दो भागोंमें विभक्त कर

एक भागके द्वारा (नाभिसे लेकर पैरोंतक लेपन

करे, फिर दूसरे भागके द्वारा) अपने अन्य सब

अज्ोंमें लेपन कर मल-स््रान सम्पन्न करे । तदनन्तर

शुद्ध स्नानके लिये जलमें डुबकी लगाकर आचमन

करे। “नृसिंह '-मन्त्रसे न्यास करके आत्मरक्षा

करे। इसके बाद (तन्त्रोक्तं रीतिसे) विधि-स्नान

करे" और प्राणायामादिपूर्वक हृदयमें भगवान्‌

विष्णुका ध्यान करते हुए * ॐ नमो नारायणाय'

इस अष्टाक्षर-मन्त्रसे हाथमें मिट्टी लेकर उसके

तीन भाग करें। फिर नृसिंह-मन्त्रके जपपूर्वक

(उन तीनों भागोंसे तीन बार) दिग्बन्धरँ करे।

इसके बाद ' ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।' इस

वासुदेव-मन्त्रका जप करके संकल्पपूर्वक तीर्थ-

अपने शरीरका और आराध्यदेवकी प्रतिमा या

ध्यानकल्पित विग्रहका मार्जन करे । इसके बाद

अधमर्षण-मन्त्रका जपकर वस्त्र पहनकर आगेका

कार्य करे। पहले अङ्गन्यास कर मार्जन-मन्त्रोंसे

मार्जन करे। इसके बाद हाथमें जल लेकर

नाययण-मन्त्रसे प्राण-संयम करके जलको नासिकासे

लगाकर सूँघे। फिर भगवान्‌का ध्यान करते हुए

जलका परित्याग कर दे। इसके बाद अर्घ्यं देकर

(* ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।' इस) द्वादशाक्षर-

मन्त्रका जप करे। फिर अन्य देवता आदिका

भक्तिपूर्वक तर्पण करे। योगपीठ आदिके क्रमसे

दिक्पालतकके मन्त्रों ओर देवताओंका, ऋषिर्योका,

पितरोका, मनुष्योंका तथा स्थावरपर्यन्त सम्पूर्ण

भूतोंका तर्पण करके आचमन करे। फिर अङ्गन्यास

करके अपने हदये मन्त्रोंका उपसंहार कर

पूजन-मन्दिरमें प्रवेश करे। इसी प्रकार अन्य

पूजाओंमें भी मूल आदि मन्त्रोंसे स्नान-कार्य

जलका स्पर्श करे। फिर वेद आदिके मन्त्रौसे | सम्पन्न करे॥ १--९॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुयणमें 'पूजाके लिये सामान्यतः स्नान-विधिका वर्णन " नामक

बाईसवाँ अध्याय पूरा हुजा॥ २२ #

१. नृसिंह -बीन ' क्षौ' है । मन्त्र इस प्रकार है--

ॐ> उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्‌। नृसिंहं भीषणं भदरं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्‌ ॥

सोमशम्भुकी कर्मकाण्डक्रमायलोके अनुसार मिट्टीके एक भागको नाभिसे लेकर पैरॉतक लगाबे और दूसरे भागकों शेष सारे

शरौरमें। इसके बाद दोनों हाथोंसे आँख, कान, नाक बंद करके जलमें डुबकी लगावे। किर मन-ही -मन कालापिके समान तेजस्वी

अखका स्मरण करते हुए अलसे बाहर निकले। इस तरह मलख्नान एवं संध्योपासन सम्पन्न करके (न्तरोक्त रौतिसे) बिधि-खात

करता चाहिये (द्रष्टव्य श्लोक ९, १० तथा ११)।

३. प्रत्येक दिशामें ककि विप्रकयरक भू्तोको भग्ठनेकी भावनासे उक्त मृत्तिकाकों बिखेरना 'दिग्बन्ध' कहलाता है।

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