५= |] ॥ [ मत्स्य पुराण
भवन कौलास पर्वत के शिखर के समान आकार वाला था और विश्व-
कर्मा के द्वारा इसकी रचता की गयी थी । महान् भीम स्वरूप वाला
जिसका जलरक्त वर्ण का था ऐसा लोहित नाम बाला सागर-उदय
महाशयल जिसकी सौ योजन ऊँचाई थी--मोघों की पंक्तियों से निषे-
वित सुवर्णं वँदिक जो पुष्पित कणिकार, णाल, ताल, तमल, सूर्य के
सहण जात रूपमय द्रमों से भ्राजमान था ।६८-७०।
अथो मुखश्च विख्यातः सवतो धातुमण्डितः ।
तमालवनगन्धश्च पवेतो मलयः शुभः ।७१
सु राष्टूश्च सवाल्हीकाः शूरभी रास्थेव च ।
भोजाः पाण्डयाश्च व ज्श्चाकलि _्गास्ताञ्रलिप्तका ।७२
तथेवोड्ाश्च पौण्डश्च वामचूडाःसकेरलाः ।
क्षोभितास्तेन दैत्येन सदेवाश्चाप्सरोगणः ।७२
अगस्त्यभवनञ्चेव यदगम्यडः कृतं पुरा ।
सिद्धचा रणसङ्कुं श्च वि प्रकीणे मनोहरम् ।७४
विचित्रनानाविहगं सुपुष्पितमहाद्र. मम् ।
जातरूपमयैः शु ङ्क गंगनं विलिखन्निव ।७५
चन्द्रसूर्या शुसंकाशैः सागराम्बुसमावृतैः ।
विद्य त्तवान् सर्वे: श्री मानायतः शतयोजनम् ।७६
विद्यतां यत्र सद्खाता निपात्यन्ते नगोत्तमे ।
ऋषभः पर्वतश्जेव श्रीमान् वृषभसंजितः ।७७
अयोमुख परम विख्यात था जो सभी ओर से धातुओं से मण्डित
था तथा तमाल के बनो की गन्ध से युक्त मलय पर्वत परम शुभ था ।
सुराष्ट्र, बाहलीक, शूर, आभीर, भोज, पाण्ड्य, वङ्ग, कलिड्भ, ताम्र-
लिप्त, उडगा पौण्ड्, वासचूड़, केरल इन सव देशों को उस दैत्य ने
कोभ युक्त बना दिया था और देवों के सहित अप्सराओं के समुदाय
को भौ क्षुब्ध कर दिया था।७१। ७२ । ७३। अगस्त्य भवन