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क्रोष्टु आदिके वंशका वर्णन तथा स्यमत्तकमणिकी कथा * ३७

आश्चर्यम डालकर वे अन्त :पुरमें पहुँचे। सत्राजित्ने | | चरण-चिह्रोंसे पहचाना गया। उन्हीं चिहोंके द्वारा

बह उत्तम मणि अपने छोटे भाई प्रसेनजित्‌को दे | भगवान्‌ श्रीकृष्ण जाम्बवान्‌को गुफाके द्वारपर

दी, क्योकि उसको वे बहुत प्यार करते थे। वह | पहुँचे। वहाँ उन्हें विलके भीतरसे किसी धायकी

मणि अन्धकवंशी यादर्वोकि घरमे सुवर्णं उत्पन्न ' कही हुई यह वाणी सुनायी दी-' मेरे सुकुमार

करती थी। वह जहाँ रहती, उसके निकटवर्ती | बच्चे! तू मत रो। सिंहने प्रसेनकौ मारा ओर सिंह

जनपदे मेघ समयपर वर्षा करता तथा किसीको | जाम्बवान्‌के हाथसे मारा गया । अब यह स्यमन्तक-

रोगका भय नहीं रहता था। एक बार भगवान्‌ | मणि तेरी ही है।

श्रीकृष्णने प्रसेनके सम्मुख वह स्यमन्तक नामक गर

मणिरत्र लेनेकी इच्छा प्रकट की किन्तु उसे वे |

नहीं पा सके। समर्थ होनेपर भी भगवान्‌ने

उसका बलपूर्वक अपहरण नहीं किया।

एक दिन प्रसेन उस मणिरत्रसे विभूषित हो

वनम शिकार खेलनेके लिये गये। वहाँ स्यमन्तकके

लिये ही एक सिंहके हाथसे मारे गये। सिंह उस | थे

ही महाबली खान चार उपर आ निकते। | ४

ही महाबली ऋक्षराज जाम्बवान्‌ उधर आ निकले ।

वे सिंहको मारकर मणिरत्न ले अपनी गुफामें चले

गये। इधर वृष्णि ओर अन्धक -वंशके लोग यह

संदेह करने लगे कि हो-न-हो श्रीकृष्णने ही |

मणिके लिये प्रसेनका वध किया है; क्‍योंकि

उन्होंने एक बार बह मणि प्रसेनसे माँगी थी।

भगवान्‌ श्रीकृष्णने यह कार्य नहीं किया था तो भी यह आवाज सुनकर भगवान्‌ श्रीकृष्णने उस

उनपर संदेह किया गया; अत: अपने कलङ्कका | गुफाके ट्वारपर बलरमजीके साथ अन्य यादबोंको

मार्जन करनेके लिये वे मणिको ढूँढ़ लानेकी | विटा दिया और स्वयं उन्होंने गुफाके भीतर प्रवेश

प्रतिज्ञा करके वनमें गये। कुछ विश्वसनीय पुरुषोंके | किया। बिलके भीतर जाम्बवान्‌ दिखायी दिये।

साथ प्रसेनके चरण-चिद्टोंका पता लगाते हुए वे | भगवान्‌ बासुदेवसे लगातार इक्कीस दिनोंतक

उस स्थानपर गये, जहाँ प्रसेन शिकार खेल रहे | उनके साथ बाहुयुद्ध किया। इसी बीचमें बलदेव

थे। गिरिवर ऋक्षवान्‌ तथा उत्तम पर्वत विन्ध्यपर | आदि यादव द्वारका लौट गये और सबको श्रीकृष्णके

उनका अन्वेषण करते हुए वे लोग थक गये। | मारे जानेकी सूचना दे दी। इधर भगवान्‌ वासुदेवने

अन्तमें श्रीकृष्णने एक स्थानपर घोड़ेसहित मरे | महाबली जाम्यवानूकौ प्रस्त करके उनकी कन्या

हुए प्रसेनकी लाश देखी, किन्तु वहाँ मणि नहीं | जाम्यवतीको उन्हींके अनुरोधसे ग्रहण किया।

मिली। तदनन्तर थोड़ी ही दूरपर ऋक्षके द्वारा मारे | साथ ही अपनी सफाई देनेके लिये वह स्यमन्तक-

गये सिंहका शरीर दिखायी पड़ा। ऋक्ष अपने | मणि भी ले ली। तत्पश्चात्‌ ऋक्षराजकी अध्यर्थना

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