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पघातालखण्ड ]

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श्रीरामचन्द्रजीकी बात सुनकर माता कौसल्याने

अपने पैरोॉपर पड़ी हुई पतिव्रता बहू सीताको आशीर्वाद

देते हुए कहा--“मानिनी सीते ! तुम चिरकालतक अपने

पतिकी जीवन -स्गिनी बनी रहो। मेरी पवित्र स्वभाव-

वाली बहू! तुम दो पुत्रोंकी जननी होकर अपने इस

कुलको पवित्र करो । बेटी ! दुःख-सुखमें पतिका साथ

देनेवाली तुम्हारी-जैसी पतित्रता स्त्रियाँ तीनों लोकों

कहीं भी दुःखकी भागिनी नहीं होती--यह सर्वथा सत्य

है। बिदेहकुमारी ! तुमने महात्मा रामके चरणकमलॉका

अनुसरण करके अपने ही द्वारा अपने कुलको पवित्र कर

दिया! सुन्दर नेत्रॉवाली श्रीरघुनाथपत्री सीतासे यों

कहकर माता कौसल्या चुप हो गयीं । हर्षके कारण पुनः

उनका सर्वाङ्ग पुलकित हो गया।

तदनन्तर श्रीरामचन्द्रजके भाई भरतने उन्हें

पिताजीका दिया हुआ अपना महान्‌ राज्य निवेदन कर

दिया। इससे मन्त्रियोंको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने

मन्त्रके जाननेवाले ज्योतिषिर्योको युतक

राज्याभिषेकका मुहूर्त पूछा और उद्योग करके उनके

बताये हुए उत्तम नक्षत्रसे युक्त अच्छे दिनको शुभ मुहूर्तमें

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» देवताओंद्वारा श्रीरामकी स्तुलि, श्रीरापका उन्हे वरदान तथा रामराज्यका वर्णन «

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बड़े हर्षके साथ राजा श्रीरामचन्द्रजीका अभिषेक

कराया। सुन्दर व्याघ्रचर्मके ऊपर सातो द्वीपॉसे युक्त

पृथ्वीका नकदा बनाकर राजाधिराज महाराज श्रीराम

उसपर विराजमान हुए । ` उसी दिनसे साधु पुरुषोंके

हदयमे आनन्द छा गया । सभी सिया पतिके प्रति

भक्ति रखती हुई पतित्रत-धर्मके पालने संलग्न

हो गयीं । संसारके मनुष्य कभी मनसे भी पापका

आचरण नहीं करते थे । देवता, दैत्य, नाग, यक्ष, असुर

तथा बड़े-बड़े सर्प--ये सभी न्यायमार्मपर स्थित होकर

श्रीरामचन््रजीकी आज्ञाको शिरोधार्य करने कगे । सभी

परोपकारमें लगे रहते थे। सबको अपने धर्मके

अनुष्ठाने ही सुख और संतोषकी प्राप्ति होतीं थी।

क्द्यासे ही सबका विनोद होता था। दिन-रात

शुभ कर्मोपर ही सबकी दृष्टि रहती थी। श्रीरामके

राज्यमें चोगेंकी तो कहीं चर्चा ही नहीं थी। जोरसे

चलनेवाली हवा भी राह चलते हुए पथिकोकि सूक्ष्म-

से-सूक्ष्म वल्को भी नहीं उड़ाती थी। कृपानिधान

श्रीरामचन्द्रजीका स्वभाव बड़ा दयालु था। वे याचकंकि

लिये कुबेर थे।

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देवताओंदवारा श्रीरामकी स्तुति, श्रीरामका उन्हे वरदान देना तथा रापराज्यका वर्णन

शोषजी कहते हैं--मुने ! जब श्रीरामचन्द्रजीका

राज्याभिषेक हो गया तो राक्षसराज रावणके वधसे

प्रसन्नचित्त हुए देवता ओनि प्रणाम करके उनका इस प्रकार

स्तवन किया।

देवता बोले--देवताओंकी पीड़ा दूर करनेवाले

दकश्षरथनन्दन श्रीराम ! आपकी जय हो । आपके द्वारा जो

राक्षसराजका विनाश हुआ है, उस अद्भुत कथाका

समस्त कविजन उत्कण्ठापूर्वक वर्णन करेंगे। भुवनेश्वर !

प्रलषकालमें आप सम्पूर्ण ल्लोकोंकी परम्पराको

लीत्त्रपर्वक ग्रस लेते हैं। प्रभो ! आप जन्म और जरा

आदिके दुःखोसे सदा मुक्त है । प्रबल शक्तिसम्पन्न

परमात्मन्‌ ! आपकी जय हो, आप हमारा उद्धार

कीजिये, उद्धार कीजिये। धार्मिक पुरुषेकि कुलरूपी

समुद्रम प्रकट होनेवाले अजर-अमर और अच्युत

परमेश्वर ! आपकी जय हो । भगवन्‌ ! आप देवता ओसि

ष्ठ रै । आपका नाम लेकर अनेकों प्राणी पवित्र हो गये;

फिर जिन्होंने श्रेष्ठ द्विज-वेामे जन्म ग्रहण करके उत्तम

मानब-झरीरको प्राप्त किया है, उनका उद्धार होना कौन

बड़ी बात है ? शिव और ब्रह्माजी भी जिनको मस्तक

झुकाते हैं, जो पवित्र यव आदिके चिह्ोंसे सुशोभित तथा

मनोवाज्छित कामना एवै समृद्धि देनेवाले हैं, उन आपके

चरणौका हम निरन्तर अपने हृदयमें चिन्तन करते रहें,

यही हमारी अभिलाषा है। आप कामदेवकी भी शोभाको

तिरस्कृत करनेबाली मनोहर कान्ति धारण करते हैं।

परमपावन दयामय ! यदि आप इस भूमण्डलकें

अभयदान न दें तो देवता कैसे सुखी हो सकते हैं?

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