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तो भी उस कर्रात्माने उन्हें कण्ठतक पानीयं के जाकर इवा

दिया । उन सबको मरा हुआ जानकर दुष्पण्य शीघ्र अपने

परको चला गया । उन रपरो बालकोंके पिता अपने

पुत्रोंकी नगरमे हदे छगे। थे पाँचों बारूक अधिक छोटे

थे। पानीमें ढाल देनेपर भी ये मर न सके,

“धीरे ल्रोबरके किनारे आ गये और वहीं घूमते रहे ।

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प्रायः सूना कर दिया । अभमी-भमी इन काको उसने

जहमें इवो दिया था, परंतु रैवयोगसे ये जीबित निकर

आये हैं। क्ताओ। इस समय क्या करना चाहिये १ मैं तुम्हीसे

पूछता हूँ, क्योंकि तुम सदा धर्मम तत्पर रहते हो ।”

वात्मा मेरा पुत्र नहीं, झन्र ही है। जिसने इस नगरकों

बारूकोंसे खाली कर दिवा, उत वबुष्टके उद्धारका मुझे कोई

उपाय नहीं दिखायी देता | मैं सच कता ह, इस वुष्टात्माकों

प्राणदण्ड दिया जाय। पशुमानका यह वचन सुनकर समस्त

पुस्थासी पश्ुमानकी प्रशंसा करते हुए. राजसे बोले--

“महाराम ! इस दुष्करो मारा न जाय अपितु चुपचाप नगरे

निकाल दिया आय ।?तब राजाने दुष्पण्यकों भुत्अकर कहां--

ओ इुशस्मन्‌ ! तू शप्र दरे राज्यसे बाहर चत्म जा ।

यदि यहाँ रहेगा; तो मैं तेरा वष कर डादूंगा ।! इस प्रकार

डॉट बताकर राजाने दूतोंद्वारा उसे नगरे निर्वासित कर

दिया ।

तदनन्तर थधुष्फष्प भयभीत शो उस देंशकों छोड़कर

अनम चला गया । यहाँ आकर भी

जलमें डुबो दिया | कुछ

खेसनेके लिये गये दुए थे, उन्होंने उस बालककों

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चला गया | दुष्पेन्य उस जलम ड्ूबकर

हो गया। मृत्युके बाद उसे पिशाचकी

मिली । भूख-प्याससे पीडित होकर यह भयानक

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अहुतसे बालकोंक्री दत्या की | अब मैं पिश्ाचयोनिको प्रास

हुआ हूँ । भूख-प्यास सहन करनेकी मुके शक्ति नहीं रह

गयी है। अतः आपस्लोग कृपा करके भेरी रक्षा करें ।

तपोधनो ! जिस प्रकार मैं पिशाचयोनिते छूट जाऊँ वैसा

प्रवल कीजिये ।›

पिद्याचका यह वचन सुनकर तपस्वी मुमियोंने मदि

अमरत्यजीसे कदा--^मगचन्‌ ! इस पिशाचके उद्धारक

कोई उपाय बतछावें |” तब अगस्त्पजीने अपने प्रिय शिष्य

सुतीक्षकों बुल्ाकर कहां--“त्स सुती ! तुम शीघ्र

गन्धमादन पर्बतपर चले जाओ । यहाँ सब पार्पोका नादा

करनेवाला मदान्‌ अग्नितीर्थं र । महामते ! इस पिशाचके

उद्धारके उद्देश्यसे ठुम उस तीरथमे जान करो ।* अगस्त्य जीके

देवा कहनेपर मुतीक्ष्णणी गन्धमादन पर्थतपर गये और

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