ज्योतिष चक्र वर्णन | [ ४२७.
ऋषिगणग ने कहा-इस प्रकार से ग्रहो को स्थितिको कथाका श्रवण
करके जो परम दिव्य थी वे फिर सूतजी बोले-सूर्य चन्द्रमा. का चरण
और सब ग्रहों का चरण किसः प्रकार से हुआ करता है। ये समस्त
ज्योतिर्याँ रबि के मण्डल में क्रिस प्रकार से रमण किया 'करती हैं ? वे
सब अलग-२ व्यूह् रहित होकर या असङ्कुर् भाव से श्रमण करती हों
उनका कोन कैसे ध्रामण कराया करता है अथत्रा वे स्वयं ही भ्रमण
किया करती हैं--हम अब यही ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं. अतएब हे
श्रेष्ठतम ! इसका वर्णन कौजिष्ः।१-३। धौमूतजो ने कहः--गरह भूता.
का संमोहन करने बाला है + उसको आप लोग मरे द्वारा जान लो .! ..
प्रत्यक्ष होति हुए भी वह हर्य है.जौर निश्चय ही प्रजाओं को संभोहित
करता है-। जो यट चतुर्दल नक्षत्रों मं शिशुमार व्यवस्थित है बह
उत्तानफाद का प्रत्न है जो दिवलोक मे मेदीभृतच्र्व है ।४-५। वही यह
भ्रमण करुता हुआ ग्रहों के साथ चन्द्रमा और सूर्य को भ्रमण- क्रा
है ॥ भ्रमण करते हुई उसके पं"छे सब नक्षत्र चक्र की -भाँति अनुसपंण -
किया करते है | ध्रूव के मन से ज्योतियों का गणः भ्रमण करता है :
वह बातानीक मय बन्धो स्रव में बद्ध होकर हो प्रसर्पण किया -
करता है ।६-७।
तेषां भदश्च योगश्च तथा कालस्य निश्चयः ।
अस्तोदयास्तथोत्पाता अयनेदक्षिणोत्तरे ।८
विषुवद्ग्रहवर्णश्च सं्वमेतद् धन् वेरितम् ।
जीम्ता नाम तं मेचां यदेभ्यौ जीवेसम्भवः ।& ˆ `` `
द्वितीय आवहन् वायुर्मेघास्ते त्वभिसंश्चिता: ।
इतोयोजनमात्राच्च ल्षध्यद्ध विंकृताअपि ।१०
बृष्टिमगस्तश्चा तेषां ध्वाराधार: प्रकीतिता: ।
पुष्करावतेंका नाम ये प्रैघा: पक्षसम्भवाः ।११