'झरबण'के नामसे प्रसिद्ध था। उसमें देवाधिदेव
चन््रार्धदोखर भगवान् दिव पार्वतीजीके साथ क्रीडा
करते हैं। पूर्वकालमें महादेवजीने उमाके साथ
"रवण के भीतर प्रतिज्ञापूर्वक यह बात कही थी कि
“पुरुष नामधारी जो कोई भी जीव हमारे वनमे आ
जायेगा, वह इस दस योजनके घेरेमें पैर रखते ही स्नीरूप
हो जायगा ।' राजा इर इस प्रतिज्ञाको नहीं जानते ये,
इसीलिये "दारवण'म चले गये । वहाँ पहुँचनेपर वे
सहसरा स्त्री हो गये तथा उनका घोड़ा भी उसी समय
घोड़ी बैन गया । राजाके जो-जो पुरुषोचित अङ्ग थे, वे
सभी स्त्रीके आकारमें परिणत हो गये । इससे उन्हें बड़ा
आश्चर्य हुआ। अब वे 'इला' नामकी स्त्री थे ।
इता उस वनमें घूमती हुई सोचने लगी, “मेरे
माता-पिता और भ्राता कौन हैं ?' वह इसी उधेड्-वुनमें
पड़ी थी, इतनेमें ही चन्द्रमाके पुत्र बुधने उसे देखा।
[इलाकी दृष्टि भी बुधके ऊपर पड़ी ।] सुन्दरी इलाका
मन बुधके रूपपर मोहित हो गया; उधर बुध भी उसे
देखकर कामपीड़ित हो गये और उसकी प्राप्तिके लिये
यनन करने लगे । उस समय बुध ब्रह्यचारीके वेषमे थे ।
वे वनके बाहर पेड़ोंके झुरमुटमें छिपकर इलाको बुल्त्ने
लगें--'सुन्दरी ! यह साँझका समय, विहारकी वेतत है
जो बीती जा रही है; आओ, मेरे घरको लीप-पोतकर
पुंसे सजा दो ।' इल्त्र बोली--“तपोधन ! मैं यह सब
कुछ भूल गयी हूँ। बताओ, मैं कौन हूँ ? तुम कौन हो ?
मेरे स्वामी कौन हैं तथा मेरे कुलका परिचय क्या है ?'
बुधने कहा--'सुन्दरी! तुम इल्त्र हो, मैं तुम्हें
चाहनेवात्म् बुध हं । मैने बहुत विद्या पढ़ी है। तेजस्वीके
कुछमें मेरा जन्म हुआ है। मेरे पिता ब्राह्मणोंके राजा
चन्द्रमा हैं।'
बुधकी यह बात सुनकर इल्जने उनके घरमें प्रवेश
कियां। वह सब प्रकारके भोगोंसे सम्पन्न था और अपने
वैभवसे इन्द्रभवनको मात कर रहा था। वहाँ रहकर इतत
बहुत समयतक बुधके साथ वनम रमण करती रही ।
उधर इतके भाई इक्ष्वाकु आदि मनुकुमार अपने राजाकी
खोज करते हुए उस 'शरवण'के निकर आ पहुँचे । उन्होंने
[ संक्षिप्त पणपुराण
नाना प्रकारके स्तोत्रोंसे पार्वती और महादेवजीका स्तवन
किया। तब वे दोनों प्रकट होकर बोले--“राजकुमारो !
मेरी यह प्रतिज्ञा तो टल नहीं सकती; किन्तु इस समय
एक उपाय हो सकता है । इक्ष्वाकु अश्वमेध यज्ञ करें और
उसका फल हम दोनोंको अर्पण कर दें। ऐसा करनेसे
वीरवर इत "किम्पुरुष हो जायैंगे, इसमें तनिक भी
सन्देहकी बात नहीं है।'
“बहुत अच्छा, प्रभो !'यह कहकर मनुकुमार लौट
गये। फिर इक्ष्वाकुने अश्वमेध यज्ञ किया। इससे इत
“किम्पुरुष' हो गयी । वे एक महीने पुरुष और एक महीने
खरीक रूपमे रहने लगे । बुधके भवनमें [ खीरूपसे]
रहते समय इलने गर्भं धारण किया धा । उस गर्भसे
उन्होंने अनेक गुणोंसे युक्त पुत्रको जन्म दिया। उस
पुत्रको उत्पन्न करके बुध स्वर्गलोकको चले गये । वह
प्रदेश इलके नामपर इत्त्रयृतवर्' के नामसे प्रसिद्ध
हुआ। ऐल चन्द्रमाके वंशज तथा चन्द्रवेज्ञका विस्तार
करनेवाले राजा हुए। इस प्रकार इल्त्र-कुमार पुरूरवा
चन्द्रवंशकी तथा राजा इक्ष्वाकु सूर्यवेशकी वृद्धि
करनेवाले बताये गये हैं। 'इर' किम्पुरुष-अवस्थामें
'सुप्ुप्र” भी कहल्मते थे। तदनन्तर सुद्युप्नसे तीन पुत्र
और हुए, जो किसीसे परास्त होनेवाले नहीं थे। उनके
नाम उत्कल, गय तथा हरिताश्च थे। हरिताश्व बड़े
पराक्रमी थे। उत्कलकी राजधानी उत्कला (उड़ीसा) हुई
और गयकी राजधानी गया मानी गयी है। इसी प्रकार
हरिताश्वको कुरु प्रदेशके साथ-ही-साथ दक्षिण दिशाका
राज्य दिया गया। सुद्युम्न अपने पुत्र पुरूरवाकों
प्रतिष्ठानपुर (पैठन) के राज्यपर अभिषिक्त करके स्वयं
दिव्य वर्षके फलॉंका उपभोग करनेके लिये इस्प्रवृतवर्षमें
चले गये।
[सुघुप्नके बाद] इक्ष्वाकु ही मनुके सबसे बड़े पुत्र
थे। उन्हें मध्यदेशका राज्य प्राप्त हुआ। इक्ष्वाकुके सौ
पुत्रों पंद्रह श्रेष्ठ थे । वे मेरुके उत्तरीय प्रदेशमें राजा हुए।
उनके सिवा एक सौ चौदह पुत्र और हुए, जो मेरुके
दक्षिणवर्ती देदोकि राजा बताये गये है । इक्ष्वाकुके ज्येष्ठ
पुत्रसे ककुत्स्थ नामक पुत्र हुआ। ककुत्स्थका पुत्र