र > संक्षिक्ष मार्कण्डेय पुराण +
१५4४५ ४ # १४ * रत 6५५45४४ ७३०६७ ० ४43४4745 #ऋ० हज
डा बन्धु! हा भ्राता! हा बत्स। हा प्रियााम! हा , नालकको. जिसे सपने काट खाया था तथा
पतिदेव! हाव वद्वि! हा माता! हा मामा! हा | जिसके अद्गौमे राजोचित्त चिह्न दिखायी देते थे,
पितापह ! हा मातामह! हा पिताजी! हा पौज! हा | जब देखा तो उन्हें जड़ो चिन्ता हुई। वे सोचने
बान्धव ! तुम कहाँ चले गये ? लौर आओ ।' इस लगे-'अहो ! बड़े कष्टको बात हैं, यह बालक
प्रकार विलाप करनेवालॉकी करुणापूर्ण वनि | किसी राजाके कुलम उत्पन्न हुआ था; किन्तु
वहाँ जोर-जोस्से सुनावी पड़ती धी ! ऐसो भूमिमें दुशत्मा कालने इसे किसी और हो दशाको पहुँचा
निवास करनेके कारण राजा न रातमें सो पाते थे, | दिया। अपनो माताकी गोंदमें पड़े हुए इस
न दिनपें । बारंबार हाहाकार करते रहते थे। इस | बालककों देखकर मुझे कमलके समान नेन्रोंवाला
प्रकार उनके बारह महीने सौ बर्षोंके समान बीते।' अपना पुत्र रेहिताश्च याद आ रहा है। वदि उसे
अन्तमें राजाने दुःखो होकर देवताओंकी शरण ली | भर्यक्रर कालने अपना ग्रास् न जनाया होगा तो
और कहा--'गहान् धर्मकों उमस्कार है। जो वह मेरा लाडुला भो इसी उम्रका हुआ होगा।'
रूच्चिदानन्देस्बरूप, सा्पूर्ण जगतूकी सृष्टि करनेवाले |. इतनेमें हौ रानीने बिलाप करतें हुए कहां--
विधाता, परात्पर ब्रहम, शुद्ध, पुराणपुरुष एवं | हा वत्स! किस पापके कारण यह अत्यन्त
अविनाशी हैं, उन भगवान् भिष्णुको नमस्कार हैं। भयंकर दुःख आ पड़ा है, जिसका कभी अन्त ही
देवगुर बृहस्पति! तुम्हें नमस्कार है। इनको भी | नहीं आता। हा प्राणनाध ! आप कहाँ हैं? ओ
रपस्क। है! के कहकर गजा पुनः चाण्डालके विधाता! तूने राज्यका नाश किया, सुहदोंसे
कार्यमें लग 7!ये। विज्ञोह करावा और स्त्री तथा पुत्रको भी निकवा
धद्रनन्तर महाराज हरिश्नन्द्रकी पत्नी शैब्या| दिया। अरे! तुने राजर्षिं इरिशन्द्रकौ कौन-सी
भाँपके काटनेसे मरे हुए अपने आालककों गोदमें | दुर्दशा नहीं को।
टङावै किलाप करती हुई श्मशान भूमिमें आवी।| रानीको यह वचने सुनकर अपने पथसे भ्रष्ट ,
यह बार वा यही कहती थी, 'हा वत्स! हा पुत्र! हुए राजा हस्श्विद्दने अपनी प्राणप्वारी पत्नी तथा
हा शिक्षो !' उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल हों गयः | मृत्युके मुखपें पड़े हुए एको पहचान लिया।
श्य | कान्ति मलिन प गी थी। मन बेचैन था। 'ओह ! कितने कष्टकों बात है, यह शैब्या इस
सिरके बालों धुल जम गयी थी। शैब्याके | अवस्थापें और यह वही मेरा पुत्र है ?' यों कहते
विलापका शब्द सुनकर राजा हरिअद्ध तरते उसके | हुए बे दुःखसे सन्तप होकर रोते-रोते मूच्छित हो
पास गये। उन्हें आशा धो. वहाँ भी मुर्के ' गय! इख अवस्थामें पहुँचे हुए गजाको पहचानकर
शरीरका कफन मिलेगा! वे जोर-जोरसे रोती हुईं | रानीको भी बड़ा दुःख हुआ। वह भी मूच्छिंत
अपनी पत्नौकछो पहचान न सके। अधिक कोलतक होकर धरतीपर गिर पढ़ो | उसका शरीर निश्चेष्ट हो
प्रचासमें रहनेके कारण जह बहून सन्तष्ठ थीं। ऐसी | गया। फिर थोड़ी देर बाद होशमें आनेपर महाराज
जान पडती थी, मानों उसका दूसरा जन्म हुआ और महारानी दोनों साथ-हीं-साथ शौकंके भारसे
हो। शैव्यागे भी पहले उनके मश्तकको मनोहर | पोढ़ित एवं सन्तस टो विलाप करने लगे।
क्षशोंसे सुशोभित देखा धा। अब उनके सिरपर, राजाने कहा--हा वत्स ! सुन्दर नेत्र, भौंह,
लटा थौ। वे सूखे हुए वृक्षके सपान जान पड़ते | नालिका और नासि युक्त तुम्हारा बह सुकुमार
४। इस अकश्थामे कह भो अपने पतिकों =, एवं दीन मुख देखकर मेरा हृदय क्यो नहं विदीर्ण
पहन सकी। राजाने काले कपदैमें लिपटे हुए । हौ जाता। हा बेटा ! तुम मेरे अङ्ग-परत्यङ्गसे उत्पन्न