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पूर्वभाग-प्रथम पाद

पूआ दान करे। (दानका मन्त्र इस प्रकार है--)

देवदेव जगन्नाथ प्रसीद परमेश्वर॥

उपायनं च संगृह्य ममाभीष्टप्रदो भव।

(का० पूर्व १७॥ ५५-५६)

"देवदेव ! जगन्नाथ! परमेश्वर! आप मुझपर

प्रसन्न होइये और यह भेंट ग्रहण करके मेरे

अभीष्टकी सिद्धि कीजिये।'

तत्पश्चात्‌ यथाशक्ति ब्राह्मणोंकों भोजन करावे

ओर उसके बाद स्वयं भी मौन होकर भोजन करे ।

ब्रह्मन्‌ ! जो इस प्रकार भगवान्‌ त्रिविक्रमका त्रत

करता है, वह निष्पाप हो आठ यज्ञोका फल

पाता है।

आषाढ शुक्ला द्वादशको उपवास-व्रत करनेवाला

जितेन्द्रिय पुरुष पूर्ववत्‌ एक आढक (चार

सेर) दूधसे वापनजौको स्नान करावे । ' नमस्ते

वामनाय '-इस मन्त्रसे दूर्वा ओर घीकी एक सौ

आठ आहुति देकर रातमें जागरण और वामनजीका

पूजन करे । दक्षिणासहित दही, अन और नारियलका

फल वामनजीकी पूजा करनेवाले ब्राह्मणको भक्तिपूर्वकं

अर्पण करे। (मन्त्र इस प्रकार है--)

वामनो बुद्धिदो होता द्रव्यस्थो वामनः सदा।

वामनस्तारकोऽस्माच्च वामनाय नमो नमः॥

(कर पूर्व० ह७। ६१)

'बामन बुद्धिदाता हैं। वे ही होता हैं और

द्रव्यमें भी सदा वामनजी स्थित रहते हैं। वामन

ही इस संसार-सागरसे तारनेवाले हैं। बापनजीको

बार-बार नमस्कार है।'

इस मन्त्रसे दही -अन्नका दान करके यथाशक्ति

ब्राह्य्णोको भोजन करावे । ऐसा करके मनुष्य सौ

अग्रिष्टोम यज्ञोंका फल पा लेता है।

श्रावण मासके शुक्लपक्षकी द्वादशी तिथिको

उपवास करनेवाला व्रती मधुमिश्रित दूधसे भगवान्‌

श्रीधरको सत्रान करावे और ' नमोऽस्तु श्रीधराय '--

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इस मन्त्रसे गन्ध, पुष्प, धूप, दीप आदि सामप्निरयोदारा

क्रमशः पूजन करे । मुने! तत्पश्चात्‌ दही मिले हुए

घीसे एक सौ आठ आहुति दे। फिर रातमें जागरण

करके पूजाकी व्यवस्था करे ओर ब्राह्मणको परम

उत्तम एक आढक (चार सेर) दूध दान करे।

विप्रवर! साथ ही सम्पूर्ण कामनाओंकी सिद्धिके

लिये वस्त्र ओर दक्षिणासहित सोनेके दो कुण्डल

भी निम्नाड्धित मन्त्रसे अर्पण करे।

क्षीराव्धिशायिन्‌ देवेश रमाकान्त जगत्पते।

क्षीरदानेन सुप्रीतो भव सर्वसुखप्रदः॥

(ना० पूर्वण १७॥ ६७)

"क्षीरसागरे शयन करनेवाले देवेश्वर!

लक्ष्मीकान्त ! जगत्पते ! इस दुग्धदानसे आप अत्यन्त

प्रसन्न हो सम्पूर्ण सुखोंके दाता होइये।'

ब्राह्मणभोजन सुख देनेवाला है, इसलिये व्रती

पुरुष यथाशक्ति भोजन करावे । ऐसा करनेसे एक

हजार अश्वमेध बज्ञोंका फल प्रा होता है ।

भाद्रपद मासके शुक्लपक्षकी द्वादशौ तिधिको

उपवास करके एक द्रोण (कलश) दधसे जगदगुरु

भगवान्‌ हषीकेशको स्नान करावे। ' हृषीकेश

नमस्तुभ्यम्‌" इस मन्त्रसे मनुष्य भगवानूका पूजन

करे। फिर मधुमिश्ित चरुसे एक सौ आठ आहति

दे। फिर पूर्ववत्‌ जागरण आदि कार्य सम्पन्न

करके आत्मस्ञानी ब्राह्मणको डेढ़ आढक (छः

सेर) गेहूँ और यथाशक्ति सुवर्णकौ दक्षिणा दे।

(मन्त्र इस प्रकार है- )

हृषीकेश नमस्तुभ्यं सर्वलोकैकहेतवे।

मह्यं सर्वसुखं देहि गोधूमस्य प्रदानतः ॥

(ना० पूर्वर १७। ७२)

“इन्द्रियोंके स्वामी भगवान्‌ हृषीकेश! आप

सम्पूर्ण लोकोंके एकमात्र कारण हैं। आपको

नमस्कार है। इस गोधूम-दानसे प्रसन्न हो आप

मुझे सब प्रकारके सुख दीजिये।'

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