Home
← पिछला
अगला →

* यार्वतीजीका स्वयंवर और महादेवजीके साथ उनका विधाह *

७५

तिरस्कृत हो सम्पूर्ण देवताओंने नेत्र बंद कर

लिये। तब उन्होंने देबताओंको दिव्य दृष्टि प्रदान

की, जिससे थे उनके स्वरूपको देख सकते थे।

वह दृष्टि पाकर देवताओंने परम देवेश्वर भगवान्‌

शिवका दर्शन किया। उस समय पार्वतीदेवीने

अत्यन्त प्रसन्न हो समस्त देवताओंके देखते-देखते

अपने हाथकी माला भगवानके चरणोंमें चढ़ा दी।

र व्ट्ट

हटा

जज

यह देख सब देवता साधु-साधु कहने लगे। फिर

उन लोगोंने पृथ्वीपर मस्तक टेककर दैवीसहित

महादेवजीको प्रणाम किया । इसके बाद देवताओंसहित

मैने हिमवानूसे कहा-' शैलराज! तुम सबके

लिये स्यृहणीय, पूजनीय, बन्दनीय तथा महान्‌ हो;

क्योंकि साक्षात्‌ महादेवजीके साथ तुम्हारा सम्बन्ध

हो रहा है। यह तुम्हारे लिये महान्‌ अध्युदयकी

बात है। अब शीघ्र ही कन्याका विवाह करो,

विलम्ब क्यो करते हो?'

मेरी बात सुनकर हिमवानूने नमस्कारपूर्वक

मुझसे कहा--' देव ! मेरे सब प्रकारके अभ्युदयमें

आप ही कारण हैं। पितामह ! जब जिस विधिसे |

(+ |

१. ~ न = ~

4 +: ५,

9 ४ ४ ॥

¢ ति =

~ - ~~~ ~] -~---~--_--~___~____~___~_~_~~_~__~~_~~_~~_~_~~_~-~_-_----~----~--~-~-~-~-----~--

विवाह करना उचित हो, वह सब आप ही

कर्ये ।' तव मैंने भगवान्‌ शिवसे कहा--देव!

अब उमाके साथ विवाह करें।” उन्होंने उत्तर

दिया-' जैसी आपकी इच्छा। फिर तो हम

लोगोंने महादेवजीके बिवाहके लिये तुरंत ही एक

मण्डप तैयार किया, जो नाना प्रकारके रब्रोंसे

सुशोभित था। बहुत-से रत -चित्र-विचित्र मणियाँ,

सुवर्णं ओर मोती आदि द्रव्य स्वयं ही मूर्तिमान्‌

होकर उस मण्डपको सजाने लगे! मरकत-

मणिका बना हुआ फर्श विचित्र दिखायी देने

लगा। सोनेके खम्भोंसे उसकी शोभा ओर भी बढ़

गयी थी। स्फटिकमणिकी बनी हुई दीवार चमक

रही थी। द्वारपर मोतिर्योकी झालरें लटक रहौ

थीं । चन्द्रकान्त और सूर्यकान्तमणि सूर्य ओर

चनद्रमाके प्रकाश पाकर पिघल रहे थे। वायु

मनोहर सुगन्ध लेकर भगवान्‌ शिवके प्रति अपनी

भक्तिकां परिचय देती हुई मन्द गतिते बहने

लगौ । उसका स्पर्शं सुखद जान पड़ता था। चारों

समुद्र, इद्ध आदि श्रेष्ठ देवता, देवनदियाँ, महानदि,

सिद्ध, मुनि, गन्धर्व, अप्सरा, नाग, यक्ष, राक्षस,

जलचर, खेचर, किन्नर तथा चारणगण भी उस

विवाहोत्सव (मूर्तिमान्‌ होकर) सम्मिलित हुए

थे । तुम्बुरु, नारद, हाहा ओर हुहु आदि सामगान

करनेवाले गन्धर्व मनोहर वाजे लेकर उस विशाल

मण्डपमें आये थे। ऋषि कथाएँ कहते, तपस्वी वेद

पढ़ते तथा मन-ही-मन प्रसन्न होकर वे पवित्र

वैवाहिक मन्त्रोंका जप करते थे। सम्पूर्ण जगन्माता

और देवकन्यां हर्षमग्न हो मङ्गलगान कर रही थीं।

भगवान्‌ शङ्करका विवाह हौ रहा है, यह जानकर

भौति- भौतिकी सुगन्थ और सुखकय विस्तार करनेवाली

छहों ऋतुएँ वहाँ साकार होकर उपस्थित धीं ।

इस प्रकार जब सम्पूर्ण भूत वहाँ एकत्रित

हुए और नाना प्रकारके बाजे बजने लगे, उस

← पिछला
अगला →