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भक्त है, बाहर-भीतरसे पित्र और शुद्ध है,
उत्तम ब्रतका पालत करनेवाला तथा दृढ
निश्चयसे युक्त है, वह झिव-नैचेद्का
अव्य भक्षण करें। भगवान शिवका
नैवेद्य अघ्रा है, इस भावनाको मनसे
निकाल दे । हियके नैसेद्यकों देख लेनेमात्रसे
भी सारे पाप दूर भाग जाते हैं, उसको खा
लेनेपर तो करोड़ों पुण्य अपने भीतर आ
जाते हैं। आये हुए शिव-मैल्रेशको सिर
झुकाकर प्रसन्नताके साथ अहण करे और
अयन्न करके दिव-स्मरणपूर्वक उसका
भक्षण करे। आये हुए शिव-नैवेद्यको जो
यह कहकर कि मैं इसे दूसरे समयमे ग्रहण
करूँगा, छेनेसें चिलम्य कर देता है, वह
मनुष्य निश्चय ही पापसे वैध जाता है । जिसने
जिवकी दीक्षा ली हो, उस शिवभक्तके स्थ्यि
यह शिव-नैवेद्य अवश्य 'भक्षणीय है--ऐसा किधिपूर्वकं
कहा जाता है। शिवकी दीक्षासे युक्त
शिवभक्त पुरुषके लिये सभी झिवल्लिड्रोंका
चैवेद्य शुभ एवं 'महाप्रस्ताद' है; अतः यह
उसका अबइय भक्षण करे। परंतु जो अन्य
देवताओंकी दीक्षासे युक्त हैं और
शिवभक्तिमें भी मनको लगाये हुए हैं, उनके
लिये शिव-नैवेह्य-भक्षणके विषयमें क्या
निर्णय है-- इसे आपलोग प्रेमपूर्वक सुनें ।
ब्राह्मणो ! जहाँसे. शालग्रामशझिलाकी
उत्पत्ति होती है, बहाँके उत्पन्न ल्ड्डमें,
रस -लिङ्कं (पारटलिड्र) में, पाषाण, रजत
तथा सुबर्णसे निर्मित लिद्धमे, देवताओं तथा
सिद्धोंद्वारा प्रतिष्ठित लिद्गमे, केसर-निर्सित
लिङ्गम, स्फटिकलिद्धमे, रत्ननिर्धित लिड्डसें
तथा समस्त स्योतिर्लिज्ञोमें घिराजमात
भगवान् शिवके नैचेद्यका भक्षण चादद्धायण-
जतके समान पुण्यजनक हैं। ब्रह्महत्या
करनेवाला पुरुष भी यदि पवित्र होकर
हिव-निर्माल्यका भक्षण करके उसे
(सिरपर) घारण करे तो उसका सारा पाप
ज्ीघ्न ही नष्ट हो जाता है । पर जहाँ चण्डका
अधिकार है, वहाँ जो जिव-निर्माल्य हो, उसे
साधारण मनुष्योंकों नहीं खाना चाहिये।
जहाँ चण्डका अधिकार नहीं है, चौके
शिव-निर्पाल्यका सभीको भक्तिपूर्वक
भोजन करना चाहिये। ाणलिवङग
(नम्देश्वर), त्तरह-निर्मित (स्वर्णादि
पातुमय ) लिद्ग, सिद्धलिद्ग (जिन लिद्गोकी
उपासनासे क्रिसीने सिद्धि प्राप्त की है अथवा
जो सिद्धोह्यरा स्थापित हैं वे लिड्ठ),
स्वयम्मूलिद्ग--इन सब लिद्गोपे तथा
क्िक्की प्रतिमाओं (मूर्तयो) मे चण्डका
अधिकार नहीं है । जो मनुष्य दिवलिड्को
त्रान कराकर उस स््रानकै
जलका तीन आर आचमन करता है, उसके
कायिक्र, वाचिक आर मानसिक- तीनों
अकारके पाप यहाँ शीघ्र नष्ट ह्ये जाते हैं। जो
हिव-नैवेद्य, पत्र, पुष्प, फल और जलः
अम्राह्म है, बह सब भी शालप्रामदिषठाके
स्यसि पवित्र - प्रहणे योग्य हो जाता है ।
मुनीश्वर ! शिवलिङ्गके ऊपर चढ़ा छुआ जो
व्य है, चह अग्राह्य है । जो वस्तु लिड्डस्पर्शासे
रहित है अर्थात् जिस यस्तुको अलग रखकर
शिवजीको निवेदित किया जाता है--
लिङ्खके ऊपर चढ़ाया नहीं जाता, उसे अत्यन्त
पतित्र जानना चाहिये। मुनिवरो ! इस
प्रकार चैवेद्यके विषयमे झासत्रका निर्णय
खाया गया ।
अब तुमलोग सावधान हो आदरपूर्वक
चिल्कका माहात्य सुनो । यह च्िल्व-वुक्ष
महादेवका ही रूप है । देवताओने भी इसकी