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एक और मिला दे तथा वही उद्दिष्ट स्वरूपकी
संख्या बतावे। ऐसा पुराणवेत्ता विद्वानोंका कथन
है'। (अमुक छन्दक प्रस्तारमें एक गुरुवाले या
एक लघुवाले, दो लघुवाले या दो गुरुवाले, तीन
लघुवाले या तीन गुरुवाले भेद कितने हो सकते
हैं; यह पृथक् -पृथक् जाननेकी जो प्रक्रिया है,
उसे ' एकद्रयादिलगक्रिया' कहते हैं।) छन्दके
अक्षरोकी जो संख्या हो, उसमे एक अधिक
जोड़कर उतने ही एकाङ्क ऊपर-नीचेके क्रमसे
लिखे । उन एकाङ्कौको ऊपरकी अन्य पड्क्तिमें
जोड़ दे; किंतु अन्त्यके समीपवर्ती अङ्कको न
जोड़े और ऊपरके एक-एक अङ्कको त्याग दे।
ऊपरके सर्व गुरुवाले पहले भेदसे नौचेतक गिने।
इस रीतिसे प्रथम भेद सर्वगुरु, दूसरा भेद एक गुरु
और तीसरा भेद द्विगुरु होता है । इसी तरह नौचेसे
ऊपरकी ओर ध्यान देनेसे सबसे नीचेका सर्वलघु,
संक्षिप्त नारदपुराण
उसके ऊपरका एक लघु, तीसरा भेद द्विलघु
इत्यादि होता है। इस प्रकार 'एकद्ठयादिलगक्रिया'
जाननी चाहिये।' लगक्रियाके अड्लोंको जोड़
देनेसे उस छन्दके प्रस्तारकी पूरी संख्या ज्ञात हो
जाती है। यही संख्यान प्रत्यय कहलाता है,
अथवा उद्दिष्टपर दिये हुए अङ्कको जोड़कर उसमें
एकका योग कर दिया जाय तो वह भी प्रस्तारकी
पूरी संख्याको प्रकट कर देता है। छन्दके
प्रस्तारको अङ्कित करनेके लिये जो स्थानका
नियमन किया जाता है, उसे अध्वयोग प्रत्यय कहते
हैं। प्रस्तारकी जो संख्या है, उसे दूना करके एक
घट देनेसे जो अङ्क आता है, उतने ही अंगुलका
उसके प्रस्तारके लिये अध्वा या स्थान कहा गया
है॥ १६--२०॥ मुने! यह छन्दोंका किंचित् लक्षण
बताया गया है। प्रस्तारद्वारा प्रतिपादित होनेवाले
उनके भेद-प्रभेदोंकी संख्या अनन्त है॥२१॥
(पूर्वभाग द्वितीय पाद अध्याय ५७)
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१-जैसे कोई पूछे कि चार अक्षरके पादवाले छन्दमें जहाँ प्रथम तीन गुरु और अन्ते एक लघु हो तो उसकी संख्या
क्या है अर्थात् वह उस छन्दका कौन-सा भेद है? इसको जाननेके लिये पहले उद्दिष्टके गुरु-लघुको निग्नाद्धित रीतिसे अद्वित
करके उनके ऊपर क्रमशः द्विगुण अङ्कं स्थापित करे-
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तत्पश्चात् केवल लघुके अङ्क ८ में एक और जोड़ दिया गया तो ९ हुआ । यहो उद्दिष्टकौ संख्या है । अर्थात् यह उस
छन्दका नवँ भेद है।
२. निप्राङ्कित कोष्ठकसे यह यात स्पष्ट हो जातौ है--
अर्थात् चार अक्षरवाले छन्दके प्रस्तारे ४ लघुवाला १
भेद, एक गुरु तीन लघुवाला ४ भेद, २ गुरु और दो लघुवाला
६ भेद, तीन गुरु और १ लघुवाला ४ भेद और चार् गुरुवाला
३ भेद होगा।
३. यधा-चार अक्षरके प्रस्तारमें लगक्रियाके अङक
१४.६.४१ होते हैं, इनका योग सोलह होता है । अतः
चार अक्षरे पादवाले छन्दके सोलह भेद होंगे अथवा
उद्षटके अङ्क है १५२४-८ इसका योग हुआ १५. इनमें
एकका योग करनेसे प्रस्तार संख्या १६ प्रकट हो जाती है।