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* भ्रीकृष्णजन्मखण्ड * ४३१

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मकराकृति कुण्डल झलमला रहे थे। मुख मन्द | हाथ जोड़ भक्तिभावसे उनकी स्तुति कौ।

जज = बसुदेवजी बोले-- भगवन्‌! आप श्रीमान्‌

(सहज शोभासे सम्पन्न), इन्द्रियातीत, अविनाशी

निर्गुण, सर्वव्यापी, ध्यानसे भी किसीके वशम

। न होनैवाले, सबके ईश्वर और परमात्मा है ।

| स्वेच्छामय, स्वस्वरूप, स्वच्छन्द रूपधारी, अत्यन्त

९:22 निर्लिस, परब्रह्म तथा सनातन बीजरूप हैँ । आप

| स्थूलसे भी अत्यन्त स्थूल, सर्वत्र व्याप्त, अतिशय

कु | | सूक्ष्म, दृष्टिपथमें न आनेवाले, समस्त शरीरोंमें

0000४ | | साक्षीरूपसे स्थित तथा अदृश्य हैं। साकार,

“ निराकार; सगुण, गुणोंके समूह; प्रकृति, प्रकृतिके

हास्यकी छटासे प्रसन्न जान पड़ता था। वे भक्तोंपर | शासक तथा प्राकृत पदार्थे व्याप होते हुए भी

कृपा करनेके लिये कातर-से दिखायी पड़ते थे।| प्रकृतिसे परे विद्यमान हैं। विभो! आप सर्वेश्वर,

श्रेष्ठ मणि-रत्नोंक सारतत्त्वसे निर्मित आभूषण | सर्वरूप, सर्वान्तक, अविनाशी, सर्वाधार, निराधार

उनके शरीरकी शोभा बढ़ा रहे थे। पीताम्बरसे | और निर्व्यूह (तर्कके अविषय) हैं; मैं आपको

सुशोभित श्रीविग्रहकी कान्ति नूतन जलधरके | क्या स्तुति करूँ? भगवान्‌ अनन्त (सहसो

समान श्याम थी। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और | जिद्वावाले शेषनाग) भी आपका स्तवन करनेमें

कुंकुमके द्रवसे निर्मित अङ्गराग सब अङ्गम लगा | असमर्थं है । सरस्वतीदेवीमें भी वह शक्ति नहीं

हुआ था। उनका मुखचनद्र शरत्पूर्णिमाके शशधरकी | कि आपकी स्तुति कर सक । पञ्चमुख महादेव

शुभ्र ज्योत्छ्ाको तिरस्कृत कर रहा था । बिम्बफलके | और छः मुखवाले स्कन्द भी जिनकी स्तुति नहीं

सदृश लाल अधरके कारण उसकी मनोहरता और | कर सकते, वेको प्रकट करनेवाले चतुर्मुख ब्रह्मा

बढ़ गयी थी। माथेपर मोरपंखके मुकुट तथा भी जिनके स्तवने सर्वदा अक्षम हैं तथा

उत्तम रत्रमय किरीटसे श्रीहरिकौ दिव्य ज्योति | योगीनद्रौके गुरुके भी गुरुं गणेश भी जिनकी

ओर भी जाज्वल्यमान हो उठी थी । टेढ़ी कमर, | स्तुतिमें असमर्थ हैं; उन आपका स्तवन ऋषि,

त्रिभङ्गी ज्लौकी, वनमालाका शृङ्गार, वक्षमें श्रीवत्सकी | देवता, मुनीदद्र, मनु ओर मानव कैसे कर सकते

स्वर्णमयी रेखा ओर उसपर मनोहर कौस्तुभमणिकी | हैं ? उनकी दृष्टिमें तो आप कभी आये ही नहीं

भव्य प्रभा अद्भुत शोभा दे रही थी। उनकी | हैं। जब श्रुतियाँ आपकी स्तुति नहीं कर सकतीं

किशोर अवस्था धी। वे शान्तस्वरूप भगवान्‌ | तो विद्वान्‌ लोग क्या कर सकते हैं ? मेरी आपसे

श्रीहरि ब्रह्मा और महादेवजीके भी परम कान्त | इतनी ही प्रार्थना है कि आप ऐसे दिव्य शरीरको

(प्राणवल्लभ) हैं। मुने! वसुदेव और 'देवकौने त्यागकर बालकका रूप धारण कर लें।

उन्हें अपने समक्ष देखा! उन्हें बड़ा विस्मय जो मनुष्य वसुदेवजीके द्वारा किये गये इस

हुआ। वसुदेवजीने अपनी पत्नी देवकीके साथ | स्तोत्रका तीनों संध्याओंके समय पाठ करता है

अश्रुपूर्णयन, पुलकितशरीर तथा नतमस्तक हो ¦ वह श्रीकृष्णचरणारविन्दोंकी दास्य-भक्ति प्राप्त कर

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