* अध्याय २०२१
दो सौ दोवाँ अध्यायं
देवपूजाके योग्य और अयोग्य पुष्प
अग्निदेव कहते है -- वसिष्ठ ! भगवान् श्रीहरि
पुष्प, गन्ध, धूप, दीप और नैवेद्यके समर्पणसे हो
प्रसन्न हो जाते हैं। मैं तुम्हारे सम्मुख देवताओंके
योग्य एवं अयोग्य पुष्पोंका वर्णन करता हूँ।
पूजनमें मालती-पुष्प उत्तम है। तमाल-पुष्प भोग
और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। मल्लिका (मोतिया)
समस्त पापोंका नाश करती है तथा यूथिका
(जूही) विष्णुलोक प्रदान करनेवाली है। अतिमुक्तक
(मोगरा) और लो्रपुष्प विष्णुलोककी प्राति
करानेवाले हैं। करवीर-कुसुमोंसे पूजन करनेवाला
वैकुण्ठको प्राप्त होता है तथा जपा-पुष्पोंसे मनुष्य पुण्य
उपलब्ध करता है। पावन्ती, कुब्जक और तगर-
पुष्पोंसे पूजन करनेवाला विष्णुलोकका अधिकारी
होता है। कर्णिकार (कनेर)-द्वारा पूजन करनेसे
वैकुण्ठकी प्राप्ति होती है एबं कुरुण्ट (पीली
कटसरैया)-के पुष्पोंसे किया हुआ पूजन पापोंका
नाश करनेवाला होता है। कमल, कुन्द एवं
केतकीके पुष्पोंसे परमगतिकी प्राप्ति होती है।
बाणपुष्प, बर्बर-पुष्प और कृष्ण तुलसीके पत्तोंसे
पूजन करनेवाला श्रीहरिके लोकमें जाता है।
अशोक, तिलक तथा आटरूष ( अडसे)-के फूलोंका
पूजनमें उपयोग करनेसे मनुष्य मोक्षका भागी होता
है। बिल्वपत्रों एवं शमीपत्रंसे परमगति सुलभ
होती है। तमालदल तथा भृड्भराज-कुसुमोंसे पूजन
करनेवाला विष्णुलोकमें निवास करता है। कृष्ण
तुलसी, शुक्ल तुलसी, कल्हार, - उत्पल, पद्य एवं
कोकनद -ये पुष्प पुण्यप्रद माने गये दँ ॥ १--७॥
भगवान् श्रीहरि सौ कमर्लोँकी माला समर्पण
करनेसे परम प्रसन्न होते हैँ । नीप, अर्जुन, कदम्ब,
सुगन्धित बकुल (मौलसिरी), किंशुक (पलाश),
मुनि (अगस्त्यपुष्प), गोकर्ण, नागकर्ण (रक्त
एरण्ड), संध्यापुष्पी ( चमेली ), यिस्वातक, रञ्जनी
एवं केतकी तथा कूष्माण्ड, ग्रामकर्करी, कुश,
कास, सरपत, विभीतकं, मरुआ तथा अन्य
सुगन्धित पत्रोंद्वारा भक्तिपूर्वक पूजन करनैसे भगवान्
श्रीहरि प्रसन्न हो जाते है । इनसे पूजन करनेवालेके
पाप नाश होकर उसको भोग-मोक्षकी प्राप्ति होती
है। लक्ष स्वर्णभारसे पुष्प उत्तम है, पुष्पमाला
उससे भी करोड़गुनी श्रेष्ठ है, अपने तथा दूसरोंके
उद्यानके पुष्पोंकी अपेक्षा वन्य पुष्पोंका तिगुना
फल माना गया है॥८--११६॥
झड़कर गिरे, अधिकाड़ एवं मसले हुए
युष्पोंसे श्रीहरिका पूजन न करे। इसी प्रकार
कचनार, धत्तूर, गिरिकर्णिका (सफेद किणही),
कुटज, शाल्मलि (सेमर) एवं शिरीष (सिरस)
वृक्षके पुष्पोंसे भी श्रीविष्णुकौ अर्चना न करे।
इससे पूजा करनेवालेका नरक आदिमे पतन होता
है। विष्णुभगवानूका सुगन्धित रक्तकमल तथा
नीलकमल-कुसुरमोसे पूजन होता है। भगवान्
शिवका आक, मदार, धत्तूर-पुष्पोंसे पूजन किया
जाता है; किंतु कुटज, कर्कटी एवं केतकी
(केवटे )-के फूल शिवके ऊपर नहीं चढ़ाने
चाहिये । कूष्माण्ड एवं निम्बके पुष्प तथा अन्य
गन्धहीन पुष्प “पैशाच ' माने गये हँ ॥ १२--१५॥
अहिंसा, इन्द्रियसंयम, क्षमा, ज्ञान, दया एवं
स्वाध्याय आदि आठ भावपुष्पोसे देवताओंका
यजन करके मनुष्य भोग-मोक्षका भागी होता है ।
इनमें अहिंसा प्रथम पुष्प है, इन्द्रियनिग्रह द्वितीय
पुष्प है, सम्पूर्णं भूत- प्राणियोपर दया तृतीय पुष्प
है, क्षपा चौथा विशिष्ट पुष्प है। इसी प्रकार
क्रमशः शम, तप एवं ध्यान पाँचवें, छठे और
सातवें पुष्य हैँ । सत्य आठवाँ पुष्प है । इनसे पूजित
होनेपर भगवान् केशव प्रसन्न हो जाते हैं। इन
आठ भावपुष्पोंसे पूजा करनेपर ही भगवान् केशव