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उत्तरभागे सप्रदशो5ध्यायः

से नहों लेने चाहिए। उसौ प्रकार मशरूम, जंगली सूअर,

लसोड़ा (बहुवार)', पीयूष-ताजी व्यायी हुई गौ का दूध

विलय और सुमुख नामक खाद्य पदार्थ तथा कुकुरमुत्ते का

त्याग करना चाहिए।

गृझन॑' किशुक॑' चैव कुक्कुटं च तवैव था।२०॥

उदुष्वरमलावुं च जग्वा फाति यै द्विजः।

कृा कृक्ञरसंयावं पायसापृषमेव चा। २१॥

अनुफाकृतमांसं च देवान्नानि हवीषि था

यवागूं मातुलिङ्गन्न पत्स्वानप्यनुपाकृतान्‌॥ २२॥

नीपं कपित्यं प्लक्षं च ्रयतमेन विवर्जयेत्‌।

गाजर, पलाश, कुछुट, गूलर (१8 ४७४) लौकी खाने से

दिन पतित हो जाता है। कृशर (तिल का चावल से निर्मित

पदार्थ) संयाव (हलूआ) खीर, मालपुआ, असंस्कारित

मांस, देवों को अर्पित अन्न, हविष, यवागु (जौ की खीर)

पातुलिङ्ग, मन्त्र द्वारा असंस्कृत मत्स्यादि, नौम-कदम्व,

कपित्थ, कोठफल और पीपल के फलों का त्याग करना

चाहिए।

पिण्याकं चोदधूतस्नेहं दिवाधानास्तवैव चा॥२३॥

गात्रौ च तिलसम्बद्धं प्रबलेन दघि त्यजेत्‌।

नाश्नीयात्पयसा तक्रं न बोजान्दुफजोवयेत्‌॥ २ ४॥

क्रियादुष्टं भावदुष्टमसत्संगं विवर्ज्जयेत्‌।

दिन में घृतादि रहित द्रव्य या तिल को खलो या उससे

युक्त धान्य और रात्रि में तिल मिश्रित दहीं का सावधानी से

त्याग कर देना चाहिए। इसी प्रकार बीज बाते दर्यो का

आजोबिका के साधनरूप पे उपयोग नहों करना चाहिए।

मनुष्य आदि को क्रिया से दूषित अथवा भाव से दूषित द्रव्य

का भी त्याग करना चाहिए उसी प्रकार दुर्जनो के संग का

भो विज्ञेषरूप से संग नहों करना चाहिए।

केशकीटावपन्नं च स्वपूर्लेखं च नित्यज्ञ:॥२५॥

शवाप्रातं च पुवः सिद्धं चण्डालावेक्षितं तथा।

उदक्यया च पतिर्वा चाप्रातमेव च॥ २६॥

अनर्चितं पर्युषितं पर्याप्रात॑ च नित्यशः।

काककुककुटसंस्पृष्ट कृपिधिश्लेव संयुतप्‌॥ २७॥

पनुष्ैरथया प्रातं कुष्ठिता स्पृष्टमेल चा

. (भनि 79/23.

2. गृञ्जनं गाजरं प्रों तथा नारङ्गवर्णकम्‌ { भा०नि० शाकण )

3, पलाशः किशुक: पर्णो... ( भाऽनि? शाकवर्ग)

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यदि अन्न में वाल और कीड़े हों तथा नाखून या रक्त

आदि से युक्त हो तो उसे निश्चित ही छोड़ देना चाहिए। जिस

द्रव्य को कुत्ते ने सूंघ लिया हो, जो फिर से पकाया गया हो,

जिस पर चाण्डाल कौ नजर पड़ी हो, उसे भी छोड़ तेना

चाहिए। उसी प्रकार जिस पदार्थ पर किसी अशुद्ध खो को

दृष्टि पड़ जाये, जिसे पतित व्यक्ति नै सघ लिया हो अथवा

देख लिया हो, जिसका सत्कार न किया गया हो, ,जो बासी

हो गया हो, जिस पर सदाभ्रान्ति बनी हुई हो, जिस द्रव्य को

कौए ने तथा मुर्गे तर स्पर्शं किया हो, जिसमें कीड़ा लग गया

हो और जिस द्रव्य को मनुष्यों ने सूँघ लिया हो अथवा जिसे

किसी कोढ़ों व्यक्ति ने स्पर्श किया हो उसे अवश्य ही त्याग

देना चाहिए।

न रजस्वलया दत्त न पुंश्चल्या सरोषकम्‌॥ २८॥

मलवद्वाससा चापि परयाचोप्योजयेत्‌।

चिदत्सायष्छ गोः क्षीरमौष्ट वा निर्हशस्य च॥ २९॥

आविकं सचिनोक्षोरमपेयं मनुरब्रवीत्‌

जो वस्तु किसी रजस्वला खरौ ने दी हो उसका प्रयोग न

करें उसी प्रकार किसी व्यभिचारिणी खी द्वारा दी गयो और

रोष के साथ दी गयी वस्तु का भी उपयोग नहों करना

चाहिए। जिस वस्तु को मलीन चख पहने हुए किसी दूसरे

की खो ने दिया हो उसका भी उपयोग नहीं करना चाहिए।

भगवान मनु ने ऐसा भौ कहा है कि बिना बछड़े की गौ का

दूध पौने योग्य नहीं होता। ऊँटनी का दूध भौ न पियें।

बलाकं हंसदात्यहं कलविङ्कं शुकं तवा॥ ३०॥

तथा कुररवल्लूरं जालपादञ्न कोकिलम्‌।

चाषा खञ्जरीटांञ्च श्येनं गृध्रं तथैव चा। ३ १॥

उलूकं चक्रवाकञ्च भासं पारायतं तथा।

कपोत टिट्टिभक्लैव ग्रामकुक्कुटमेव च॥॥३२॥

सिंह व्याप्नक पार्जारे श्वानं कुर्कुरमेख च।

शृगालं पर्कटं चैव मर्दभञ्च न भक्षयेता।

यदि कोई मांसाहारी हौ उसे भी बगुला, हंस, चातक,

जल कौञा, चिड़िया, तोता, कुर, मुखा हुआ मांस, जिन

पक्षियों के नाखून आपस में जुड़े हुए हो कोयल नीलकंठ,

पंडूक, टिटहरी, ग्राम्य मुर्गा, सिंह, वाघ, बिल्ली, कुत्ता,

ग्रीमीण सूअर, सियार, बन्दर और गधे का मांस नहों खाना

चाहिए।

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