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परशुराम का अगस्त्याश्रम में आगमन |] [ २७३

ने स्नान किया था और परम हर्ष से संयुत होकर वहाँ पर मध्याहन काल

में होने वाली सन्ध्या की उपासना की थी ।३क उस समयमे वह यही

विचार कर रहा था उर मृग ने मेराःअपना हित कहा था । तब तक बहु

यह देखता है कि पीछे लगा उस मृग ओर मृगी का जोडा वहाँ पर उपागत

हो गया था ।४०। उस मृग और मृगी के जोड़े ने पुष्कर में! जल कापान

किया था और उसके जल से अपने शरीरो का अभिषिञ्वन कियाथा।

भागंव परशुराम यह देख ही रहे थे कि उनके देखते-देखते वह मृग-मृगी का

जोड़ा अभस्त्य मुनि आश्रमः के सम्मुख चला गया या ।४१। राम- ने भी

अपनी सन्ध्योपासना को पूणं करके नैत्यिक कमं से निवृत्ति की थी ओर

चह भी अगस्त्य मुनि के आश्रम को चला गया था। यह परमोदार मन

वाला विपद्‌गत पुष्कर का दर्शन करते ही चला जा रहा था ।४२्‌। :

विष्णोः पदानि नागानां कुण्डं संप्तषिसंस्थितम्‌ ।

गत्वोपस्पृश्य शुच्य भो जगामागस्त्यसंश्रयम्‌ । ३३

यच्च ब्रह्मसुता राजन्सम।माता सरस्वती ।

त्रीन्‍्संप्रयितु कुण्डानाग्निहोत्रेस्य वै विधैः ।।४३

तत्र तीरे शुभं पृण्यं नानामुनिनिषेवितम्‌ ।

ददशं महदाण्चयें भार्गवः कृम्भजाश्रमम्‌ ॥४५

मृगे: सिहैः सह गतेः सेवितं णांतमानसैः ।

कटरेरजुं ने: पारिभद्रधवेगुद: ।॥४६

खदिरासनखन्‌ रे: संकुलं बदरीद्र मैः ।

तत्र प्रविश्य वे रामो ह्यकृतव्रणसंयुतः ।। ४७

ददर्शं मुनिमासीनं कृम्भजं शांतमानसम्‌ ।

स्तिभितोदसरः प्रख्यं ध्यायन्तं ब्रह्म शाश्वतम्‌ ।} ४८

कौश्यां वृष्यां मा्गकुति वसानं पल्लवोटजे ।

ननाम च महाराज स्वाभिधानं समुच्चरन्‌ ।।४€

भगवान्‌ विष्णु के पदों को-नागों के कुण्ड को जहाँ पर सप्तषिगण

संस्थित थे जाकर, उस परम शुचि जल का उपस्पर्शन करके फिर वह

अगस्त्य मुनि के संश्रय स्थल को चला गया था ।४३। है राजन्‌ ! वहाँ पर

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