पूर्वभागे द्विपक्नाशोःप्याय:
इत्येतद्विष्णुमाहात्य॑ कथित मुनिसत्तमा:।
एतत्सत्यं पुनः सत्यमेवं ज्ञात्वा च पुष्नति॥॥५०॥
घुनिश्रेष्ठो! इस प्रकार मैंने विष्णु का माहात्म्य बता दिवा।
यह सत्य है, पुनः सत्य है, ऐसा जान लेने पर व्यक्ति मोह
नहीं होता।
अस्मिन्मयन्तरे पूर्व वर्तमाने महान् प्रपुः।
द्वापरे प्रये व्यामो पनुः स्वायम्भुवो मतः॥ १॥
विभेद बहुधा वेदं नियोगादब्रह्मणः प्रभोः।
द्वितीय द्वापरे चैव वेदव्यासः प्रजापति:॥ २॥
सूतजी बोले- इस वर्तमान मन्वन्तर से पूर्य प्रथम द्रापर
युग में महान् प्रभु स्वायम्भुव मनु व्यास माने गये हैं। प्रभु
ब्रह्मा के नियोग से उन्होंने वेद को अनेक भागों में विभक्त
किया था। द्वितीय द्वापर युग में प्रजापति वेदव्यास हुए।
तृतोये चोशना व्यासू स्याद्वृहस्यतिः।
सविता पचे व्यासः ष्टे पृत्यु: प्रकोर्तित:॥ ३॥
समे च तचैवेनरो बसिष्टश्चाषटपे मतः।
सारस्वतश्च नवपे त्रिधापा दक्षमे पतः॥ ४॥
तोसरे द्वापर में शुक्र व्यास हुए और चौथे में बृहस्पति।
पाँचवें में सूर्य व्यास हुए और छठें में मृत्यु व्यासकृप में
प्रसिद्ध हुए। सप्तम द्वापर में इन्द्र व्यास हुए और आठवें में
वसिष्ठ। नवम द्वापर में सारस्वत और दशम में त्रिधामा व्यास
हुए।
एकादशे तु ऋषभ: सुतेजा द्वादशे स्पृतः।
ब्रयोदशे त्वा धर्मः सुचक्षृस्तु चतुर्दशे॥५॥
त्रव्यास्ण: पक्कदशे षोदश तु धनञ्जयः।
कृतञ्जयः सप्तदशे इृष्टादशे ऋतञ्जयः॥६॥
ततो व्यासो भरद्वाजस्तस्मादूर्ष्य तु गौतमः।
वाचश्रवाक्षैकविशे तस्मात्राराचणः परः।७॥
ग्यारहवें में ऋषभ नामक व्यास हुए और द्वादश में
सतेना हुए। तेरहवें में धर्म और चौदहवें में सुचक्षु हुए।
205
पन्द्रह॒वें में तर्यास्णि ओर सोलहवे में धनञ्जय व्यास हुए।
सन्नहवे में कृतक्षण तथा अठारहवें में ऋतज्ञय व्यास हुए।
तदनन्तर (उन्नीसतें) भरद्वाज व्यास हुएं। उसके पात्
गौतम व्यास हुए। इक्कोसवें मेँ वाचश्रवा और तत्पश्चात्
( बाहसवे संवत्सर में) नारायण हुए।
तृणविन्दुसत्रयोविशे वाल्योकिस्तत्पर: स्मृतः।
परविश तथा प्राप्ते यस्मिल्ै द्वापरे द्विजा:॥८॥
पराशरसुतो व्यासः कृष्णह्रैपायनो3भवता
(सा्रविशे तथा व्यासो जातूकर्णो महापुनिः।)
स एव सर्ववेदानां पुराणानां ्रदर्शकः॥ ९॥
तृणबिन्दु तेहसवें द्वापर युग में हुए। तत्पश्चात् ( चौवीसवे)
वाल्मीकि व्यास कहे गये। हे द्विजो! पशौसवें द्वापर के आने
पर शक्ति को उत्पत्ति हुई। इसके काद पराशर छब्बीसवें
द्वापर में तथा सत्ताईसवें द्वापर में जातूकर्ण नामक व्यास
हुए। अद्ठाइसबें पराशरपुत्र कृष्णदैपायन व्यास हुए। वे ही
समस्त वेदों तथा पुराणों के प्रदर्शक हुए।
पाराशर्यो महायोगी कृष्णद्रैपायनो हरि:।
आर्य देवपीशानं दृष्टा सत्वा त्रिलोचनम्॥ १०॥
तत्रसादादसौ व्यासं वेदानामकरोत्भु :॥ ११॥
प्र पतर व्यास महायोगी हैं। वे कृष्णदरप्रयन नाम से
प्रसिद्ध स्वयं हरि हैं। उन्टेनि त्रिलोचन ईशानदेव शङ्क की
आराधना करके उनके प्रत्यक्ष दर्शन किये और स्तुति करके
उन्हो की कृपा से प्रभु ने वेदों का विभाजन किया।
अथ शिष्यान् ख जग्माह चतुरो वेदपारगान।
जैपिनिज्ञ सुपन्तुक्त वैशम्पावनमेव चा। १२॥
पैलं तेषां चतुर्थञ्च पञ्चमं मां महापुनि:।
ऋग्वेदपाठकं पैलं जाह स महामुनिः॥ १३॥
अनन्तर उन्होंने येद-पारंगत चार शिष्यो को वे वेदविभाग
ग्रहण कएये अर्थात् उन्हें पढाया। वे चार- जैमिनि, सुमन्तु
वैशम्पायन और चतुर्थ पैल को (एक-एक वेद पाया) ।
महामुनि ने पम शिष्य मुझ सूत को (पुराण पटाकर)
तैयार किया। उन महामुनि चैल नामक शिष्य को ऋग्वेद
पठने बाले के रूप में स्वीकार किया।
यसुर्वदप्रयक्तारं वैशम्पायनमेव था
जैमिनि सापवेदस्व पाठकं सोऽन्वपद्चत॥ १४॥
तवैवाथववेदस्य सुषन्तुपृषिसत्तमम्।
इतिहासपुराणानि प्रवक्तुं मापयोजयत्॥ १५॥