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ग्रीष्म -ऋतुके सूर्यके समान दीप्तिमती थी। कण्ठमें | हुई हैं। देवौ महालक्ष्मी चतुर्भुज विष्णुकी पत्नी हैं

प्रकाशित शुभ मुक्ताहार गङ्गाकी धवल धारके | ओर वैकुण्ठधाममें वास करती हैं। राजाको

समान शोभा पा रहा था। रसिकशेखर श्यामसुन्दर | सम्पत्ति देनेवाली राजलक्ष्मी भी उन्हींकी अंशभूता

श्रीकृष्णने मन्द-मन्द मुस्कराती हुई अपनी उन | है । राजलक्ष्मीकी अंशभूता मर्त्यलक्ष्मी हैं, जो

प्रियतमाको देखा। प्राणवल्लभापर दृष्टि पड़ते ही |गृहस्थोंके घर-घरमें वास करती हैं। वे ही

विश्वकान्त श्रीकृष्ण मिलनके लिये उत्सुक हो |शस्याधिष्ठातृदेवी तथा वे ही गृहदेवी हैं। स्वयं

गये। परम मनोहर कान्तिवाले प्राणवल्लभको देखते | श्रीराधा श्रीकृष्णकी प्रियतमा हैं तथा श्रीकृष्णके

ही श्रीराधा उनके सामने दौड़ी गयीं। महेश्वरि! | ही वक्षःस्थले वास करती हैं। वे उन परमात्मा

उन्होंने अपने प्राणारामकौ ओर धावन किया, | श्रीकृष्णके प्राणोकौ अधिष्ठात्री देवी हैं।

इसीलिये पुराणवेत्ता महापुरुषोंने उनका "राधा! पार्वति! ब्रह्मासे लेकर तृण अथवा कौटपर्यन्त

यह सार्थक नाम निश्चित किया। राधा श्रीकृष्णकी | सम्पूर्ण जगत्‌ मिथ्या ही है। केवल त्रिगुणातीत

आराधना करती हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधाकी। वे परब्रह्म परमात्मा श्रीराधावल्लभ श्रीकृष्ण ही परम

दोनों परस्पर आराध्य और आराधक हैं। संतोंका सत्य हैं; अतः तुम उन्होंकी आराधना करो # वे

कथन है कि उनमें सभी दृष्टियोंसे पूर्णत: समता | सबसे प्रधान, परमात्मा, परमेश्वर, सबके आदिकारण,

है।* महेश्वरि! मेरे ईश्वर श्रीकृष्ण रासमें प्रियाजीके | सर्वपूज्य, निरीह तथा प्रकृतिसे परे विराजमान हैं।

धावनकर्मका स्मरण करते हैं, इसीलिये वे उन्हें | उनका नित्यरूप स्वेच्छामय है। वे भक्तोंपर अनुग्रह

" राधा" कहते हैं, ऐसा मेरा अनुमान है। दुर्गे! भक्त | करनेके लिये ही शरीर धारण करते हैं। श्रीकृष्णसे

पुरुष 'रा' शब्दके उच्चारणमात्रसे परम दुर्लभ |भिन्न जो दूसरे-दूसरे देवता हैं; उनका रूप प्राकृत

मुक्तिको पा लेता है और 'धा' शब्दके उच्चारणसे | तत्त्वोंसे ही गठित है। श्रीराधा श्रीकृष्णको प्राणोंसे

वह निश्चय ही श्रीहरिके चरणोंमें दौड़कर पहुँच | भी अधिक प्रिय हैं। वे परम सौभाग्यशालिनी हैं।

जाता है। “रा' का अर्थ है 'पाना' और 'धा' का | वे मूलप्रकृति परमेश्वरी श्रीराधा महाविष्णुकी जननी

अर्थ है 'निर्वाण' (मोक्ष) । भक्तजन उनसे निर्वाण- | हैं। संत पुरुष मानिनी राधाका सदा सेवन करते

मुक्ति पाता है, इसलिये उन्हें 'राधा' कहा गया है । | हैं। उनका चरणारविन्द ब्रह्मादि देवताओंके लिये

श्रीराधाके रोमकूपोंसे गोपियोंका समुदाय प्रकट | परम दुर्लभ होनेपर भी भक्तजनोंके लिये सदा

हुआ है तथा श्रोकृष्णके रोमकूपोंसे सम्पूर्ण गोपॉंका सुलभ है। सुदामाके शापसे देवी श्रीराधाको

प्रादुरभावि हआ है। श्रीराधाके वामांश-भागसे | गोलोकसे इस भूतलपर आना पड़ा था। उस समय

महालक्ष्मीका प्राकट्य हुआ है। वे ही शस्यकी | वे वृषभानु गोपके घरमें अवतीर्णं हुई थीं। वहां

अधिष्ठात्री देवी तथा गृहलक्ष्मीके रूपमें भी आविर्भूत | उनकी माता कलावती थीं। (अध्याय ४८)

न~~

* राधा भजति श्रीकृष्णं स च तां च परस्परम्‌ । उभयोः सर्वसाम्यं च सदा सन्तो वदन्ति च॥

(प्रकृतिखण्ड ४८। ३८)

† प्राणाधिष्ठातृदेवी च तस्यैव परमात्मनः। (प्रकृतिखण्ड ४८ ४७)

‡ आब्रद्यस्तम्बपर्यन्तं सर्व॑ मिथ्यैव पार्वति । भज सत्यं परं ब्रह्म राधेशं त्रिगुणात्परम्‌॥

(प्रकृतिखण्ड ४८१ ४८)

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