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* प्रकृतिखण्ड * १०९

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विष्णुपत्नी लक्ष्मी, सरस्वती एवं गड्राका परस्पर शापव भारतवर्षे पधारना

भगवान्‌ नारायण कहते हैँ- नारद) वे कि श्रीहरिं मेरी अपेक्षा गङ्गासे अधिक प्रेम करते

भगवती सरस्वती स्वयं वैकुण्ठमें भगवान्‌ श्रीहरिके हैं। तब उन्होंने श्रीहरिको कुछ कड़े शब्द कह

पास रहती हैं। पारस्परिक कलहके कारण गड्जाने दिये। फिर वे गड्भापर क्रोध करके कठोर बर्ताव

इन्हें शाप दे दिया था। अतः ये भारतवर्षमें अपनी करने लगीं। तब शान्तस्वरूपा, क्षमामयी लक्ष्मीने

एक कलासे पधारकर नदीरूपमें प्रकट हुईं। मुने! उनको रोक दिया। इसपर सरस्वतीने लक्ष्मीको

सरस्वती नदी पुण्य प्रदान करनेवाली, पुण्यरूपा | गङ्गाका पक्ष करनेवाली मानकर आवेशमें शाप

और पुण्यतीर्थ-स्वरूपिणी हैं। पुण्यात्मा पुरुषोंको | दे दिया कि “तुम निश्चय ही वृक्षरूपा और

चाहिये कि वे इनका सेवन करें। इनके तटपर | नदीरूपा हो जाओगी।'

पुण्यवानोंकी ही स्थिति है। ये तपस्वियोंके लिये लक्ष्मीने सरस्वतीके इस शापको सुन लिया;

तपोरूपा हैं और तपस्याका फल भी इनसे कोई | परंतु स्वयं बदलेमें सरस्वतीको शाप देना तो दूर

अलग वस्तु नहीं है। किये हुए सब पाप | रहा, उनके मनमें तनिक-सा क्रोध भी उत्पन्न

लकड़ीके समान हैं। उन्हें जलानेके लिये ये नहीं हआ। वे वहीं शान्त बैठी रहीं और

प्रज्वलित अग्रिस्वरूपा हैं। भूमण्डलपर रहनेवाले | सरस्वतीके हाथको अपने हाथसे पकड़ लिया।

जो मानव इनकी महिमा जानते हुए इनके तटपर | पर गड्जासे यह नहीं देखा गया। उन्होंने

अपना शरीर त्यागते हैं, उन्हें बैकुण्ठमें स्थान | सरस्वतीको शाप दे दिया। कहा--' बहन लक्ष्मी!

प्राप्त होता है। भगवान्‌ विष्णुके भवनपर वे बहुत | जो तुम्हें शाप दे चुकी है, वह सरस्वती भी

दिनोंतक वास करते हैं। | नदीरूपा हो जाय। यह नीचे मर्त्यलोकमें चली

तदनन्तर सरस्वती नदीमें स्नानकी और भी जाय, जहाँ सब पापीजन निवास करते हैं।'

महिमा कहकर नारायणने कहा कि इस प्रकार

सरस्वतौकौ महिमाका कुछ वर्णन किया गया है।

अब पुनः क्या सुनना चाहते हो।

सौति कहते हैं--शौनक ! भगवान्‌ नारायणकी

बात सुनकर मुनिवर नारदने पुनः तत्काल हो

उनसे यह पूछा।

नारदजीने कहा--सत्त्वस्वरूपा तथा सदा

पुण्यदायिनी गड़ाने सर्वपूज्या सरस्वतीदेवीको

शाप क्‍यों दे दिया ? इन दोनों तेजस्विनौ देवियोंके

विवादका कारण अवश्य ही कानोंको सुख

देनेवाला होगा। आप इसे बतानेकी कृपा कौजिये।

भगवान्‌ नारायण बोले--नारद ! यह प्राचीन

नारद! गड्जाकी यह बात सुनकर सरस्वतीने

उन्हें शाप दे दिया कि तुम्हें भी धरातलपर जाना

होगा और तुम पापियोंके पापको अड्भीकार

करोगी। इतनेमें भगवान्‌ श्रीहरि वहाँ आ गये।

उस समय चार भुजावाले वे प्रभु अपने चार

| परर्षदोंसे सुशोभित थे। उन्होंने सरस्वतीका हाथ

प्रकड़कर उन्हें अपने समीप प्रेमसे बैठा लिया।

तत्पश्चात्‌ वे सर्वज्ञानी श्रीहरि प्राचीन अखिल

ज्ञानका रहस्य समझाने लगे। उन दुःखित

देवियोंके कलह और शापका मुख्य कारण

सुनकर परम प्रभुने समयानुकूल बातें बतायीं ।

भगवान्‌ श्रीहरि बोले--लक्ष्मी ! शुभे! तुम

कथा मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो। लक्ष्मी, सरस्वती | अपनी कलासे राजा धर्मध्वजके घर पधारो। तुम

और गड्जा-ये तीनों ही भगवान्‌ श्रीहरिकी भार्या | किसीकी योनिसे उत्पन्न न होकर स्वयं भूमण्डलपर

हैं। एक बार सरस्वतीको यह संदेह हो गया | प्रकट हो जाना। वहीं तुम वृक्षरूपसे निवास

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