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९६ अशर्यवेद संहिता भाग-२

वरुणदेव आदित्यों के साथ दक्षिण दिशा में हमारे संरक्षणकर्त्ता हों। हम उनका अनुगमन करते हैं। हम

उनका आश्रय लेते हैं । हम उस नगर (या घर) में प्रवेश करते हैं । वे हमारी रक्षा करें, हमारा पालन करें, उनके

निमित्त हम अपने आप को समर्पित करते हैं ॥४ ॥

४६६७. सूर्यो मा द्यावापृथिवी भ्यां प्रतीच्या दिशः पातु तस्मिन्‌ क्रमे तस्मिज्छूये

तां पुरं प्रैमि स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा । ।५ ॥

सर्वप्रेरक सूर्यदेव धावा- पृथिवी सहित पश्चिम दिशा में हमारे संरक्षक हों । हम उनका अनुगमन करते है ।

हम उनका आश्रय लेते हैं हम उस नगर (या घर) ये प्रवेश करते है । वे हमारी रक्षा करें, हमारा पालन करें, उनके

निमित्त हम अपने आपको समर्पित करते हैं ॥५ ॥

४६६८. आपो मौषधीमतीरेतस्या दिशः पान्तु तासु क्रमे तासु श्रये तां पुरं प्रमि ।

ता मा रक्षन्तु ता मा गोपायन्तु ताभ्य आत्मानं परि ददे स्वाहा ।।६ ॥

ओषधियुक्त जल इस दिशा से हमारा संरक्षण करे हम उसका अनुगमन और आश्रय लेते है । हम उस

नगर मे प्रवेश करते हैं । वह हमारी रक्षा और पालन करे, उसके निमित्त हम अपने आपको समर्पित करते हैं ॥६ ॥

४६६९. विश्वकर्मा मा सप्तऋषिभिरुदीच्या दिशः पातु तस्मिन्‌ क्रमे तस्मिज्छुये तां पुरं

प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ।॥७॥

विश्व के स्रष्टा परमात्मा सप्तर्षियों के सहवोग से हमे उत्तर दिशा में संरक्षण प्रदान करें हम उनका अनुगमन

करते है । हम उनका आश्रय लेते हैं हम उस नगर (या घर) मे प्रवेश करते हैं, वे हमारी रक्षा करें, वे हमारा पालन

करें । उनके निमित्त हम अपने आप को समर्पित करते हैं ॥७ ॥

४६७०. इन्द्रो मा मरुत्वानेतस्या दिशः पातु तस्मिन्‌ क्रमे तस्मिज्छुये तां पुरं प्रैमि।

स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥८ ॥

इनद्रदेव मरुद्गण के सहयोग से इस दिशा में हमारे संरक्षक हों हम उनका अनुगमन करते है । हम उनका

आश्रय लेते है । हम उस नगर (या घर) मे प्रवेश करते है । वे हमारी रक्षा करें, वे हमारा पालन करें, उनके निमित्त

हम अपने आपको समर्पित करते हैं ॥८ ॥

४६७१. प्रजापतिर्मा प्रजननवान्त्सहं प्रतिष्ठाया शुवाया दिशः पातु तस्मिन्‌ क्रमे तस्मिज्छूये

तां पुरं प्रेमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥९॥

सम्पूर्ण विश्च की उत्पति के कारणभूत, प्रजनन क्षमता से युक्त प्रजापतिदेव ध्रुव दिशा में हमारे संरक्षक हो ।

हम उनका अनुगमन करते हैं और उनका आश्रय लेते हैं हम उस नगर (या घर) पे प्रवेश करते है । वे हमारी रक्षा

करें, वे हमारा पालन करें, उनके निभित्त हम अपने आप को समर्पित करते हैं ॥९ ॥

४६७२. बृहस्पतिरमा विश्रैरेवैरूरध्वाया दिशः पातु तस्मन्‌ क्रमे तस्मिज्छुये तां पुरं प्रैमि।

स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥१० ॥

देवशक्तियो के हितैषी वृहस्पतिदेव सम्पूर्ण देवों सहित ऊर्व दिशा में हमारे संरक्षक रूप हों । हम उनका

अनुगमन करते है ओर उनका आश्रय लेते ह । हम उस नगर (या घर) में प्रवेश करते है । वे हमारी रक्षा करें, वे

हमारा पालन करे, उनके निभित्त हम अपने आपको समर्पित करते है ॥१० ॥

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