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काण्ड-६ सुक्त- ३७ ९७

जो अग्निदेव समस्त भुवनों मे, विभिन्न रूपों में, अनेक प्रकार से देखते हैं एवं सूर्वरूप से प्रकाश देते हैं, वे

अग्निदेव राक्षस - पिशाचादि शत्रुओं से हमारी रक्षा करें ॥४ ॥

१३९६. यो अस्य पारे रजसः शुक्रो अग्निरजायत । स नः पर्षदति द्विषः ॥५ ॥

जो अग्निदेव (विद्युत्‌ या सूर्यरूप में ) इस पृथ्वी से परे अन्तरि श में प्रकट हुए हैं । वे देव, राक्षस, पिशाचादि

शत्रुओं से हमारी रक्षा करें ॥५ ॥

[३५ - वैश्वानर सूक्त |

[ ऋषि - कौशिक । देवता - वैश्वानर | छन्द - गायत्री । ]

१३९७, वैश्वानरो न ऊतय आ प्र यातु परावतः । अग्निर्नः सुष्टुतीरुप ॥९ ॥

समस्त मनुष्यों के हितैषी अग्निदेव हमारी रक्षा करने के लिए दूर देश से आएँ एवं सुन्दर स्तुतियों को सुने ॥

१३९८. वैश्वानरो न आगमदिमं यज्ञं सजुरुप । अग्निरुक्येष्वंहसु ॥२ ॥

वे समस्त मनुष्यों के हितैषी, वैश्वानर अग्निदेव हमारे स्तुतिरूप उक्थो ( स्तोत्रों ) से प्रसन्न होकर

हमारे इस यज्ञ में पधार ॥२ ॥

१३९९. वैश्वानरो5ड्विरसां स्तोममुक्थं च चाक्लृपत्‌ । एषु दयुम्नं स्वर्यमत्‌ ॥ ३ ॥

वैश्वानर अग्निदेव ने, उक्थो (मंत्रों ) को समर्थ बनाया तथा यश एवं अन्न प्राप्ति की रीति बताते हुए स्वर्ग-

सुख कौ प्राप्ति करा दी ॥३ ॥

[ ३६ - वैश्वानर सूक्त ]

[ऋषि ~ अधर्वा । देवता- अग्नि छन्द - गायत्री । ]

१४००, ऋतावानं वैश्वानरमृतस्य ज्योतिषस्पतिम्‌। अजस्रं घर्ममीमहे ॥१ ॥

यज्ञात्मक ज्योति के अधिपति और यज्ञ स्वरूप, सदैव देदीप्यमान रहने वाले वैश्वानर अग्निदेव की हम

उपासना करते हुए उनसे श्रेष्ठफल की याचना करते हैं ॥१ ॥

१४०१. स विश्वा प्रति चाक्लृप ऋतृरुत्‌ सृजते वशी । यज्ञस्य वय उत्तिरन्‌ ॥२ ॥

ये वैश्वानर अग्निदेव समस्त प्रजाओं के फल प्रदाता हैं । ये देवगणो को हविष्यात्न प्राप्त कराने वाले एवं सूर्य

रूप से वसन्त आदि ऋतुओं का नियमन करने वाले हैं ॥२ ॥

९४०२. अग्निः परेषु धामसु कामो भूतस्य भव्यस्य । सप्राडेको वि राजति ॥३ ॥

उत्तम धामों के स्वामी अग्निदेव हैं । भूत, वर्तमान एवं भविष्यत्‌ काल की कामनाओं की पूर्ति करने वाले ये

अग्निदेव और अधिक दीप्तिमान्‌ हो रहे हैं ॥३ ॥

[ ३७ - शापनाशन सूक्त |

(ऋषि - अथर्वा | देवता- चन्धमा । एन्द - अनुष्टप्‌ ।]

१४०३. उप प्रागात्‌ सहस्राक्षो युक्त्वा शपथों रथम्‌।

शप्तारमन्विच्छन्‌ मम वृक इवाविमतो गृहम्‌॥१ ॥

सहसाक् इन्द्रदेव रथारूढ़ होकर हमारे समीप आएँ एवं हमें शाप देने वाले को उसी प्रकार नष्ट करें, जैसे

भ्रेड़िया भेड़ को नष्ट करता है ॥६ ॥

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