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पितरोंकी मानसी कन्या थी। गोलोकसे वसुदाम | राधा श्रीकृष्णकी पूजनीया हैं और भगवान्‌ श्रीकृष्ण

गोप ही वृषभानु होकर इस भूतलपर आये थे। | राधाके पूजनीय हैं। वे दोनों एक-दूसरेके इष्ट

दुर्गे! इस प्रकार मैंने श्रीराधाका उत्तम | देवता हैं। उनमें भेदभाव करनेवाला पुरुष नरकमें

उपाख्यान सुनाया। यह सम्पत्ति प्रदान करनेवाला, | पड़ता है।* श्रीकृष्णके बाद धर्मने, ब्रह्माजीने,

पापहारी तथा पुत्र और पौत्रोंकी वृद्धि करनेवाला | मैंने, अनन्तने, बासुकिने तथा सूर्य और चन्द्रमाने

है। श्रीकृष्ण दो रूपोंमें प्रकट हैँ द्विभुज और | श्रीराधाका पूजन किया। तत्पश्चात्‌ देवराज इन्द्र,

चतुर्भुज। चतुर्भुजरूपसे वे वैकुण्ठधाममे निवास | रुद्रगण, मनु, मनुपुत्र, देबेन्द्रणण, मुनीनद्रगण तथा

करते हैं और स्वयं द्विभुज श्रीकृष्ण गोलोकधाममें । | सम्पूर्ण विश्वके लोगोंने श्रीशधाकी पूजा कौ। ये

चतुर्भुजकी पत्नी महालक्ष्मी, सरस्वती, गङ्गा और | सब द्वितीय आवरणके पूजक हैं| तृतीय आवरणमें

तुलसी हैं। ये चारों देवियाँ चतुर्भुज नारायणदेवकौ | सातों द्वीपोंके सम्राट्‌ सुयज्ञने तथा उनके पुत्र-पौत्रों

प्रिया हैं। श्रोकृष्णकी पत्नी श्रीराधा हैं, जो उनके | एवं मित्रोंने भारतवर्षमें प्रसन्नतापूर्वक श्रीराधिकाका

अरधाङ्गसे प्रकट हुई हैं। वे तेज, अवस्था, रूप | पूजन किया। उन महाराजकों दैववश किसी

तथा गुण सभी दृष्टियोंसे उनके अनुरूप हँ । | ब्राह्मणने शाप दे दिया था, जिससे उनका हाथ

विद्वान्‌ पुरुषको पहले “राधा' नामका उच्चारण | रोगग्रस्त हो गया था। इस कारण वे मन-ही-मन

करके पश्चात्‌ “कृष्ण” नामका उच्चारण करना | बहुत दुःखी रहते थे। उनकी राज्यलक्ष्मी छिन

चाहिये। इस क्रमसे उलट-फेर करनेपर वह | गयौ थी; परंतु श्रीराधाके वरसे उन्होंने अपना

पापका भागी होता है, इसमें संशय नहीं है।| राज्य प्राप्त कर लिया। ब्रह्माजीके दिये हुए स्तोत्रसे

कार्तिककी पूर्णिमाको गोलोकके रासमण्डलमें | परमेश्वरी श्रीराधाकी स्तुति करके राजाने उनके

श्रीकृष्णने श्रीराधाका पूजन किया और तत्सम्बन्धी | अभेद्य कबचको कण्ठ और बाँहमें धारण किया

महोत्सव रचाया। उत्तम रत्नोंकी गुटिकामें राधा- | तथा पुष्करतीर्थमें सौ वर्षोतक ध्यानपूर्वक उनकी

कवच रखकर गोपोंसहित श्रीहरिने उसे अपने | पूजा कौ। अन्तम वे महाराज रत्रमय विमानपर

कण्ठ और दाहिनी बाँहमें धारण किया। भक्तिभावसे | सवार होकर गोलोकधाममें चले गये। पार्वति!

उनका ध्यान करके स्तवन किया। फिर मधुसूदनने | यह सार प्रसङ्ग मैंने तुम्हें कह सुनाया। अब और

राधाके चबाये हुए ताम्बूलको लेकर स्वयं खाया। | क्या सुनना चाहती हो ? (अध्याय ४९)

[र

राजा सुयज्ञकी यज्ञशीलता और उन्हें ब्राह्यणके शापकी प्राप्ति, ऋषियोंद्वारा

ब्राह्मणको क्षमाके लिये प्रेरित करते हुए कृतघ्नोके भेद

तथा विभिन्न पापोंके फलका प्रतिपादन

पार्वतीने पूछा--प्रभो! राजा सुयज्ञ < जिनका पूजन किया है, उन्हीं परमेश्वरी श्रीराधाकी

थे? किस वंशमें उनका जन्म हुआ था? उन्हे सेवाका सौभाग्य एकं मल-मूत्रधारी मनुष्यको

ब्राह्मणका शाप कैसे प्राप्त हुआ था और किस | कैसे मिल सका? जिनके चरणारविन्दोकौ रजको

तरह श्रीराधाजीको वे पा सके? जो सर्वात्मा पानेके लिये ब्रह्माजौने पूर्वकालमें पुष्करतीर्थके

श्रीकृष्णकौ पत्नी हैं तथा साक्षात्‌ श्रीकृष्णने । भीतर साठ हजार वर्षोतक तप किया तथा जिनका

* राधा पज्या च कृष्णस्य हत्पूज्यो भगवान्‌ प्रभुः । परस्यराभौष्टदेवो भेदकृन्नरकं ब्रजेत्‌ ॥

(प्रकृतिखण्ड ४९। ६३)

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