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३३ अथर्ववेद संहिता भाग-२

४४९६. अपूपवान्‌ पृतवाश्चरुरेह सीदतु ।

लोककृतः पथिकृतो यजामहे ये देवानां हुतभागा इह स्थ ॥१९ ॥

पुओं तथा घृत से युक्त चरु यहाँ इस यज्ञ में स्थित हो । हम श्रेष्ठ लोको तथा उनके मार्गों के निर्माता उन

देवो का यजन करते हैं , जो यहाँ इस यज्ञ में पधारे हैं ॥१९ ॥

४४९७. अपूपवान्‌ मांसवांश्वस्रेह सीदतु ।

लोककृतः पथिकृतो यजामहे ये देवानां हुतभागा इह स्थ ॥२० ॥

अपूर्षों और गूदे से बना चर इस यज्ञशाला पे स्थित हो । हम श्रेष्ठ लोको तथा उनके मार्गों के निर्माता उन

देवों का यजन करते हैं, जो यहाँ इस यज्ञ में पधारे है ॥२० ॥

४४९८. अपुपवानन्नवांश्चररेह सीदतु ।

लोककृतः पथिकृतो यजामहे ये देवानां हुतभागा इह स्थ ॥२१॥

अपूपो ओर अत्र से युक्त च इस यज्ञ में स्थित हो । हम श्रेष्ठ लोकों तथा उनके मार्गों के निर्माता उन देवों

का यजन करते हैं जो यहाँ इस यज्ञ में पधारे हैं ॥२१ ॥

४४९९. अपूपवान्‌ मधुमांश्चररेह सीदतु ।

लोककृतः पथिकृतो यजामहे ये देवानां हुतभागा इह स्थ ॥२२ ॥

अपूर्षों और मधु से युक्त चरु इस यज्ञ में स्थित हो । हम श्रेष्ठ लोकों तथा उनके मार्गों के निर्माता उन देवों

का यजन करते हैं, जो यहाँ इस यज्ञ में पधारे हैं ॥२२ ॥

४५००. अपूपवान्‌ रसवांश्वरुरेह सीदतु लोककृतः पथिकृतो

यजामहे ये देवानां हुतभागा इह स्थ ॥२३ ॥

अपूपो ओर रसो से युक्त चरु इस यज्ञ मे स्थित हो । हम श्रेष्ठ लोको तथा उनके मार्गों के निर्माता उन देवों

का यजन करते हैं, जो यहाँ इस यज्ञ में पधारे है ॥२३ ॥

४५०१. अपुपवानपर्वाश्चरुरेह सीदतु ।

लोककृतः पथिकृतो यज़ामहे ये देवानां हुतभागा इह स्थ ॥२४ ॥

अपूपो और जल से निर्पित चरु इस यज्ञ में स्थित हो । हम श्रेष्ठ लोकों तथा उनके मार्गों के निर्माता उन देवों

का यजन करते हैं , जो यहाँ इस यज्ञ में पधार हैं ॥२४ ॥

४५०२. अपूपापिहितान्‌ कुम्भान्‌ यांस्ते देवा अधारयन्‌।

ते ते सन्तु स्वधावन्तो मधुमन्तो घृतश्चुतः ॥२५ ॥

जिन अपूपो ( पुओं ) से भरे हुए कलशों को आपके उपभोग हेतु देवों ने ग्रहण किया है, वे कलश आपके

निमित्त स्वधायुक्त, मधुरतापूर्वक तथा घृतादि से सग्यन्न हों ॥२५ ॥

४५०३. यास्ते धाना अनुकिरामि तिलमिश्राः स्वधावतीः ।

तास्ते सन्तूद्भ्वीः प्रभ्वीस्तास्ते यमो राजानु मन्यताम्‌ ॥२६ ॥

तिल मिश्रित जिन स्वधात्रयुक्त जौ की खीलो को हम समर्पित करते दै वे खीले तुम्हारे परलोक प्रस्थान पर

विस्तृत सत्परिणाप देने वाली हों । राजा यम आपको खीलो का उपभोग करने की आज्ञा प्रदान करें ॥२६ ॥

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