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स्वधर्मेषु चाखिलमेव संस्थापयिष्यति ॥ ९८ ॥

अनन्तरं चा्ञेषककेरवसाने निशावसाने विवुद्धा-

नामिव तेषामेव जनपदानाममलस्फटिकविशुद्धा

मतयो भविष्यन्ति॥९९॥ तेषां च

बीजभूतानामङोषमनुष्याणौ परिणतानामपि

तत्कालकृतापत्यप्रसूतिर्भविष्यति ॥ १०० ॥

तानि च तदपत्यानि

भविष्यन्ति ॥ १०९ ॥

अग्रेव्यते

यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यो बृहस्पति: ।

एकराशौ समेष्यन्ति तदा भवति वै कृतम्‌ ॥ १०२

अतीता वर्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये ।

एते रवं्ञेषु भूपालाः कथिता मुनिसत्तम । १०३

यावत्परीक्षितो जन्प चावन्नन्दाभिषेचनम्‌ ।

एतहर्षसहल्ल तु ज्ञेय॑ पञ्चाशादु्तरम्‌ ॥ १०४

कल सनक एन कक करत तु यौ पूरौ दृश्येते र दिवि ।

नक्षत्र ॥ १०५

नृणाम्‌।

ते तु पारीक्षिते काले मघास्वासन्द्रिजोत्तम ॥ ९०६

तदा प्रयुतश्च कलिणद्रादशाव्टशतात्मकः ॥ १०७

यदैव भगवान्विष्णोरंशो यातो दिवं द्विज ।

वसुदेवकुलोद्धूतस्तदैवात्रागतः कलिः ॥ १०८

यावत्स पादपद्याभ्यां पस्पशेमां वसुन्धराम्‌ ।

तावत्पुथ्वीपरिषूङ्गे समर्थो नाभवत्कलिः ।॥ १०९

गते सनातनस्य हो विष्णोस्तत्र भुवो दिवम्‌ ।

तत्याज सानुजो राज्यं धर्पपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ११०

विपरीतानि दृष्ठा च निमित्तानि हि पाण्डवः ।

याते कृष्णे चकाराथ सोऽभिषेकं परीक्षित: ।। १११

प्रयास्यन्ति यदा चैते पूर्वाषाढां महर्षयः ।

तदा नन्दात्मभृत्येष गतिवृद्धि गमिष्यति गतिवृद्धि गमिष्यति ॥ ११२

श्रीविष्णुपुराण

[ अ रथ

सम्पन्न हो सकल म्लेच्छ, दस्यु, दुष्टाचारी तथा दुष्ट

चित्तोंका क्षय करेंगे और समस्त प्रजाक्ये अपने-अपने

श्र्ममें नियुक्त करेंगे॥ ९८ ॥ इसके पश्चात्‌ समस्त

कलियुगके समाप्त हो जानेपर रात्रिके अन्ते जागे

हुओंके समान तत्कालीन लोगोंकी युद्धि स्वच्छ,

स्फटिकर्मणिके समान निर्म हो जायगी॥ ९९॥ उन

बीजभूत समस्त मनुष्योंसे उनकी अधिक शवरधा होनेपर

भी उस समय सन्तान उत्पन्न हो सकेगी ॥ १००॥

उनकी वे सन्‍्तानें सत्ययुगके ही धमौका अनुसरण

करनेवाली होंगी ॥ १०१ ॥

इस विषये ऐसा कहा जाता है क्ति--जिस

समय चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्गति पुष्यनक्षत्रमें स्थित

होकर एक राशिपर एक साथ आवेंगे उसी समय

सत्ययुगका आरम्भ हो जायगा* ॥ १०२ ॥

हे मुनिश्रेष् ! तुमसे मैंने यह समस्त चेज्लॉंके भूत, भविष्यत्‌

और वर्तमान साप्पूर्ण रुजाओंका वर्णन कर दिया | १०३ ॥

परीक्षित्के जन्मसे नन्‍्दके अभिषेकतक एक हजार पचास

वर्षका समय जानना चाहिये॥ १०४ ॥ सप्रर्पियॉमेंसे जो

[ पुलस्त्य और क्रतु ] दो नक्षत्र आकाझमें पहले दिखायी

देते रै, उनके बोचमें यक्िकि समय जो [ दक्षिणोत्तर रेखापर |

समदेशमें स्थित [ अश्विनी आदि } नक्षत्र हैं, उनमेंसे प्रत्येक

नक्षत्रपर सपिगण एक-एक सौ वर्ष रहते हैं । हे द्विजोत्तम !

परीते समयसे वे सप्तर्पिगण मघानक्षत्रपर थे | उसो समय

आरह सौ कर्णं प्रमाणवात्थ करटा आरम्भ हुआ था

॥ १०५--१०७ | हे द्विज ! जिस समय भगवान्‌ विष्णुके

अंज्ञावतार भगवान्‌ वासुदेव निजधामन्त्रे पथारे थे उसी समय

पृथिवीपर कलियुगका आगमन हुआ था ॥ १०८ ॥

जबतक भगवान्‌ अपने चरणकमलॉसे इस पृथिवीका

स्पर्श करते रहे तबतक पृथिवीसे संसर्ग करनेकी

कलियुगको हिम्मत = पड़ी ॥ १०९ ॥

सनातन पुरुष भगवान्‌ चिष्णुके अँदावतार

श्रोकृष्णचन्द्रके स्वर्गलोक पथारनेपर भाइयोके सहित

धर्मपुत्र महारज युधिषिर अपने राज्यको छोड़

दिया । ११० ॥ कष्णचद्धके अन्तर्धान हो जानेपर विपरीत

लक्षणॉको देखकर पाण्डवॉने परीक्षित॒कों राज्यपदपर

अभिषिक्त कर दिया॥ १११॥ जिस रपय ये सप्मर्षिगण

पूर्वाषाद्मनक्षत्रपर जार्यैगे उसी समय राजा नन्दके समयसे

* यपि प्रति बारहवे वर्ष जब यूहस्पति कर्कराशिपर जाते हैं तो उप्माठास्यातिचिको पुष्यनक्षत्रपर इन तीनों गहोंका योग

होता है, तथापि 'समेष्यन्ति' पदसे एक साथ आनेपर सस्ययुगका आरम्भ कहा है; इसलिये उक्त समयपर अतिष्याप्तिदोष नहीं है!

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