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करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्टोंको पाता तथा पुरुषको देखकर भूत, प्रेत, पि्लाच,
सौभाग्य और मङ्गलं लाघ करता है । चौदह डाकिनी, हाकिनी तथा जो अन्य ग्रोहकारी
मुखयाला जो रुद्राक्ष है, वह परम शिवरूप राक्षस आदि हैं, वे सब-के-सब दूर भाग
है। उसे भक्तिपूर्वक मस्तकपर धारण करे । जाते हैँ । जो कुत्रिम अधिचार आदि अयुक्त
इससे समस्त पार्पोका नाझ हो जाता है। होते है, वे सब रुदराश्षधारीको देखकर सराङ्क
गिरिराजकुमारी ! इस प्रकार मुख्योक्े हो दूर स्थिसक जाते हैं। पार्वती ! रुद्गाक्ष-
भेदसे स्द्ाक्षके चौदह भेद बताये गये । अब मात्प्रधारी पुरुषको देखकर मैं रिच,
तुम क्रमाः उन स्दराक्षेकि धारण करनेके भगवान् विष्णु, देखी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा
अन्ह्रोंको प्रसत्नलापूर्सपक सुनों। १. 3» हीं अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। महेश्वरि !
नमः । २. ॐ नमः । ३. ॐ क्री नमः । ४. 3» इस प्रकार भरुद्राक्षकी महिमाकों जानकर
हीं नमः। ५. 35 हो नमः । ६. 3 दी हुं श्वरर्मकी बृुद्धिके लिये भक्तिपूर्वक पूर्वोक्त
नमः । ७. ॐ हु नमः। ८. 3 हू नमः । ९. मन्त्रौद्यरा विधिवत् उसे भारण करना
ॐ हीं हुँ नमः / ९०. ॐ हीं नमः । १९. ॐ चाहिये ।
हीह नमः। ९२. ॐ> क्रो क्षौ हैं नमः | १३. मुनीश्वर }! भगवान्. पियने देवी
ॐ हं नमः । १४. ॐ नमः । इन चौदह पार्वतीके सामने जो कुछ कहा था, वह सव
मनोहरा क्रमाः एकसे लेकर चौदह तुम्हारे प्रश्नके अनुसार मैंने कह सुनाया ।
मुखबाले रुद्धाक्षकों धारण करनेका विधान मुनीक्षरों ! मैंने तुम्हारे समक्ष इस
है। साधकको चाहिये कि चह निद्रा ओर विद्येश्वरसंहिताका वर्णन क्रिया है। यह
आलस्थका त्याग करके अ्रद्धा-भक्तिसे संहिता सम्पूर्ण सिद्धियॉकों देनेवाली तथा
सम्पन्न हो सम्पूर्ण मनोरर्थकी सिद्धिके लिये भगवान् शिवकरी आज्ञासे नित्य मोश्च प्रदान
उक्त म्रक्तोंद्रारा उत्त-उत्त र्चाक्षोक्रो धारण करनेवाली है।
करे। रुढ्राक्षकी पाता धारेण करनेवाले (अध्याय २५)
प्री
॥ बविश्येश्वरसंहिता सम्पूर्ण ॥
चर