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१०० ] [ मत्स्यपुराण

तयोश्चम्वोस्तदानीन्तु बभूवे स समागमः ।२०

द्यावापृथिव्योः संयोगो यथा स्याद्‌ गविपर्येये ।

तद्य दमभवद्‌ घोरं देवदानवसंकुलम्‌ ।२१

उस समय में उस महान रण स्थल में ये सब कालनेमि को अपना

पुरोगामी वनाकर उपस्थित हो गये थे और वह दैत्यों की विशाल सेना

परम दीप्त-प्रलस्त एवं अतीत श्रेष्ठ होकर दीप्तिमती हो गई थी ।

। १५। इसी भाँति महेन्द्र के द्वारा सुरक्षित देवों को भी सेना दिवलोक

मे निमीलित समस्त अद्धो वालीं नीलाम्बुदागममें धनी परम प्रह्मष्ट हो

रही थी ।१६। चन्द्र और सूर्य के श्वेत एवं कृष्ण ताराओं से समुपेत

वह देवों की सेना थी जो वायु के सहण वेग से यक्त परम सौम्य और

तारागणों की पताकाओं वाली ।१७। तोयदो से आविद्ध वसनों वाली,

ग्रहों तथा नक्षत्रों के हास से संयत थी । वह देवोंकी विशाल सेना यम

इन्द्र, वरुण और परम धीमान्‌ घनद कुवेर के द्वारा सुरक्षित थी ।१८।

अत्यन्त सम्प्रदीप्त अग्नि के नयनों वाली--नारायण प्रभु में परायण

एवं समुद्रों के ओंघ के समान बह देवों की अतीव महान एवं विशाल

सेना दिव्य हो रही थी ।१६। यक्षों और गन्धर्बों की शोभा से सुसम्पन्न

भीम स्वरूप वाली तथा नाना भाँति के अस्त्र शस्त्रों से यक्त होती हुई

दीप्तिमान हो गई थी । उसी समय में उन दोनों दैत्यों तथा देवों की

सेनाओं का वहाँ पर समागम हो गया था ।२०। जिस प्रकार से यूग

का विपर्सय उपस्थित होने पर द्यावा पृथ्वी का संयोग हो जाया करता

है उसी भाँति वह देवों और दानवों का परम संकुल घोर यूद्ध हो

गया था ।२६१।

क्षमापराक्रमपरं दपंस्य विनयस्य च ।

नपकन भीमास्तत्र सुरासुराः ।२२

पूर्वापराभ्यां : सागराभ्यामिवाम्बुदाः ।

ताभ्यां बलाभ्यां संदष्टश्चेरुस्ते देवदानवाः ।२३

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