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गुड़, चाँदी, नमक, कोह और कन्या--ये
ही वे बारह वस्तु हैं। इनमे गोदानसे
क्रायिकः, बाचिक और मानसिक पापोंका
निवारण तश्चा कायिक आदि पुण्बकरमॉकी
पुष्टि होती है। ब्राह्मणो ! भूमिका दान
इत्येक और परल्कोकपें प्रतिष्ठा (आश्रय )
की प्राप्ति करानेवाछा है। तिलका दान
चलवर्यक्क एवं यृत्युका निवारक स्तोता है।
सुबर्णका दान जटराभ्रिको बढ़ानेवात्ठा तथा
चीर्यदायक्त है। घीका दान पुष्टिकारक होता
है। वस्वेका दान आसी वृद्धि करनेवाला
है, ऐसा जानना चाहिये । धान्यका दान अन्न-
धनकी समृद्धिम कारण होता है । गुडका
दान मधुर भोजनकी भ्राप्ति करानेवाल्या होता
है) चाँदीके दानसे वीर्यकी बुद्धि होती दै ।
ल्ववणका दान षडरस भोजनकी प्राप्ति
कराता है। सव अकारका वान सारी
समृखिकी सिद्धिके लिये होता है । विज्ञ पुरुष
कृष्माप्डके दानको पुष्टिदायक मानते हैं।
कन्याका दान आजीवन भोग देनेवोता कहा
गया है। ब्राह्मणो ! वह त्तकं और
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कराते हैं तथा दिशा आदि इच्धिय*
उपदेदासे अथवा खयं ही बोध प्राप्त करनेके
पश्चात् जो बुद्धिका यह निश्चय होता है कि
'कर्तोंका फल अवदय मिलता है', इसीको
उच्चकोटिकी 'आस्तिकता' कहते हैं। भाई-
बन्धु अश्वः राजाके भयसे जो आस्तिकरता-
बुद्धि या श्रद्धा होती है, यह कनिष्ठ श्रेणीकी
आस्तिकता है। जो सर्वथा दरिद्र है, इसलिये
जिसके पास सभी वस्तुओंका अभाव है,
यह वाणी अथया कर्म (झरीर) द्रा यजन
करे। मन्त्र, स्तोत्र और जप आदिको
खाणीह्वारा किया गबा यजन समझना
चाहिये तथा तीर्धयात्रा और त्रत आदिको
विद्वान् पुरुष शारीरिक यजन मानते दै । जिस
किसी भी उपायसे थोड़ा हो या बहुत,
देवतार्पण-बुद्धिसे जो कुछ भी दिया अथवा
किया जाय, चदे दान या सत्कर्म भोगोकी
श्राप्नि करानेमे समर्थ होता है \ तपस्या और
दाय-ये दो कर्म मनुष्यको सदा करने
परलोकमे भी सप्पर्णं भोरगोकी प्राप्ति चाहिये तथा ऐसे गृहका दान करना चाहिये,
करानेवाल्ला है।
बिद्दान पुरुषको चाहिये कि जिन
जो अपने वर्ण (च्रमक-दमक या सफाई)
और गुण (सुख-सुविधा) से सुझोभित हो ।
वस्तुओसे श्रवण आदि इच्ध्ियोंकी तृप्ति होती बुद्धिमान् पुरुष देवताओंकी तुप्निके लिये जो
है, उनका सदा दान के श्रोत्र आदि दस कुछ देते हैं, वह अतिद्याय माआमें और सय
इन्द्रियो जो दाब्द आदि दस चिचय हैं, प्रकारके 'भोग प्रदान करनेयार्ठा होता है।
उनका दान क्छिया जाय तो वे भोगोकी प्राप्ति उस्त॒ दानसे विद्वान् पुरुष इहत्दोक और
अर्थात् खेत कट जाते या बाजार ठट जानेपर वहाँ प्रश्रे हुए अन्नके ए#-एफ कणो चुरक और उससे
जीविका चलाना "ञ्छ" भृत्ति है तथा सोने फस कट नेप यहाँ पञ गेहूँ आदिकी चाके जीनना 'शिला'
कहा है ओर उससे जीविक्र चत्म्रना शिल युत्ति है।
+ श्रवणेन्दियके देखता दिशाएँ, नेतर सूर्य, नासिकाके अश्विनीकुमार, स्सनेन्द्रियके वकण, स्वरिन्द्रिय्के
यानु, ऋशिन्द्रिवके अप्रि, लिङ्गे प्रजपत्ति, गुदाके मित्र, हथोंके इन्द्र और पैरोंके देखता विष्णु है ।