अशर्वेद संहिता भाग-२
समस्त देवगण शत्रुसेना का अतिक्रमण करें । त्रिषन्धि वज्र को हवि प्रिय है । हे देवगण ! जिससे आपने
प्रारम्भ में आसुरी शक्तियों का पराभव किया, उसी से सन्धि की सुरक्षा करें ॥१५ ॥
३२८.८.वायुरमित्राणामिष्वग्रा्याज्चतु । इन्द्र एषां बाहून् प्रति भनक्त मा शकन् प्रति-
धामिषुम्। आदित्य एषामखरं वि नाशयतु चन्द्रमा युतामगतस्य पन्थाम् ॥९६ ॥
वायुदेव शत्रुओं के बाणो के अग्रिम भागों को शक्ति विहीन करें । इन्द्रदेव इनकी भुजाओं को खंडित कर
दे । वे शत्रु प्रत्यज्वा पर बाण चढ़ा पाने में सक्षम न हों । सूर्यदेव इनके आयुधों को विनष्ट करें । चन्द्रदेव शत्रु के
मार्ग को अवरुद्ध करे ॥१६ ॥
३२८९. यदि प्रेयुदेंवपुरा ब्रह्म वर्माणि चक्रिरे तनूपानं
परिपाणं कृण्वाना यदुपोचिरे सर्वं तदरसं कृधि ॥१७ ॥
हे देवताओ ! यदि शब्रुरूप राक्षसों ने पूर्व से ही मन्रमय कवचो का निर्माण किया हो, तो आप उन मों
को निरर्थक (शक्तिहीन) कर दें ॥१७ ॥
३२९०.क्रव्यादानुवर्तयन् मृत्युना च पुरोहितम् ।
त्रिषन्धे प्रेहि सेनया जयामित्रान् प्र पद्यस्व ॥१८ ॥
हे त्रिवंधिदेव ! आप शत्रु समूह को घेरकर मांसभक्षियों के सामने धकेल दें और अपनी सेना के साथ आगे
बढ़ें तथा शत्रुओं को जीतकर, उन्हें अपने नियन्त्रण में करें ॥१८ ॥
३२९१.त्रषन्धे तमसा त्वममित्रान् परि वारय । पृषदाज्यप्रणुत्तानां मामीषां मोचि कञ्चन ।
हे त्रिषन्धिदेव ! आप अपने मायावी अन्धकार से शत्रुओं को चेरे, पृषटाज्य (महान् ब्रत या सार तत्त्व) से
प्रेरित होकर इन शत्रुओं में से कोई भी मुक्त न रह पाए ॥१९ ॥
३२९२. शितिपदी सं पतत्वमित्राणाममूः सिचः । मुहान्त्वद्यामू: सेना अमित्राणां न्यर्बुदे ॥
श्वेत पादयुक्तं शक्ति शत्रुओं की सेना के ऊपर गिर पड़े । हे अर्बुदे ! आज ये युद्धभूमि में दूर-दूर दिखाई
देती हुई शत्रु सेनाएँ किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाएँ ॥२० ॥
३२९३. मूढा अमित्रा न्यर्बुदे जह्मोषां वरंवरम्। अनया जहि सेनया ॥२१ ॥
हे अर्बुदे ! आप अपनी माया से शत्रुओं को व्यामोहित करें, इनके मुख्य सेनापतियों का पराभव करें । आपके
अनुप्रह से हमारी सेना भी उन पर विजय प्राप्त करे ॥२१ ॥
३२९४. यश्च कवची यश्चाकवचो३मित्रो यश्चाज्मनि |
ज्यापाशैः कवचपाशैरज्मनाभिहतः शयाम् ॥२२ ॥
शत्रु सैनिक कवच को धारण किये हुए, कवचरहित अथवा रथारूढ़ जिस भी स्थिति में युद्ध कर रहे हों, वे
अपने ही कवच बोधने के पाशों, प्रत्यज्वा पाशों और रथ के आघातो से घायल होकर गत्यवरोध से चेष्टारहित
होकर गिर पं ॥२२ ॥
३२९५. ये वर्मिणो येऽवर्माणो अमित्रा ये च वर्मिण: ।
सर्वास्ताँ अर्बुदे हताज्छवानोऽदन्तु भूम्याम् ॥२३ ॥
जो शत्रु कवचधारी, कवचविहीन ओर कवच के अतिरिक्त रक्षा साधनों को धारण करने वाले हैं । हे अर्बुदे !
उनकी मृत देहो को पृथ्वी पर कुत्ते, गीदड़ आदि भक्षण कर जाएँ ॥२३ ॥