Home
← पिछला
अगला →

# ५ संक्षिप्त भिवपुररण #

7 | 40

शुहस्थ पुलको चहिये क्कि यह रन -घान्थादि प्राप्त हुए नका छठा भाग दान कर देने

सब वस्तुओऑका दान करे। बह तृषा- योग्य है। ब्रुद्धिमान्‌ पुरुष अवश्य उसका

निवृत्तिके लिये जल तथा क्षुधारूपी रोगकी

शान्तिके लिये सदा अन्नका दान करे खेत,

धान्य, क्या अन्न चधा धश्च, भोज्य, लदा दोषो

पालन करता है, उतने समयतक उसके किये

हुए पुण्यफलका आशा भाग दाताको पिल

जाता है-“इसमें संत्राय नहीं हैं। दान

लेनेवाला पुरुष दानमे प्राप्त हुईं वस्तुक्ता दान

तथा लफस्ण! करने आपने प्रत्ति-प्रहृरजनित्त

पापकी शुद्धि कर लछे। अन्यथा उसे रौरव

नरके गिरना पड़ता है। अपने धनके तीन

भार करें--एक भाग धर्मके लिये, दूसरा

भाग वृद्धिके लिये तथा तीसरा भाग अपने

उधधोणफ़े स्ये। नित्य, नैमित्तिक और

काम्ब--ये तीनों प्रकारके कर्म धर्मार्थ रखे

हुए धनसे करे । साथकको चाहिये च्छि कह,

बृद्धिके लगे रखे हुए धनसे ऐसा व्यापार

करे, जिससे उस धनकी युद्धि ष्टो तथा

उपधोगके किये रक्षित घनसे हितकारक,

परिभित एवं पित्र भोग भोगे । खेतीसे पैदा

चयि दए नकः दसौ अश दान कर दे।

इससे पापक्ती शुद्धि होती है। शेष धनसे

धर्म, वृद्धि एवं उपभोग करे; अन्यथा यह

रौरव नरकमें पड़ता हैं अथवा उसकी सुद्धि

पाषपूर्ण हो जाती है या खेती ही चौपट हो

दान कर हे ।

विद्वानुकी च

यन्दनामात्र कर ले । आत्मज्ञानकी इंच्छावाले

तथ श्वनप्यीं पुरुषोंक्ो भरी इुछ प्रकार

विधिन्नत्‌ उपासना करनी चाहिये । जो सदा

ब्रह्ययज्ञमें तत्पर होते हैं, दैवताओंकी पूजामें

लगे रहते हैं, नित्य अग्रिपुजा एवं गुठुपूजामें

अनुरक्त होते हैं तथ ब्राह्मणको चुत किया

करते हैं, वे सब स्मोग स्वर्गल्मोकके भागी

होते हैं। (अध्याय १३)

दर

← पिछला
अगला →