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१६ अधर्यवेद संहिता भाग-१

२५६. पिशाचक्षयणमसि पिशाचचातनं मे दाः स्वाहा ॥४॥

हे अग्निदेव ! आपे पिशाचो को विनष्ट करने वाते हैं अतः आप हमें पिशाचनाशक शक्ति प्रदान करें; हम

आपका हवि प्रदान करते हैं ॥४ ॥

२५७. सदान्वाक्षयणमसि सदान्वाचातनं मे दा: स्वाहा ॥५ ॥

हे अग्निदेव ! आप आसुरी वृत्तियों को दूर करने की शक्ति से सम्पन है । अतः आप हमें वह शक्ति प्रदान

करें; हम आपको हवि प्रदान करते हैं ॥५ ॥

[ १९- शब्रुनाशन सूक्त ]

[ऋषि - अथर्वा । देवता - अग्नि । छन्द -एकावसाना निचृत्‌ विषमा त्रिपदा गायत्री, ५ एकावसाना भुरिक

विषमा त्रिपदा गायत्री । |]

२५८. अग्ने यत्‌ ते तपस्तेन तं प्रति तप योरेस्मान्‌ द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥९ ॥

हे अग्निदेव ! आपके अन्दर जो ताप है, उस शक्ति के द्वारा आप रिपुओं को तप्त करें । जो शत्रुं हमसे विदरेष

करते हैं तथा जिससे हम विद्वेष करते हैं, उन रिपुओं को आप संतप्त करे ॥१ ॥

२५९. अग्ने यत्‌ ते हरस्तेन तं प्रति हर यो३स्मान्‌ द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥२ ॥

है अग्निदेव ! आपके अन्दर जो हरमे कौ शक्ति विद्यमान है, उस शक्ति केद्वारा आप उन रिपुओं की शक्ति

का हरण करें, जो हम से विद्वेष करते हैं तथा हम जिससे देष करते हैं ॥२ ॥

२६०. अग्ने यत्‌ तेऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्च योऽस्मान्‌ दष्ट वं वयं द्विष्मः ॥३ ॥

है अग्निदेव । आपके अन्दर जो दीप्ति है, उस शक्ति के द्वारा आप उन रिपुओं को जला दें, जो हमसे विद्वेप

करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते है ॥३ ॥

२६१. अग्ने यत्‌ ते शोचिस्तेन ते प्रति शोच योरेस्मान्‌ दष्ट यं वयं द्विष्मः ॥४.॥

हे अग्निदेव ! आपके अन्दर जो शोकाकुल करने की शक्ति है, उस शक्ति के द्वारा आप उन व्यक्तियों को

शोकाकुल करे, जो हमसे शत्रुता करते हैं तथा जिनसे हम शत्रुता करते हैं ॥4 ॥

२६२. अग्ने यत्‌ ते तेजस्तेन तमतेंजसं कृणु योरेस्मान्‌ द्वेष्टि यं वयं द्विष्म: ॥५ ॥

है अग्निदेव ! आपके अन्दर जो पराभिभूत करने को शक्ति विद्यमान है, उस अभिभूत करने की तेजस्विता

के द्वारा आप उन मनुष्यों को निस्तेज करें, जो हमसे शत्रुता करते हैं तथा जिनमे डप शत्रुता करते हैं ॥५ ॥

[ २०- शत्रुनाशन सूक्त ]

[ ऋषि-अयर्वा । देवता- वायु । छन्द्‌-एकावसानेो निचत्‌ विषया त्रिपटागायत्री,|५ भुग्कि विषा त्रिपदागायत्री |

२६३. वायो यत्‌ ते तपस्तेन तं प्रति तप योडस्मान्‌ द्वेष्टि यं वयं द्विष्प: ॥९ ॥

हे बायुदेव ! आपके अन्दर जो ताप (प्रताप) है, उस शक्ति के द्वारा आप उन रिपुओं को तप्त करें, जो हमसे

विद्रेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्रेष करते हैं ॥१ ॥

२६४. वायो यत्‌ ते हरस्तेन ते प्रति हर यो३स्मान्‌ द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥२ ॥

है चायुदेव ! आपके अन्दर जो हरने की शक्ति है, उस शक्ति के द्वारा आप उन रिपु ओ की शक्ति का हरण

करें, जो हमसे शत्रुता करते हैं तथा जिनसे हम शत्रुता करते है ॥२ ॥

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