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+ पुराणं परमं पुष्य॑ भविष्यं सर्वसौख्यदम्‌ +

( संक्षिप्त भ्विष्यपुराणाङ्क

चाहिये। इस प्रकार योग्यतासे कारव नियुक्त की गयी स््रीको

चाहिये कि वह सौभाग्ययदा या अपने उद्यम आदिसे अपने

पतिको भल्व्रैभाति सेवा कर उसे अपने अनुकूल बनाये।

ब्रह्माजी बोले--हे मुनीश्वरो ! घरमे सी प्रातःकाल

सबसे पहले उठे और अपने कार्यमें प्रवृत्त हो जाय तथा रात्रिम

सबसे पीछे भोजन करे और सबके बादमे सोये । पति तथा

ससुर आदिके उपस्थित न रहनेपर ख््रीको घरकी देहली पार

जही करनी चाहिये। वह बड़े सबेरे हो जग जाय । स्त्री पतिके

समोप बैठकर हो सब सेवकोंको कामकी आज्ञा दे, बाहर न

जाय । जब पति भी जग उठे तब वहाँके सभी आवश्यक कार्य

करके, घरके अन्य कार्योंक्रों भी प्रमादरहित होकर करे । रात्रिके

पहले ही उत्तम बल्लाभूषणोंकों उतारकर घरके कार्योंकों करने

योग्य साधारण वस्नॉंको पहनकर तत्तत्‌ समयमे करने योग्य

कार्योंको यथाक्रम करना चाहिये । उसे चाहिये कि सबसे पहले

रसोई, चूल्हा आदिको भस्परीभांति लीप-पोतकर स्वच्छ करे ।

रसोईके पात्रोंको माँज-घो और पोंछकर वहाँ रखे तथा अन्य

भी सब रसोईकी सामग्री वहाँ एकत्र करे। रसोई-घर न तो

अधिक गुप्त (बंद) हो और न एकदम खुल्म ही हो। स्वच्छ,

विस्तीर्णं और जिसमेंसे धुआं निकल जाय ऐसा होना चाहिये ।

रसोई-घरके भोजन पकानेयाक्ते पात्नोंकों तथा दूध-दहीके

पाश्ेंको सीपी, रस्सी अथवा वृक्षकी छालसे खूब रगड़कर

अंदर-बाहरसे अच्छी तरह धो लेना चाहिये। रात्रिमें

धुए- आगके द्वारा तथा दिनमें धूपमें उन्हे सुखा लेना चाहिये,

जिससे उन पारप रखा जनेवात्पर दूध-दही आदि खराय न

होने पाये । विना शोधित पात्रोमे रखा दूध-दही विकृत हो जाता

है । दूध-दही, घी तथा बने हुए पाक्रदिको सावधानीसे रखना

चाहिये और उसका निरीक्षण करते रहना चाहिये ।

स्रानादि आवश्यक कृत्य करके उसे अपने हाथसे पतिके

लिये भोजन बनाना चाहिये | उसे यह विचार करना चाहिये कि

मधुर, क्षार, अम्ल आदि रसॉमें कौन-कौन-सा भोजन पतिको

प्रिय है, किस भोजनसे अम्मिकौ वृद्धि होती है, वया पथ्य है

और कौन भोजन कालके अनुरूप होगा, क्या अपध्य है, उत्तम

स्वास्थ्य किस भोजनसे प्राप्त छेगा और कौन भोजन कालके

अनुरूप होगा आदि बातोको भलीभाँति विचास्कर और

निर्णयकर उसे वैसा ही भोजन प्रीतिपूर्वक बनाना चाहिये।

रसोई-घरमें सदासे काम करनेवाले, विश्वस्त तथा आहास्का

परीक्षण करनेवाले व्यक्तिको ही सूपकारके रूपये नियुक्त करना

चाहिये। रसोईके स्थानमे किसी अन्य दुष्ट स्त्री-पुरुषोंक्ो न

आने दे। इस विधिसे भोजन बनाकर सब पदार्थोंको स्वच्छ

पाओंसे आच्छादित कर देना चाहिये, फिर रसोई-घरसे बाहर

बुलाये। सब प्रकारके व्यञ्जन परोसे, जो देश-कालके विपरीत

न हो और जिनका परस्पर विरोध भी न हो, जैसे दूध और

लबघणका है । जिस पदार्थमें पतिकी अधिक रुचि देखे उसे और

परसे । इस प्रकार पतिको प्रीतिपूर्वक भोजन कराये

सपत्रियोंकी अपनी बहिनके समान तथा उनकी

संतानोंको अपनी संतानसे भी अधिक प्रिय समझे। उनके

भाई-बन्चुओंको अपने भाइयोंके सम्बन ही समझे। भोजन,

यस, आभूषण, ताम्बूल आदि जबतक सपल्रियोंकों न दे दे,

तबतक स्वय भी ग्रहण न करे । यदि सपत्नीको अथवा किसी

आश्रित जनको कुछ रोग हो जाय तो उसकी चिकित्सके लिये

ओषधि आदिकी भलीभाँति व्यवस्था कराये । नौकर, बन्धु

और सपत्रीको दुःखी देख स्वय भी उन्हीकि समान दुःखी होये

और उनके सुखमे सुख माने। सभी कार्योंसे अवकाश

मिलनेपर सो जाय और रात्रिम उठकर अनावश्यक धन-व्यय

कर रहे पतिक एकन्तमे धीरे-धीरे समझाये। घरका स

बुतात्त पिको एकान्तम बताये, परंतु सपनियेकि टोषोकये न

कहे, किंतु यदि कोई उनका व्यभिचार आदि बड़ा दोष देखे,

जिसे गुप्त रखनेसे कोई अनर्थं हो तो ऐसा दोष पतिको अवङ्य

बता देना चाहिये। दुर्भगा, निःसंतान तथा पतिद्वारा तिरस्कृत

सपल्रियोंकों सदा आश्वासन दे। उन्हें भोजन, वस्र, आभूषण

आदिसे दुःख न होने दे । यदि किसी नौकर आदिपर पति कोप

करे तो उसे भी आश्वस्त करना चाहिये, परंतु यह अवश्य

विचार कर लेना चाहिये कि इसे आश्वासन देनेसे कोई हानि

नहीं होनेवाली है।

इस प्रकार स्तौ अपने पतिकी सम्पूर्ण इच्छाओंक्कों पूर्ण

करें। अपने सुखके लिये जो अभीष्ट हो, उसका भी परित्याग

कर पतिके अनुकूल ही सब कार्य करे । क्योंकि स्ियेकि देवता

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