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३६८ # संक्षिप्त शिक्पुराण +

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स्थानपर पहुंचकर शिखने त्थेकाच्रारवश गिरिजानायक महेश्वरकी स्तुति करके वे

मुनियोको प्रणाम किया । श्रीहरिको और विष्णु आदि देवता प्रसन्नतापूर्वक उनकी

मुझे भी मस्तक झुकाया। फिर सत्र देवता यथोचित सेवापे तग गे । तत्श्चात्‌

आदिने उनकी यन्द्ना की । उस्र समय वहाँ लीलापूर्वक शरीर धारण करनेवाले महेश्वर

जब-जयकार, नमस्कार तथा समस्त शास्थुने उन सबको सम्मान दिया । फिर उन

विप्रोंका चिनाङ करनेवाली झुभदायिनी परसमेश्वरकी आज्ञा पाकर यै विष्णु आदि

वेदध्बनि भी होने गी । इसके बाद चैने, दैवता अत्यन्त प्रसन्न हो अपने-अपने

भगवान्‌ विण्णुने तथा इन्द्र, ऋषि और विश्रामस्थानकों गये।

सिद्ध आदिने भी हौकरजीक्की स्तुति की । (अध्याय ४९--५१)

दे

रातको परम सुन्दर सजे हुए वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल भगवान्‌

शिवका जनवासेमें आगमन

ब्रद्माजी कहते हैं--तात ! तदनन्तर हुए शाम्भुने उस्र ब्ासमन्दिर्का निरीक्षण

आाम्यवानोंपें श्रेष्ठ और चतुर गिरिराज किया। वह भवन प्रज्वलित हुए सैकड़ों

हिमवानने आरातियोंको भोजन करानेके रमय अदीपोंके क्रारण आअख्ुत प्रभासे

लिये अपने आँगनको सुन्दर ढंगसे सजाया उद्धापित हो रहा था। वहाँ रत्नमय पान्न

तथा अपने पुत्रों एवं अन्यान्य पर्वतरोंकों तशवा रत्रोंके ही कल्ला रखे गये थे। मोती

भेजकर झिवसहित सव॒ देखताओंकों

भोजनके लिये बुल्काया जव सब झोग आ

गये, तब उनको बड़े आदरके साथ

उत्तपोत्तम योज्य पदाधेक्कि भोजन कराया ।

भोजनके पश्चात्‌ ह्यध-यह थो, कुला

करके विष्णु आदि सब देवता विश्रामे

लिये प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने डेरेमें

गये। येनाक्छी आज्ञासे साध्यी स्थियोने

भगवान्‌ दिवसे भक्तिपूर्यक प्रार्थना करके

उन्हें महान्‌ उत्सवसे परिपूर्ण सुन्दर

श्वेत चैवरोंसे अलैकृत भा । मुक्तामणियोंकी

सुन्दरं पाछाओं (बंदनवारों) से आवेष्टित

हुआ वह वास्भवन खड़ा समृद्धिदारी

दिखायी देता धा । उसकी कहीं उपमा नहीं

थी । वह महादिव्य, अतिविचचित्र, परम

मनोहर तथा मनको आहवाद्‌ प्रदान

करनेदाला था) उसके फर्शपर नाना

प्रकारकी रचनाएँ की गयी धीं--बे्त-

वासभवनमे ठहराया । मेनाके दिये हुए बटे निकाले गये थें। जिवजीके दिये

मनोहर रत्र-सिंहासनपर यैटकर आनन्दित हुए चरका ही महान्‌ एवं अनुपप प्रभाव

तारक विस्तार हो -- जैसे योण।, सित्तार आदि । लिते चमड़ेसे मढ़ाकर कसा गया हो, वह "आनद्ध' कहता

है- जैसे खोल, मूर्देग, जगार जदि । जिसमें छेद शो और उसमें हवा भरकर स्वर्‌ निकाम जाता हो, उसे

“सुपि' कहते हैं--जैसे वंशी, शङ्ख, विगुट, ह्यरणोनियः। आदि । करसेके झाँझ आदिक्तो “घन कहते रै ।

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