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इ६४

* संक्षिप्त ब्रह्मबैबर्तपुराण *

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बढ़े और सूर्यास्त होते-होते नर्मदाके तटपर

पहुँच गये।

वहाँ उन्हें एक अत्यन्त मनोहर दिव्य

अक्षयवर दिखायी दिया। वह अत्यन्त ऊँचा,

विस्तारवाला और उत्तम एवं पावन आश्रम-स्थान

था। वहाँ सुगन्धित वायु बह रही थी। वहीं

पुलस्त्य-नन्दनने तपस्या की थी । वहीं कार्तबीर्यार्जुनके

आश्रमके निकट परशुराम अपने गणोंके साथ

ठहर गये । वहाँ उन्होंने रातमें पुष्प-शय्यापर शयन

किया। धके तो वे थे ही, अतः किंकरोंद्वारा

भलीभाँति सेवा किये जानेपर परमानन्दमें निमग्र

हो निद्राके वशीभूत हो गये। रात व्यतीत होते-

होते भार्गव परशुरामको एक सुन्दर स्वप्र दिखायी

दिया, जो वायु, पित्त ओर कफके प्रकोपसे रहित

और पुत्रसे सम्पन्न नारी और मुस्कराते हुए

ब्राह्मणको देख रहा हूं । पुनः अपनेको सुन्दर

वेषवाली परम संतुष्ट कन्या तथा संतुष्ट एवं

मुस्कानयुक्त ब्राह्मणद्वारा आलिङ्गित होते हुए

देखा। फिर देखा कि मैं फल-पुष्पसमन्वित वृक्ष,

देवताकौ मूर्ति तथा हाधीपर एवं रथपर सवार

हुए राजाको देख रहा हूं । पुनः उन्होंने देखा

कि मैं एक ऐसी ब्राह्मणीको देख रहा हूँ, जो

पीला वस्त्र धारण किये हुए है, रत्रोंके आभूषणोंसे

विभूषित है और घरमें प्रवेश कर रही है। फिर

अपनेको शङ्खं, स्फटिक, श्वेत माला, मोती,

चन्दन, सोना, चाँदी और रत्न देखते हुए पाया।

पुनः भार्गवको हाथी, बैल, श्वेत सर्प, श्वेत चंवर,

| नीला कमल और दर्पण दिखायी पड़ा। परशुरामने

था और जिसका पहले मनमें विचार भी नहीं | स्वप्रमें अपनेको रथारूढ़, नये रज्नोंसे संयुक्त,

किया गया था।

मालतीकी मालाओंसे शोभित और रल्रसिंहासनपर

उन्होंने देखा कि मैं हाथी, घोड़ा, पर्वत, | स्थित देखा। परशुरामने स्वप्रमें कमलॉंकी पंक्ति,

अट्टालिका, गौ और फलयुक्त वृक्षपर चढ़ा हुआ | भरा हुआ घट, दही, लावा, घौ, मधु, पत्तेका

हूँ। मुझे कौड़े काट रहे हैं जिससे मैं रो रहा छत्र और नाई देखा। भृगुनन्दनने स्वप्नमें बगुलोंकी

हूँ। मेरे शरीरे चन्दन लगा है। मैं पीले वस्त्रसे कतार, हंसोंकी पाति ओर मङ्गल-कलशकौ पूजा

शोभित तथा पुष्पमाला धारण किये हुए हूँ। मेरा करती हुई ब्रती कनन्‍्याओंकी पंक्ति देखी।

सारा शरीर मल-मूत्रसे सराबोर है और उसमें | परशुरामने स्वप्रमें उन ब्राह्मणोंको देखा, जो

मजा और पीब चुपड़ा हुआ है, ऐसी दशामें | मण्डपमें स्थित होकर शिव और विष्णुकी पूजा

मैं नौकापर सवार हूँ और उत्तम वीणा बजा रहा कर रहे थे तथा “जय हो' ऐसा उच्चारण कर

हूँ। फिर देखा कि मैं नदीतटपर बड़े-बड़े कमल- | रहे थे। फिर परशुरामने स्वप्रमें सुधावृष्टि, पत्तोंकी

पत्रोंपर रखकर दही, घी और मधु-मिश्रित खीर | वर्षा, फलोंकी वृष्टि, लगातार होती हुई पुष्प और

खा रहा हूँ। पुनः देखा कि मैं पान चबा रहा | चन्दनकौ वर्षा, तुरंतका काटा हुआ मांस, जीवित

हूँ। मैरे सामने फल, पुष्प और दीपक रखे हुए | मछली, मोर, श्वेत खंजन, सरोवर, तीर्थ, कबूतर,

हैं तथा ब्राह्मण मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। फिर शुक, नीलकण्ठ, सफेद चील, चातक, बाघ,

अपनेको बारंबार पके हुए फल, दूध, शक्करमिश्रित | सिह, सुरभी, गोरोचन, हल्दी, सफेद धानका

गरमा-गरम अन्न, स्वस्तिकके आकारकी बनी हुई | विशाल पर्वत, प्रज्वलित अग्नि, दूब, समूह-के-

मिठाई खाते देखा। पुनः उन्होंने देखा कि मुझे समूह देव-मन्दिर, पूजित शिवलिङ्ग और पूजा

जल-जन्तु, विच्छ्‌, मछली तथा सर्प काट रहे | कौ हुई शिवकी मृण्मयी मूर्तिकों देखा। परशुरामने

हैं और मैं भयभीत होकर भाग रहा हूँ। फिर | स्वप्रे जौ और गेहूँके आटेकी पूड़ी और लड्डू

देखा कि मैं चन्द्रमा और सूर्यका मण्डल, पति | देखा और उन्हें बारंबार खाया। फिर अकस्मात्‌

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