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* पुराण परम पुण्यै भविष्य सर्वसौख्यदम्‌ «

[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्ख

मासमें शुचि नामसे सूर्यका पूजन करे तो तुलापुरुष-दानका

फल प्राप्त होता है। आश्विन शुक्ला सप्तमीकों सविताकी पूजा

करनेसे सहस गोदानका फल मिलता है। कार्तिक शुक्ला

सप्तमीमें सप्तवाहन दिनेशकी पूजा करनेसे पुष्डरीक-यागका

फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष मासके शुक्ल पक्षकी सप्तमीमें

भानुकी पूजा करनेसे दस शाजसूय-यज्ञॉका फल प्राप्त

होता है। पौष मासमे शुक्ल पक्षकी सप्तमीक्रो भास्करकी

पूजा करनेसे अनेक यज्ञेका फल मिलता है। इसी प्रकार

प्रत्येक मासके कृष्ण पक्षकी सप्तमीको भी उन-उन नामोंसे

पूजा करनी चाहिये।

महाराज ! इस प्रकार एक वर्षतक ब्रत और पूजन कर

उद्यापन करे । पवित्र भूमिपर एक हाथ, दो हाथ अथवा चार

हाथ रक्तचन्दनका मण्डल बनाकर उसे सिंदूर और गेरुका

सूर्यमण्डल बनाये। कमल आदि रक्तपुष्पों, शल्लकी वृक्षके

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कल्याणसप्तमी-त्रतकी विधि

महराज युधिष्ठिरे कहा--भगवन्‌ ! यदि इस

सैसार-सागरसे पार उतारनेवाला तथा स्वर्ग, आरोग्य एवं

सुखप्रदायक कोई वरत हो तो उसे आप बतलानेकी कृपा करं ।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण बोले--राजन्‌! जिस सुझ

सप्तमीको आदित्यवार हो, उसे विजया-सप्ठमी या कल्याण-

सप्तमी कहते हैं। यह तिथि महापुण्यमयी है। इस दिन

प्रातःकाल गोदुग्धयुक्त जलसे खरानकर शुक्ल वस्र धारण कर

अक्षतॉसे अति सुन्दर एक कर्णिकायुक्त अष्टटलकमल बनाये

तथा पूर्वादि आठों दलोमिं क्रमशः पूर्व दिशामें “ॐ तपनाय

जपः," अप्रिकोणमें "ॐ मार्तण्डाय नमः', दक्षिण दिशामें

"ॐ दिवाकराय नम:ः', नैर्झत्यकोणमें "ॐ विधात्रे नपः

पश्चिम दिशामे "ॐ वरुणाय नमः', वायव्यकरोणमें “ॐ

भास्कराय नमः', उत्तर दिशामे "ॐ विकर्तनाय नमः" तथा

गद आदिसे निर्मित धूप तथा अनेक प्रकारके नैवेद्योंसे

भगवान्‌ सूर्यका पूजन करे । अन्न तथा स्वर्णसे भे कलशोको

उनके सामने स्थापित करे । फिर अप्निसंस्कार कर तिल, धृत,

गुड़ और आककी समिधाओंसे "आ कृष्छोनः' (यजु

३३ | ४३) इस मन्त्रसे एक हजार आहूति दे। अनन्तर द्वादश

ब्राह्मणोंको रक्तवस््न, एक-एक सवत्सा गौ, छतरी, जूता,

दक्षिणा और भोजन देकर क्षमा-प्रार्थना करे । बादमें स्वयै भी

मौन होकर भोजन करे।

इस विधिसे जो सप्तमीका त्रत करता है, वह नीरोग,

कुशल वक्ता, रूपवान्‌ और दीर्घायु होता है। जो पुरुष

सप्तमीके दिन उपवास कर भगवान्‌ सूर्यका दर्शन करता है,

यह सभी पापोंसे मुक्त होकर सूर्यलोकमें निवास करता है । यह

उभय-सप्तमीत्रत सम्पूर्ण अशु्ोको दूर कर आयेग्य और

सूर्यलोक प्राप्त करानेवाला है, ऐसा देवर्षि नारदका कहना है ।

(अध्याय ४७)

ईशानकोणमें ॐ रवये नम: '--इस प्रकारसे नाम-मन्‍्त्रोंद्वारा

कर्णिकाओमें सभी उपचारोंसे पूजन करे । शुक्ल वस्त्र, फल,

भक्ष्य पदार्थ, धूप, पुष्पमाला, गुड़ और लवणसे नमस्कारान्त

इन नाम-मन्त्रोंसे वेदीके ऊपर पूजा करे । इसके बाद व्याहति-

होमकर यथाशक्ति ब्राह्मणभोजन कराये । गुरुको सुवर्णसहित

तिलपात्र-दान करे । दूसरे दिन प्रातः उठकर नित्य-क्रियासे

निवृत्त हो ब्राह्मणोकि साथ घृते एवै पायससे बने पदा्थोका

भोजन करे । इस प्रकार एक वर्षतक भगवान्‌ सूर्यका पूजन एव

व्रतकर्‌ उद्यापन करे । जल, कलश, घूतपात्र, सुवर्ण, यस,

आभूषण और सवत्सा गौ ब्राह्मणको दे । इतनी शक्ति न हो तो

गोदान करे । जो इस कल्याणसप्तमी-त्रतकों करता है अथवा

माहात्प्यको पढ़ता या सुनता है, वह सभी पापोंसे मुक्त होकर

सूर्यलोकमें निवास करता है! । (अध्याय ४८)

-~-

शर्करासप्तमी-

भगवान्‌ श्रीकृष्ण बोले -- धर्मराज ! अब मैं सभी

पापोंकों नष्ट करनेवाले तथा आयु, आरोग्य और अनन्त ऐश्वर्य

प्रदान करनेवाले शर्करासप्तमी-त्रतका वर्णन करता हूँ।

विधि

वैशाख मासके शुक्ल पक्षकी सप्तमीको श्वेत तिलोसे युक्त

जलसे जानकर शुक्ल वस्नोंको धारण करे तथा वेदीके ऊपर

कुंकुमसे कर्णिकासहित अष्टदल-कमलकी स्वना करे और

१-मत्स्पपुराण (अध्याय ७४) में भी इस बतका प्रायः इन्हीं स्‍लोकोमें उल्लेख प्राप्त होता है।

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