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एवं बालकोंकी रक्षाके लिये देह-त्याग करना | गया है । व्र्णलंकर व्यक्छिर्योकी जाति उनके

बर्ण-बाह्य चाण्डाल आदि जातियोंकी सिद्धिका पिता-माता तथा जातिसिद्ध कर्मोंस जाननी

(उनकी आध्यात्मिक उन्नति)-का कारण माना | चाहिये॥ १४--१८॥

इस प्रकार आदि आस्तेय महापुराणमें 'वर्णानतर-धर्मोका वर्णन” नामक

एक सौ इक्यावनवाँ अभ्याय पूरा हुआ॥ १५१५

पुष्कर कहते हैं--परशुरामजी ! ब्राह्मण अपने | द्वारा जो पौधोंको नष्ट कर डालते हैं, उससे यज्ञ

शास्त्रोक्त कर्मसे ही जीविका चलावे; क्षत्रिय, वैश्य ओर देवपूजा करके मुक्त होते हैं ॥१--३ ॥

तथा शुद्रके धर्मसे जीवन-निर्वाह न करें। आपत्तिकालमें | आठ बैलॉका हल धर्मानुकूल माना गया है।

क्षत्रिय और वैश्यकीं वृत्ति ग्रहण कर ले; किंतु | जीविका चलानेवालोंका हल छः बैलॉंका, निर्दयी

शृद्र-वृत्तिसे कभी गुजारा न करे। द्विज खेती, | हत्यारोंका हल चार बैलोंका तथा धर्मका नाश

व्यापार, गोपालन तथा कुसीद (सूद लेना)--इन | करनेवाले मनुरष्योका हल दो बैर्लोका माना

वृत्तियोका अनुष्ठान करे; परंतु वह गोरस, गुड़, | गया है । ब्राह्मण ऋतः ओर अमृतसेः अथवा मृत्तः

नमक, लाक्षा और मांस न बेचे। किसान लोग | और प्रमृतसे* या सत्यानृतं" वृत्तिसे जीविका

धरतीको कोड़ने-जोतनेके द्वारा जो कीड़े और | चलावे। श्वान-वृत्तिसेः कभी जीवन-निर्वाह न

चीरी आदिक हत्या कर डालते हैं और सोहनीके | करे ॥ ४-५॥

इस गकार आदि आग्नेय महापुराणे “गृहस्य कीविकाका वर्णन” नामक

एक सौ कवनवां अध्याय पूरा हुआ॥ १५२॥

एक सौ तिरपनवाँ अध्याय

संस्काररोका वर्णन और ब्रह्मचारीके धर्म

- पुष्कर कहते हैं--परशुरामजी ! अब मैं आश्रमी | समागम करे । यह " गर्भाधान - संस्कार ' कहलाता

पुरुषोंके धर्मका वर्णन करूँगा; सुनो! यह भोग | है । “गर्भ! रह गया--इस बातका स्पष्टरूपसे ज्ञान

ओर मोक्ष प्रदान करनेवाला है । स्त्रियोके ऋतुधर्मकी | हो जानेपर गर्भस्थ शिशुके हिलने-डुलनेसे पहले

सोलह रात्रियां होती हैं, उनमें पहलेकी तीन रते | ही ' पुंसवन - संस्कार ' होता है । तत्पश्चात्‌ छठे या

निन्दित हैं। शेष रातोंमें जो युग्म अर्थात्‌ चौथी, | आठवें मासमें “सीमन्तोन्नयन किया जाता है।

छठी, आठवीं. और दसवीं आदि रात्रियाँ हैं, | उस दिन पुल्लिङ्ग नामवाले नक्षत्रका होना शुभ

उनमें ही पुत्रकी इच्छा रखनेवाला पुरुष स्त्री- | है! बालकका जन्म होनेपर नाल काटनेके पडले

१. खेत कट जतेपर बाल यनेना अया अंनाजके एक-एक दानेकों चुन-चुनकरे लानो और उप्तौसे जीविका चलाना "ऋ"

कहलाता है। २. बिना माँगे जो कुछ मिल जाय, वह 'अमृत' है। ३. माँगी हुई भीखको 'मृत' कहते हैं। ४. खेतीका नाम ' प्रमृत' है।

५. व्यापारको 'सत्यानृत' कहते हैं। ६. नौकरीका नाम ' श्वान-वृत्ति' है।

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