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३२४ |] [ ब्रह्माण्डं पुराण

शक्तीनां खड्गपातेन लूनशुण्डारदद्वया: ।

दैत्यानां करिणो मत्ता महाक्रोडा इवाभवन्‌ ॥३७

एवं प्रवृत्ते समरे वीराणां च भयंकरे ।

अशक्ये स्मतु म्यंतं कातरत्ववतां नणाम्‌ ।

भीषणानां भीषणे च शस्त्रव्यापारदुगंमे ।॥३८

बलाहको महागृधरं वज्रतीक्ष्णमुखादिकम्‌ ।

कालदण्डोपमं जंघाकांडे चंडपराक्रमम्‌ ।३६

संहारगुण्तनामानं पृ वंमग्रे समुत्थितम्‌ ।

धूमवद्धसराकारं पक्षक्षेपभयंकरम्‌ ।।४०

आरुह्य विविध युद्ध कृतवान्यु ददुमेदः ।

पक्षौ विततस्य क्रोशार्धं स स्थितो भीमनिःस्वनंः ।

अ `गारकुण्डवच्चञ्चु विदार्याभक्षयच्चमम्‌ ।।४१

संहारगुप्तं महाग्रृश्चः क्‌रविलोचनः ।

बलाहकमुवाहोच्चै रा$ृष्टधनुषं रणे ।।४२

नीर और क्षीर के ही समान शक्ति सेना और असुरो की सेना एक-

दम मिल गयीं थीं। उस समय में युद्ध काल में संकुलाकारता को प्राप्त हो

गया था ।३६। शक्तियों के खंगों के पात से देत्यों के गज कटी हुई सूंड

और दांतों वाले हो गये थे और बे मत्त महान्‌ क्रीड़ों के तुल्य ही हो गये थे

।३७। इस प्रकार से कीरों का युद्ध प्रवृत्त हुआ था जो कि कातरता को प्राप्त

होने वाले मनुष्य तो उसका स्मरण करने में भी सवथा असमर्थ हैं और

भीषणो का वह्‌ शब्त्रों का व्यापार भी महान भीषण तथा दुर्गंभ था ।३८।

वलाहक महांगक्र--वज्ञतीक्ष्ण मुख आदिक-कालदण्डोपम--जंघा काण्ड में

प्रचण्ड पराक्रम-संसार गुप्त नाम वाला आगे पूर्व में समुत्यित हुआ था।

उसका धूम की तरह धूसर आकार था और पंखों को जब क्षेपण करता था

तब बहुत भयंकर हो जाता था ।३६-४०। वह युद्ध करने में दुमंद अनेक

प्रकार के वाहनों के ऊपर आरोहण करके उसने युद्ध किया था । बह दोनों

पंखों को फैला कर भयानक घोधों के द्वारा आधे कोण तक स्थित हुआ

था । अगारों के कुण्ड की भाँति अपनी चौंच को फैलाकर सेना का विदा-

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