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+ स्हसंहिता ¢

३०९

(5 ॑ ॑औऔक

सुबर्ण आदिसे विभूषिते थे। गते

मत्तीकी माता पहने इए थे ) सुन्दर एत्य

मुकुट धारण करनेसे उनका मुखमण्डल

उक्ज्यल प्रभास्ने उद्धासित हो रहा श्रा।

कष्ठे हार आदि सुन्दर आभरण ज्ञोभा दे

रहे थे। सुन्दर कड़े और बाजूवंद उनकी

भूजाओंकों विभूषित कर रहे थे। अधिके

समान निर्पल एवं अनुपम अत्यत्त सूक्ष्म,

मनोहर, विचित्र एवं बहुमूल्य युगल वख्चसे महेश्ररका

उसकी बड़ी झोभा हो रहो थी। चन्दन,

अगर, कस्तूरी तथा मनोहर

आड़रागले उनके आड़ विभूषित थे) उन्होंने

हाथमे रत्नमय दर्पण ले रखा था और उनके

दोनों नेत्र करसे सुदोधित थे। उन्होंने

अपनी प्रभासे सबको आच्छादित कर किया

शा तथा चे अत्यन्त मनोहर जान पड़ते थे ।

अत्यन्त तरुण, परम सुन्दर और आभरण-

भूषित अज्ञोंसे सुशोभित थे। कामिनियोंको

अत्यन्त कमनीय प्रतीत हेते थे। वनों

व्यग्रताका अभाव श्या । उका गुखारचिन्द्‌

कोटि चन्रमाओंसे भी अधिक आह्वाद-

दायक धा। उनके श्रीभङ्गौकी छवि कोटि

कामदेवोंसे भी अधिक मनोहारिणी शी । जे

अपने सभी अड्डॉंसे परम सुन्दर थे। ऐसे

दामादक्की झोभाका सानन्द अवलोकन

काली हुई उनकी आरती उतारने लगीं ।

गिरिजाकी कही हुई बातको बारंबार याद

करके मेनाको बड़ा विस्मय हो रहा था। ये

हषत्फुःल्त् पुख्वारचिन्टसे युक्त हो सन-ही-

मन यों कहने लगीं--'पार्वतीने मुझसे पहले

जैसा बताया था, उससे भी अधिक सौन्दर्ष

मैं इन परमेश्वर शिस्रक्ते अड्ॉमें देख रही हैँ।

मनोहर लावण्य इस समय

अवर्णनीय है।' ऐसा सोचकर आश्चर्य-

चकित हुई मेना अपने घरके भीनैरं आयीं ।

वहाँ आयी हुई युवतियोयि भी लरके

पनोहर रूपकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। वे

खोरी -- 'गिरिराजयन्दिनी शिवा धन्य हैं,

धन्य हैं।' कुछ कन्याएँ कहने रूगीं - “दुगा

तो साश्चात्‌ भगवती हैं।' कुछ दूसरी कन्या

महारानी पेनाते जोलीं-'हमने तो कभी

ऐसा वर नहीं देखा है ओर न कभी ध्याने

ही ऐसे करका अध्चलोकन किया है । इन्हें

पाकर गिरिज अन्य हो गयी ।' भगवान्‌

इॉकरक्रा वह रूप देखकर समस्त देवता

हर्षसे च्वि उठे। श्रेष्ठ गन्धर्थ उनका यहा

गाने कगे और अध्सराएँ नृत्य करने लगीं।

लाजा बजानेबाले लोग मधुर ध्यनि्में अनेक

सुन्दर रूपबाले उत्कृष्टदेवता भगवान्‌. प्रकारक्ती कला दिखाते हुए आदरपूर्वक

विवको जामाताके रूपमें अपने सामने खड़ा

देख मेनाकी सारी झोक-चिन्ता दूर हो गरी ।

वे परमानन्दसिन्धुमें निमझ हो गयीं और

अपने भाग्यकी, गिरिजाकी, गिरिराज

हिमवानकी और उनके समस्त कुछकी

भूरि-धूरि प्रहारा करने लगीं । उन्होंने अपने-

आपको कृताश्च माना और घे वारंवार हर्षका

अनुभव करने लछगीं। सती मेनाका भुख

प्रसन्नतासे खिल उठा धा। ये अपने

भाँति-भाँतिके याजे बजा रहे धे । हिमाचलने

भी आनन्दित होकर द्वारोचित मल्ुलाच्नार

क्रिया । समस्त नारियोंके साथ मेनाने भी

महान्‌ उत्सव मनाते हुए वरक्ता परिछन

किया। किर वे प्रसन्नतापूर्यक घरमें चली

गयीं । इसके जाद भगवान्‌ शिव अपने गणों

और देवताओंके साथ अपनेको दिये गये

स्थान (जनवासे) में चले गये।

इसी जीचमें गिरिराजके अन्तःपुरकी

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