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भागव-चरिज्रः(३) | [ ३१३

और विश्वेश्बर गणेश आपकी पादुकाओं का समाराधन किया करते हैं

॥३७। आप पर से भी परा हैं-परमेष्ठी के पद को प्रदान करने वाली हैं और

आध्यात्मिक-आधिदे विक-आधिभौतिक--इन तीनों प्रकार के तापों का

उन्मूलन करने वाला आपका चिन्तन हुआ करता है--इस जगत्‌ के हित के

लिए ही आपने त्रिपुरासुर को निहत किया था । वाला से आदि लेकर अनेक

आपके श.भ नाम हैं तथा आपका परम श भ त्रिपुरा-यह भी नाम है।

ऐसी आपके लिये मेरा प्रणाम है ।३८। आप समस्त विद्याओं के-सुविलास

के प्रदान करने वाली. हैं--+इस सम्पूण जगत्‌ के जनन देने वाली जननी हैं--

आप अहित करने वाले शत्रुओं को निहत कर देने वाली हैं--आप बकानना

है अर्थात्‌ बगुलामुखी हैं--अआपके अनेक असुरों और दानवों का निहनन

किया है और अत्यधिक सौख्य प्रदान किया है ।३६। आपके कर कमलों में

वरदान और अभयदान रहते हैं और इनसे आपकी भुजलताएं भूषित रहा

करती हैं--समस्त देवगणों के द्वारा आपके चरण कमल वन्दित हैं--आप

पीताम्बरा अर्थात्‌ पीतवर्णं के वस्त्र धारण करने वाली हैं--आप पवन के

ही समान अपने भक्तों की पीड़ा दूर करने के लिये शीक्र गमन करने वाली

हैं--आपका संस्तवन भगवान्‌ शब्छुर भी. किया करते हैं तथा आप आप

सबकों श्‌ भ प्रदान करने वाली हैं--ऐसी आपकी चरण सेवा में मेरा.मनेक

बार प्रणिपात है ।४०॥ आप नाभारि के द्वारा गान की गयी हैं--नब खण्डों

वाले विश्व का पालन एवं रक्षण करने वाली हैं तथा नीलाचल की -आभा

वाले अंगों की प्रभासे शोभित हैं। आप लश्रुक्रमा-ललिता नाम धारिणी-

लेखाधिपा और लवणाकारा ह--।४१। आपके नेत्र परमाधिक चञ्चल .हैं-

आप-लय से वर्जित हैं और आपके चरणों में लाक्षारस लगा हुआ है जिससे

आपके चरण कमल समलकरत हैं । आपका शुभ नाम रमा है--आप सुरति

से प्यार करने वाली हैं--आप सभी रोगों काअपहरण करने वाली हैं.और

आपने ही सबकी रचना की है--ऐसी आपके लिए मेरा प्रणाम निवेदित

।४२।

राज्यश्रदाये रमणोत्सुकाये रत्नप्रभायं रुचिरां बरायं ।

नमो नमस्ते परतः पुरस्तात्‌ पार्श्वाधरोध्व॑ च

नमो नमस्ते ।॥ ४८३

सदा च सवत्र नमो नमस्ते नमो नमस्तेऽखिलविग्रहायै ।

प्रसीद देवेशि मम प्रतिज्ञां पुरां कृतां पालय भद्रकालि ॥ ४४

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